रूपेश ने खोली नक्सलियों की पोल: "बसवा राजू भी शांति चाहता था, अब माओवादी झूठ फैलाकर साथियों को भटका रहे हैं"
बसवा राजू की मौत के बाद माओवादी नेतृत्व बिखर गया, अब संगठन सरेंडर करने वालों को झूठ फैलाकर गुमराह करने में जुटा है।
The Narrative World 26-Oct-2025
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17 अक्टूबर को बस्तर में 210 नक्सलियों के सरेंडर के बाद माओवादी संगठन बौखला गया है। सरेंडर करने वाले नेता रूपेश ने संगठन की सच्चाई उजागर कर दी।
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है। 17 अक्टूबर को बस्तर में केंद्रीय कमेटी सदस्य रूपेश समेत 210 नक्सलियों ने हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। इस बड़े सरेंडर से माओवादी संगठन में हड़कंप मच गया है। नक्सली अब खुद के ही पूर्व साथियों को गद्दार कहकर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। संगठन के नाम से जारी एक पर्चे में नक्सली नेता अभय ने सरेंडर करने वाले सभी साथियों को विश्वासघाती बताया।
इस झूठ का जवाब अब खुद रूपेश ने दिया है। रूपेश ने एक वीडियो जारी कर साफ किया कि सरेंडर करना किसी मजबूरी या दबाव का परिणाम नहीं था, बल्कि एक विचारशील निर्णय था जिसे केंद्रीय नेतृत्व भी समर्थन दे रहा था। उन्होंने कहा, “हमारे महासचिव बसवा राजू भी चाहते थे कि संघर्ष समाप्त हो और सरकार से सीधी बातचीत शुरू हो। हमें अपने भविष्य और अपने साथियों के जीवन के बारे में सोचना था।”
रूपेश ने बताया कि अप्रैल में संगठन ने पहली बार शांति वार्ता पर प्रेस नोट जारी किया था। इसके बाद बसवा राजू ने कहा था कि केंद्रीय कमेटी की बैठक बुलाकर संघर्ष विराम पर फैसला लेंगे। उन्होंने सरकार से भी मांग की थी कि वे ऑपरेशन रोकें ताकि संगठन की बैठक सुरक्षित माहौल में हो सके। लेकिन इसी बीच बसवा राजू एनकाउंटर में मारे गए, जिससे पूरी रणनीति बदल गई।
रूपेश ने कहा कि अब माओवादी संगठन यह प्रचार कर रहा है कि बसवा राजू ने संघर्ष विराम से पीछे हटने का निर्णय लिया था। उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह झूठ है। बसवा राजू का आखिरी पत्र अब भी हमारे पास है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि सशस्त्र संघर्ष को रोकने का निर्णय कायम रहेगा।”
उन्होंने बताया कि बसवा राजू की मौत के बाद उन्होंने सेंट्रल कमेटी के बाकी सदस्यों को वह पत्र दिखाया, जिसे देवजी समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी देखा। लेकिन अब वही लोग राजनीतिक फायदे के लिए सच्चाई को छिपा रहे हैं और सरेंडर करने वालों को गद्दार बता रहे हैं।
रूपेश ने कहा, “हमने पार्टी को बचाने और जनता के लिए लड़ाई को नया रास्ता देने के लिए सरेंडर किया। यह निर्णय बस मेरे नहीं, पूरी कोर टीम के विचारों से लिया गया था। हमने किसी साथी पर दबाव नहीं डाला। जो भी हथियार डालने आया, उसने अपनी मर्जी से सरेंडर किया।”
उन्होंने बताया कि सरेंडर से पहले स्पेशल जोनल कमेटी ने भी समीक्षा बैठक की थी। इस बैठक में चर्चा हुई कि हिंसा से अब कुछ हासिल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि जो साथी अब भी जंगलों में हैं, वे भी सही रास्ते पर लौट आएं।”
रूपेश ने संगठन पर आरोप लगाया कि दंडकारण्य की बैठक में उन्हें यह तक नहीं बताया गया कि उत्तर बस्तर के साथी क्या सोच रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमारा पत्र उत्तर बस्तर के साथियों से छिपाया गया। अब वही संगठन हमें झूठा बता रहा है। यह संगठन की साजिश है, ताकि बाकी नक्सली सच्चाई न जान सकें।”
उन्होंने कहा, “जब हमारे 28 साथी एक मुठभेड़ में मारे गए थे, तब पुलिस ने 27 बताया था, लेकिन हमने खुद सच्चाई बताई थी। आज वही संगठन झूठ फैला रहा है। यह हमारी विचारधारा नहीं थी। अब माओवाद एक राजनीतिक स्वार्थ का औजार बन चुका है।”
सरेंडर करने वाले नक्सलियों का कहना है कि अब संगठन अपनी विचारधारा से भटक चुका है। हिंसा और झूठ से केवल निर्दोष ग्रामीणों की जान जा रही है। अब जबकि 210 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जंगल में छिपे बचे हुए नक्सली भी समझें कि सरकार संवाद के लिए तैयार है।
अब बस्तर की जमीन पर नया दौर शुरू हो चुका है। जो नक्सली अभी भी हथियार नहीं डाल रहे, वे खुद को गुमराह कर रहे हैं। संगठन अब टूट चुका है। जनता, सुरक्षा बल और पूर्व नक्सली मिलकर इस लाल आतंक को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। अब हिंसा नहीं, विकास ही बस्तर का भविष्य तय करेगा।