कोलकाता के साल्ट लेक स्टेडियम में फुटबॉल प्रेमियों के लिए जो शाम यादगार बननी थी, वही अव्यवस्था, हंगामे और लाठीचार्ज की मिसाल बन गई। फुटबॉल के महान खिलाड़ी लियोनेल मेसी की मौजूदगी ने पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य प्रशासन की तैयारियों की पूरी पोल खोल दी। इस घटना ने एक बार फिर यह सख्त संदेश दिया कि विपक्ष शासित राज्य भीड़ प्रबंधन और कानून व्यवस्था जैसे सबसे बुनियादी दायित्व निभाने में लगातार चूक रहे हैं।
विवेकानंद युवा भारती क्रीरअंगन में मोहन बागान और डायमंड हार्बर के बीच मैच चल रहा था। दूसरे हाफ में मेसी अपने इंटर मियामी के साथियों रोड्रिगो डी पॉल और लुईस सुआरेज के साथ स्टेडियम पहुंचे। जैसे ही उनकी कार मैदान में दाखिल हुई, हालात पूरी तरह बेकाबू हो गए। मैदान तक पहुंच रखने वाला हर व्यक्ति मेसी की ओर दौड़ पड़ा। पुलिस, आयोजक, मंत्री, VVIP और कैमरामैन एक साथ जमा हो गए। प्रशासन ने भीड़ को रोकने की जगह हाथ जोड़कर अपीलें करनी शुरू कर दीं। लाउडस्पीकर से बार-बार कहा गया, कृपया जगह खाली करें, लेकिन किसी ने नहीं सुना।
यह दृश्य अपने आप में प्रशासनिक समर्पण का प्रतीक बन गया। राज्य सरकार अपने ही स्टेडियम पर नियंत्रण खो बैठी। मेसी सुरक्षा घेरे में घिरे रहे, लेकिन आयोजक 15 मिनट में भी उनके लिए एक साफ रास्ता नहीं बना सके। हजारों दर्शक, जिन्होंने 5 हजार से लेकर 10 हजार रुपये तक के टिकट खरीदे थे, उन्हें मेसी की बस एक झलक भी नसीब नहीं हुई। प्रेस बॉक्स से भी यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया कि मेसी आखिर कहां खड़े हैं।
स्थिति तब और बिगड़ी जब मंत्री और प्रभावशाली लोग मेसी के आसपास फोटो खिंचवाने और मौजूदगी दर्ज कराने पहुंच गए। पश्चिम बंगाल के खेल मंत्री और कार्यक्रम आयोजक खुद भीड़ का हिस्सा बन गए। यह आयोजन प्रशंसकों के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रदर्शन का मंच बन गया। नतीजा साफ दिखा। मेसी के नाम के नारे कुछ ही मिनटों में हूटिंग में बदल गए। गुस्साए दर्शकों ने बोतलें और सामान फेंकना शुरू कर दिया। स्टेडियम की संपत्ति को नुकसान पहुंचा।
कानून व्यवस्था इतनी तेजी से बिगड़ी कि पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। मेसी महज 22 मिनट बाद स्टेडियम छोड़कर चले गए। बाहर जाते समय भीड़ लगातार नारे लगाती रही, हमें मेसी चाहिए। हजारों प्रशंसक निराश और ठगा हुआ महसूस करते हुए लौटे। बाद में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर माफी मांगी और जांच समिति बनाने की घोषणा कर दी। यह वही पुराना तरीका रहा, पहले लापरवाही और बाद में जांच का ऐलान।
यह घटना अकेली नहीं है। इसी साल बेंगलुरु में RCB (रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु) की IPL जीत के जश्न में कांग्रेस शासित कर्नाटक सरकार की नाकामी ने 11 लोगों की जान ले ली। दोनों घटनाओं ने एक ही सच्चाई उजागर की। विपक्षी सरकारें सख्ती से बचती हैं, अनुशासन लागू नहीं करतीं और भीड़ को खुश रखने की कोशिश में नियंत्रण खो देती हैं।
इसके उलट, मुंबई में T-20 विश्व कप जीत के बाद NDA शासित महाराष्ट्र सरकार ने विशाल भीड़ के बावजूद व्यवस्था संभाली और एक भी बड़ी घटना नहीं होने दी। फर्क साफ है। शासन का मतलब माफी मांगना नहीं, बल्कि पहले से तैयारी करना है।
कोलकाता में मेसी का अपमान और बेंगलुरु में जानलेवा भगदड़ संयोग नहीं हैं। ये प्रशासनिक अक्षमता के नतीजे हैं। कानून व्यवस्था कोई विकल्प नहीं, बल्कि शासन की नींव है। जब सरकारें इस बुनियादी जिम्मेदारी में विफल होती हैं, तो जनता उसकी कीमत चुकाती है। विपक्ष शासित राज्यों को यह सच्चाई समझनी होगी, वरना ऐसे शर्मनाक और दुखद दृश्य बार-बार दोहराए जाएंगे।
लेख
शोमेन चंद्र