हाल ही में कर्नाटक में गायक सोनू निगम के साथ हुई घटना ने देश में भाषाई असहिष्णुता की गंभीरता को उजागर किया है।
एक संगीत कार्यक्रम के दौरान, कुछ दर्शकों द्वारा "कन्नड़, कन्नड़" चिल्लाने पर सोनू निगम ने प्रतिक्रिया दी, जिसे कुछ लोगों ने कन्नड़ भाषा का अपमान समझा।
हालांकि, सोनू निगम ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी केवल उन कुछ व्यक्तियों के व्यवहार पर थी, न कि कन्नड़ भाषा या समुदाय के खिलाफ।
उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी और कन्नड़ भाषा के प्रति अपने सम्मान को दोहराया।
इसके बावजूद, कन्नड़ फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स ने उन्हें सैंडलवुड इंडस्ट्री से प्रतिबंधित कर दिया, और कर्नाटक रक्षण वेदिके जैसे संगठनों ने इस मुद्दे को और बढ़ाया।
यह घटना केवल एक उदाहरण है कि कैसे कुछ समूह भाषाई पहचान के नाम पर कट्टरता फैला रहे हैं।
दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में भी भाषाई विवाद देखने को मिलते हैं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी भावनाएं समय-समय पर उभरती रही हैं, जबकि केरल और आंध्र प्रदेश में भी स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता देने की मांगें उठती रही हैं।
इन राज्यों के राजनेता भी इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ के लिए भुनाते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचता है।
भारत विविधताओं का देश है, जहां विभिन्न भाषाएं, संस्कृतियां और परंपराएं सह-अस्तित्व में हैं।
लेकिन जब भाषाई पहचान को कट्टरता का रूप दिया जाता है, तो यह देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन जाता है।
सोनू निगम की घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैसे कुछ लोग व्यक्तिगत टिप्पणियों को समुदाय के खिलाफ मोड़कर विवाद खड़ा करते हैं।
यह समय है जब हमें भाषाई विविधता को सम्मान देने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
भाषा के नाम पर कट्टरता और विभाजन की राजनीति को रोकना होगा, ताकि भारत अपनी विविधताओं में एकता की पहचान को बनाए रख सके।
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़