रोहिंग्या घुसपैठ का खतरा और कॉलिन गोंसाल्विस की संदिग्ध भूमिका

रोहिंग्या घुपैठिए भारत की सुरक्षा के लिए खतरा? आतंकी संगठनों से कनेक्शन और कॉलिन गोंसाल्विस की भूमिका पर सवाल। क्या यह एक अनदेखा संकट है?

The Narrative World    17-May-2025   
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भारत में रोहिंग्या घुसपैठियों का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या की डिपोर्टेशन को रोकने की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया, जिसने इस मुद्दे को गंभीर बना दिया।


इस बीच, वकील कॉलिन गोंसाल्विस, जो रोहिंग्या के पक्ष में लगातार कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं, उनकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। क्या रोहिंग्या भारत की सुरक्षा के लिए एक अनदेखा खतरा बन रहे हैं, और क्या गोंसाल्विस जैसे लोग ऐसी ताकतों को बढ़ावा दे रहे हैं, जो देश के हितों के खिलाफ काम कर सकती हैं?


रोहिंग्या, जो म्यांमार से भागकर भारत में आए हैं, उनकी मौजूदगी लंबे समय से एक जटिल मुद्दा रही है। एक रिपोर्ट ने बताया कि बांग्लादेश में रोहिंग्या शिविरों में जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) जैसे संगठन सक्रिय हैं। जेएमबी का अल-कायदा और लश्कर--तैयबा से संबंध बताया जाता है, और यह भारत में अशांति फैलाने की कोशिश में लगा है।


भारत की पश्चिम बंगाल और असम से लगी सीमाएँ झरझरी हैं, जिसके चलते घुसपैठ का खतरा बढ़ता जा रहा है। इस रिपोर्ट ने आशंका जताई कि जम्मू-कश्मीर और मणिपुर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में यह स्थिति अशांति को हवा दे सकती है।


2017 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर कहा था कि कुछ रोहिंग्या नेताओं का इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) और लश्कर--तैयबा (एलईटी) जैसे संगठनों से संपर्क है, जो भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। इन घटनाओं से सवाल उठता है कि क्या रोहिंग्या समूहों की मौजूदगी भारत में सामाजिक और सुरक्षा से जुड़े जोखिमों को बढ़ा रही है?


रोहिंग्या की मौजूदगी से सामाजिक तनाव के साथ-साथ आर्थिक दबाव भी बढ़ रहा है। वास्तव में रोहिंग्या एक जटिल समस्या हैं, और उनकी मौजूदगी से भारत में पहले से मौजूद चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं।


2025 में काउंटर एक्सट्रीमिज्म प्रोजेक्ट की एक रिपोर्ट में बताया गया कि जेएमबी ने 2005 में बांग्लादेश में 459 बम धमाके किए, जिसमें कई लोग हताहत हुए। यह संगठन रोहिंग्या समुदाय का समर्थन करने का दावा करता है, लेकिन इसका असली मकसद क्षेत्र में अस्थिरता फैलाना है। ऐसे में, भारत को अपनी सीमाओं और आंतरिक सुरक्षा पर और सतर्कता बरतने की जरूरत है।


इस बीच, सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या की डिपोर्टेशन को रोकने की याचिका दायर करने वाले वकील कॉलिन गोंसाल्विस की भूमिका सवालों के घेरे में है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान गोंसाल्विस ने दावा किया कि 8 मई को केंद्र सरकार ने 28 रोहिंग्याओं को डिपोर्ट किया, जिन्हें हथकड़ियाँ लगाकर अंडमान द्वीप ले जाया गया और वहाँ से लाइफ जैकेट देकर म्यांमार की ओर धकेल दिया गया। कोर्ट ने इस दावे को गंभीरता से लिया, लेकिन सबूतों की कमी के चलते इसे "काल्पनिक" करार दिया और गोंसाल्विस से ठोस सबूत माँगे। कोर्ट का यह रुख समझ में आता है, लेकिन गोंसाल्विस की लगातार कोशिशें कुछ सवाल खड़े करती हैं।


गोंसाल्विस, जो ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (एचआरएलएन) के संस्थापक हैं, लंबे समय से ऐसे मामलों में सक्रिय रहे हैं, जो भारत की सुरक्षा नीतियों को चुनौती देते हैं। 2020 में ऑर्गनाइज़र और द कम्यून मैगज़ीन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि गोंसाल्विस के संगठन को यूरोपीय चर्चों से 50 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी, ताकि सीएए विरोधी दंगाइयों का कानूनी बचाव किया जा सके। इनमें ब्रेड फॉर द वर्ल्ड जर्मनी, डीकेके ऑस्ट्रिया, और मिज़ेरियोर जैसे संगठन शामिल थे। लीगल राइट्स ऑब्ज़र्वेटरी (एलआरओ) ने आरोप लगाया कि यह फंडिंग भारत में अशांति फैलाने के लिए इस्तेमाल हुई। क्या यह संभव है कि गोंसाल्विस उन ताकतों का हिस्सा बन गए हों, जो भारत के हितों के खिलाफ काम कर रही हैं?


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गोंसाल्विस की गतिविधियाँ पहले भी सवालों के घेरे में रही हैं। 2022 में एक रिपोर्ट में बताया गया कि गोंसाल्विस ने जामिया और एएमयू के उन प्रदर्शनकारियों का बचाव किया, जिन्हें सीएए विरोधी हिंसा में शामिल होने का आरोप था। इसके अलावा, उन्होंने चारधाम सड़क परियोजना को रोकने की कोशिश की, जिसे रणनीतिक रूप से अहम माना जाता है।


2023 में रेडिफ की एक रिपोर्ट में गोंसाल्विस ने न्यूज़क्लिक मामले में पत्रकारों पर यूएपीए लगाने की आलोचना की, और कहा कि "शब्द आतंकी नहीं हो सकते।" लेकिन न्यूज़क्लिक पर चीन से फंडिंग लेकर भारत विरोधी प्रचार करने का आरोप था। गोंसाल्विस की ये गतिविधियाँ सवाल उठाती हैं कि क्या वह उन ताकतों का समर्थन कर रहे हैं, जो भारत की एकता और सुरक्षा को कमजोर कर सकती हैं?


रोहिंग्या का मुद्दा और गोंसाल्विस की भूमिका भारत के सामने एक जटिल चुनौती पेश करते हैं। एक तरफ, रोहिंग्या की मौजूदगी से सुरक्षा संबंधी जोखिम बढ़ रहे हैं, जो भारत जैसे देश के लिए चिंता का विषय है, जो पहले से ही आतंकवाद से जूझ रहा है। दूसरी तरफ, गोंसाल्विस जैसे लोग, जो मानवाधिकार के नाम पर सक्रिय हैं, उनकी गतिविधियाँ अनजाने में उन ताकतों को बढ़ावा दे सकती हैं, जो देश के हितों के खिलाफ हैं।