कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक हेट स्पीच और हेट क्राइम्स बिल 2025 को कैबिनेट में मंजूरी दे दी है। सरकार इस बिल को गरिमा और समानता का कदम बताती है, लेकिन इसके शब्द कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं। बिल एक ऐसी परिभाषा बनाता है जो सामान्य हिंदू अभिव्यक्ति को सबसे आसान लक्ष्य बना सकता है। सरकार ने हानि को भावनात्मक, मानसिक, सामाजिक या आर्थिक रूप में परिभाषित किया है। यह दायरा इतना बड़ा है कि कोई भी राजनीतिक टिप्पणी या धार्मिक मुद्दों पर चर्चा को लोग तुरंत भावनात्मक हानि कह सकते हैं। इस तरह की व्यापक परिभाषा कानून के दुरुपयोग और पक्षपात को खुला निमंत्रण देती है।

बिल का एक खतरनाक पहलू अनजाने में की गई सहायता पर सजा का प्रावधान है। इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति यदि किसी सामग्री को शेयर, फॉरवर्ड या रीट्वीट करता है तो अधिकारी उसे अपराध मान सकते हैं। इरादा चाहे जैसा भी हो, कोई भी व्यक्ति दावा कर सकता है कि उसे भावनात्मक हानि हुई है और पुलिस तुरंत कार्रवाई कर सकती है। यह प्रावधान खास तौर पर हिंदुओं को प्रभावित करेगा, क्योंकि डिजिटल मंचों पर हर्ट सेंटिमेंट वाले सबसे अधिक मामले उन्हीं पर दर्ज होते हैं।
बिल जिलाधिकारी को यह अधिकार देता है कि वे किसी कार्यक्रम, जुलूस या धार्मिक आयोजन को रोक दें यदि कोई भी समूह किसी आशंका को दर्ज कर दे। अधिकारियों का ध्यान असल में उन लोगों पर होना चाहिए जो माहौल बिगाड़ने की धमकी देते हैं, लेकिन यह बिल शांतिपूर्ण आयोजकों पर ही रोक लगाने की शक्ति देता है। रमनवमी, हनुमान जयंती और गणेश उत्सव जैसे हिंदू पर्व पहले भी इसी तरह की रोक का सामना कर चुके हैं। नया बिल इस प्रवृत्ति को और बढ़ा सकता है।
बिल धार्मिक विचारों को आगे बढ़ाने को वैध बताता है जिसमें कन्वर्जन अभियान भी शामिल हैं। कई जिलों में लोग कन्वर्जन के दबाव की शिकायत करते हैं, लेकिन बिल इन गतिविधियों को सुरक्षा देता है। वहीं हिंदू समाज यदि इसका विरोध करता है तो अधिकारी इसे हानि की श्रेणी में रख सकते हैं। यह असंतुलन इस बिल की असली मंशा को साफ दिखाता है।
बिल अधिकारियों को अच्छे इरादे के नाम पर पूरी छूट देता है जबकि नागरिकों पर नए प्रकार की कानूनी जिम्मेदारियां डालता है। अधिकारी किसी भी गलत कार्रवाई से बच सकते हैं, लेकिन सामान्य लोग हर छोटे आरोप का सामना करेंगे। यह व्यवस्था नागरिकों को कमजोर और प्रशासन को बिना सवाल के ताकतवर बना देती है।
बिल की अस्पष्ट भाषा, बढ़े हुए अधिकार और अलग-अलग प्रावधान एक ऐसा माहौल बनाते हैं जिसमें लोग धार्मिक मुद्दों पर खुलकर बोलने से डरेंगे। व्यंग्य, आलोचना, कन्वर्जन पर टिप्पणी या किसी सामाजिक मुद्दे पर असहमति भी कानूनी खतरा बन सकती है। अदालतें बाद में कुछ प्रावधान हटाएं भी तो लोग पहले ही चुप हो जाएंगे। हिंदू समाज शांत और कानून का पालन करने वाली प्रवृत्ति के कारण सबसे आसान लक्ष्य बन सकता है।
यदि सरकार इस बिल को लागू करती है तो अन्य राज्य भी इसी तरह का ढांचा अपना सकते हैं। भारत में कई राज्यों में त्योहारों और अभिव्यक्ति पर रोक के उदाहरण पहले से मौजूद हैं।
कर्नाटक का हेट स्पीच बिल नफरत को खत्म नहीं करेगा। यह भावनाओं को कानून से ऊपर रखेगा, फॉरवर्ड की गई सामग्री को अपराध बनाएगा, कन्वर्जन गतिविधियों को सुरक्षा देगा और हिंदू आयोजनों तथा अभिव्यक्तियों पर नया बोझ डालेगा। यह कानून नागरिक को नहीं बल्कि सत्ता को मजबूत करेगा और समाज में खामोशी को बढ़ावा देगा।
लेख
शोमेन चंद्र