राजनीति में नाटक, सच्चाई से दूरी… राहुल गांधी का वोट चोरी शो बुरी तरह नाकाम

क्या राहुल गांधी को हार का डर इतना बढ़ गया कि सच्चाई से ज्यादा झूठ पर भरोसा करना पड़ा?

The Narrative World    08-Nov-2025
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जब हार बर्दाश्त न हो सके, तब सच्चाई की जगह झूठ ले लेती है। यही हाल आज राहुल गांधी और कांग्रेस का है। ‘वोट चोरी’ का उनका नया नाटक अब देश भर में चर्चा का विषय बन चुका है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह एक झूठे आरोपों पर आधारित राजनीतिक तमाशा है।
 
राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जिस तरह से चुनाव आयोग पर सवाल उठाए और भाजपा पर वोट चोरी का आरोप लगाया, वह उनकी हताशा और असफलता का खुला प्रमाण है। 5 नवंबर को उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे ‘हाइड्रोजन बम’ बताने की कोशिश की, लेकिन यह बम फुस्स साबित हुआ। उनके आरोपों की जांच जब जमीन पर हुई, तो एक-एक कर उनके झूठ उजागर हो गए।
 
उन्होंने कहा कि हरियाणा के होडल इलाके में एक ही घर में 66 फर्जी वोटर पंजीकृत हैं। हकीकत यह है कि वह मकान एक ही परिवार की पुरानी पुश्तैनी संपत्ति है, जहां चार पीढ़ियां रहती हैं। हर सदस्य असली वोटर है। कोई फर्जी पहचान नहीं, कोई साजिश नहीं। राहुल गांधी और उनकी टीम ने न तो उस इलाके में जाकर सच्चाई देखी, न ही किसी से बात की। क्योंकि उनका उद्देश्य तथ्य दिखाना नहीं, बल्कि अफवाह फैलाना था।
 
इसी तरह उन्होंने दावा किया कि एक और घर में 501 फर्जी वोटर दर्ज हैं। जांच से पता चला कि वह पता कई घरों और दुकानों के एक बड़े परिसर का साझा पता है। यानी वहां सैकड़ों वोटर होना सामान्य बात है। फिर भी राहुल गांधी ने इसे ‘फर्जी पहचान’ का सबूत बताकर प्रचार किया।
 
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सबसे हास्यास्पद दावा था कि एक ब्राजील की मॉडल की तस्वीर का इस्तेमाल कर दर्जनों फर्जी वोटर आईडी बनाई गईं। सोशल मीडिया पर उन्होंने इस झूठ को खूब फैलाया, लेकिन जल्द ही वह झूठ भी खुल गया। असली महिलाएं सामने आईं, उन्होंने अपने वोटर कार्ड और पहचान दिखाकर बताया कि वे असली मतदाता हैं। ब्राजील की मॉडल ने भी साफ किया कि उसकी तस्वीर सालों पहले स्टॉक फोटो के रूप में इस्तेमाल हुई थी। यानी कोई विदेशी मॉडल नहीं, कोई वोट चोरी नहीं, सिर्फ राहुल गांधी का नया झूठ।
 
राहुल गांधी ने सिर्फ उन सीटों पर सवाल उठाए जहां कांग्रेस हारी। जहां कांग्रेस जीती, वहां सब कुछ सही लगा। अगर उनके तर्क सही मानें, तो कांग्रेस को यह भी मान लेना चाहिए कि जिन सीटों पर वे जीते, वहां भी गड़बड़ी हुई। लेकिन सच्चाई स्वीकार करने की हिम्मत उनमें नहीं है, क्योंकि यह पूरी मुहिम हार छिपाने की कोशिश है।
 
पोस्टल बैलेट को लेकर भी उन्होंने झूठ फैलाया कि जहां कांग्रेस आगे थी, वहां ईवीएम में पीछे रह गई। जबकि चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि कई सीटों पर भाजपा पोस्टल वोट में आगे थी, फिर भी कांग्रेस जीती। अगर पोस्टल बैलेट की प्रवृत्ति ही प्रमाण है, तो राहुल गांधी को अपने ही जीत पर भी सवाल उठाना चाहिए।
 
असल में राहुल गांधी का यह पूरा अभियान लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने की एक सोची-समझी रणनीति है। कांग्रेस अब न्यायपालिका, ईडी, सेना, और अब चुनाव आयोग तक को निशाना बना रही है। जब सत्ता नहीं मिलती, तो वे प्रणाली पर ही सवाल उठाने लगते हैं। यह बेहद खतरनाक चलन है, जो लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा कमजोर करता है।
 
 
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राहुल गांधी अब विदेशी मंचों से भी भारत के खिलाफ बयान देने लगे हैं। लंदन और वॉशिंगटन में जाकर वे भारतीय लोकतंत्र पर सवाल उठाते हैं और पश्चिमी कथाओं को दोहराते हैं। उनके भाषणों और प्रेजेंटेशन में अब विदेशी टाइम जोन तक नजर आने लगे हैं। यह सब दिखाता है कि कांग्रेस की राजनीति अब भारतीय जड़ों से कट चुकी है।
 
‘वोट चोरी’ अभियान राहुल गांधी की राजनीतिक असफलता का प्रतीक बन गया है। जो नेता जमीनी स्तर पर जनता से जुड़ नहीं सका, वह अब झूठ के सहारे सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहा है। लेकिन देश का मतदाता अब समझदार है। वह जानता है कि विकास, ईमानदारी और काम ही राजनीति की सच्ची पहचान है।
 
राहुल गांधी ने फिर साबित कर दिया कि शोर मचाना आसान है, भरोसा कमाना नहीं। ‘वोट चोरी’ का उनका यह मिथक अब कांग्रेस की हताशा की निशानी बन चुका है, जो धीरे-धीरे खुद पार्टी की तरह ही राजनीतिक अप्रासंगिकता में खो जाएगा।
 
लेख
शोमेन चंद्र