इंदिरा का वादा, राजीव का समझौता: क्या चंडीगढ़ सिर्फ सियासी सौदा रहा?

क्या पंजाब की अस्मिता की अनदेखी कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा थी, चंडीगढ़ को लेकर फैसला आज तक टल क्यों गया?

The Narrative World    01-Nov-2025
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आज एक नवंबर को देश भर में सात राज्यों के पुनर्गठन दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन पंजाब दिवस की खास अहमियत है। पंजाब ने अपना हक हासिल करने के लिए अपनी भाषा, संस्कार, पानी और अस्मिता तक दांव पर लगा दी, लेकिन बदले में उसे राजनीति, साजिश और वादाखिलाफी मिली। कांग्रेस के केंद्र और राज्य में रहते हुए भी पंजाब को उसके अधिकार से लगातार वंचित रखा गया और आज भी उसके घाव हरे हैं।
 
1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के बाद चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी घोषित किया गया, लेकिन इसका वादा अस्थायी माना गया था। कहा गया था कि हरियाणा अपनी अलग राजधानी बनाएगा और चंडीगढ़ अंततः पंजाब को दे दिया जाएगा। लेकिन सत्ता में लगातार रही कांग्रेस ने इस वादे को ठंडे बस्ते में डाल दिया। सच्चाई यह है कि चंडीगढ़ पर पंजाब का दावा भाषाई, सांस्कृतिक और संवैधानिक रूप से पूरी तरह से सही था, लेकिन कांग्रेस ने इसे बार-बार टालकर पंजाब को अपमानित किया।
 
29 जनवरी 1970 को संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि चंडीगढ़ पंजाब को सौंपा जाएगा। यह खबर अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक पहुंची। न्यू यॉर्क टाइम्स ने इसे भारत सरकार के निर्णायक बयान के रूप में छापा। लेकिन 10 साल बाद इंदिरा गांधी ने खुद ही इस वादे का मजाक बना दिया। 30 दिसंबर 1980 को उन्होंने फिल्लौर में "रणजीतगढ़" नाम की एक नई राजधानी का शिलान्यास किया। कांग्रेस ने इसका खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन यह पूरी तरह से दिखावा था। न कोई बजट पास हुआ, न फाइल आगे बढ़ी। आज उस नींव पत्थर पर धूल जम रही है और वह कांग्रेस की पंजाब विरोधी राजनीति का प्रमाण बन चुका है।
 
 
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कांग्रेस का पंजाब विरोध यहीं नहीं रुका। 1984 में राजीव गांधी ने भी पंजाब समझौते में चंडीगढ़ सौंपने का वादा किया, लेकिन वह भी अधूरा रहा। इससे पहले, इंदिरा के कार्यकाल में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ, जिसमें स्वर्ण मंदिर जैसे पवित्र स्थल पर हमला हुआ। उसके बाद सिख विरोधी दंगे हुए, जिनमें कांग्रेस नेताओं की भूमिका जगजाहिर है। हजारों निर्दोष सिखों की हत्या हुई। राजीव गांधी ने कहा था, “जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।” क्या यह संवेदना है या सत्ता का अहंकार?
 
चंडीगढ़ सिर्फ प्रशासनिक राजधानी नहीं, बल्कि पंजाब की अस्मिता और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। कांग्रेस ने पंजाब को बार-बार इस अधिकार से रोककर संदेश दिया कि उसके लिए पंजाब की अस्मिता कोई मायने नहीं रखती। जब-जब पंजाब ने अपनी मांग उठाई, कांग्रेस ने उसे सांप्रदायिक, अलगाववादी और राष्ट्र विरोधी बताकर दबाने की कोशिश की।
 
 
वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिख परंपरा और पंजाब की विशिष्ट पहचान को सम्मान दिया। गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती पर विश्व स्तरीय कार्यक्रम हुए, करतारपुर कॉरिडोर खुला, सिख श्रद्धालुओं के लिए OCI कार्ड में ढील दी गई, और 1984 दंगे के दोषियों को सजा दिलाने के कदम उठाए गए। भाजपा सरकार ने पंजाब को सम्मान और न्याय दोनों देने की कोशिश की है।
कांग्रेस ने न केवल संवैधानिक वादों को तोड़ा, बल्कि पंजाब की भावनाओं, अस्मिता और सम्मान के साथ छल किया। रणजीतगढ़ की असली कहानी और चंडीगढ़ पर किए गए वादे इस सियासी धोखाधड़ी के प्रतीक हैं। पंजाब के साथ कांग्रेस का व्यवहार दिखाता है कि सत्ता के लिए किस तरह एक राज्य को वर्षों तक छलावे में रखा गया।
 
आज, पंजाब दिवस हमें न केवल एक राज्य के अस्तित्व की याद दिलाता है, बल्कि उस अन्याय की भी, जिसे राजनीतिक स्वार्थ की बलि चढ़ा दिया गया। पंजाब अपने सम्मान की लड़ाई अब भी लड़ रहा है और इस संघर्ष को समझना हर भारतवासी का कर्तव्य है।
 
लेख
शोमेन चंद्र