पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव की कहानी: मालगाड़ी से वंदे भारत तक का सफर बना प्रेरणा की मिसाल

ट्रेन के इंजन से मिली पहचान, सुरेखा यादव ने साबित किया कि जज्बा हो तो महिलाएं हर क्षेत्र में मिसाल बन सकती हैं।

The Narrative World    15-Oct-2025
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आपने वंदे भारत एक्सप्रेस का नाम तो जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे चलाने वाली भारत की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव हैं? सुरेखा यादव ने भारतीय रेलवे के इतिहास में वह मुकाम हासिल किया है, जो अब तक किसी महिला ने नहीं किया था।
 
महाराष्ट्र के सतारा में 2 सितंबर 1965 को जन्मीं सुरेखा यादव का बचपन से ही ट्रेनों के प्रति लगाव था। उनका विवाह शंकर यादव से हुआ, जो पुलिस विभाग में कार्यरत हैं। उनके दो बेटे हैं, जो इंजीनियरिंग के क्षेत्र से जुड़े हैं।
 
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साल 1988 में सुरेखा ने भारतीय रेलवे में असिस्टेंट लोको पायलट के रूप में जॉइन किया। उन्होंने कल्याण ट्रेनिंग स्कूल से प्रशिक्षण लिया और 1996 में अपनी पहली मालगाड़ी चलाई। अप्रैल 2000 में जब मुंबई में लेडीज स्पेशल लोकल ट्रेन की शुरुआत हुई, तो उसे चलाने का जिम्मा भी सुरेखा यादव को दिया गया। इस तरह वह भारत की पहली महिला ट्रेन चालक बनीं।
 
2010 में उन्हें सीनियर लोको पायलट (मेल) के पद पर पदोन्नत किया गया। 8 मार्च 2011 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उन्होंने पुणे से मुंबई के बीच चलने वाली डेक्कन क्वीन ट्रेन चलाई, जो उनके करियर का गर्व का क्षण बन गया। इसके बाद 2021 में उन्होंने एक ‘ऑल वीमेन क्रू स्पेशल ट्रेन’ का संचालन किया।
 
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13 मार्च 2023 को सुरेखा यादव ने मुंबई से सीएसएमटी तक वंदे भारत एक्सप्रेस चलाकर इतिहास रच दिया। वह न सिर्फ भारत बल्कि एशिया की पहली महिला लोको पायलट बनीं जिन्होंने हाई-स्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस को संचालित किया। खास बात यह रही कि उन्होंने ट्रेन को निर्धारित समय से 5 मिनट पहले स्टेशन पर पहुंचाया।
 
सुरेखा यादव को उनकी निष्ठा और बहादुरी के लिए कई सम्मान मिले हैं। उन्हें 1998 में पहला जीजाऊ पुरस्कार मिला। इसके अलावा उन्हें ‘वीमेन अचीवर अवॉर्ड’ (2001), राष्ट्रीय महिला आयोग सम्मान (2002), सह्याद्री हिरकणी अवार्ड (2004), प्रेरणा पुरस्कार (2005), सेंट्रल रेलवे वीमेन अचीवर अवार्ड (2011) और जीएम अवार्ड (2011, 2017) से सम्मानित किया गया।
 
 
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30 सितंबर 2025 को सुरेखा यादव ने 37 वर्षों की गौरवशाली सेवा के बाद सेवानिवृत्ति की घोषणा की। उनका अंतिम मिशन निजामुद्दीन से मुंबई सीएसएमटी तक राजधानी एक्सप्रेस चलाना था।
 
रिटायरमेंट के दौरान उन्होंने कहा, “जीवन में चुनौतियां सबको मिलती हैं, लेकिन उन्हें स्वीकार करने के लिए हिम्मत चाहिए। मेरा मंत्र हमेशा यही रहा है, काम दिल और गर्व के साथ करो।”
 
उन्होंने अपने परिवार को धन्यवाद देते हुए कहा कि अगर आत्मविश्वास और साहस है, तो कोई भी क्षेत्र नामुमकिन नहीं। सुरेखा यादव ने साबित किया है कि महिलाएं न केवल ट्रेन चला सकती हैं, बल्कि इतिहास भी बना सकती हैं। उनका सफर आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
 
 
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मोक्षी जैन
उपसंपादक, द नैरेटिव