छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सल हिंसा ने बीते कई दशकों से आम नागरिकों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है।
अब इस हिंसा और विचारधारा के खिलाफ देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों, पूर्व अधिकारियों और सामाजिक संगठनों ने मिलकर एक खुला पत्र जारी किया है।
रायपुर में आयोजित प्रेस वार्ता के माध्यम से माओवादी आतंक के खात्मे और बस्तर के विकास की मांग को सार्वजनिक रूप से रखा गया।
यह प्रेस वार्ता 'Intellectual Forum of Chhattisgarh' के नेतृत्व में हुई, जिसमें प्रो. एस.के. पांडे (पूर्व कुलपति), श्री अनुराग पांडे (सेवानिवृत्त IAS), बी. गोपा कुमार (पूर्व उप-सॉलिसिटर जनरल) और श्री शैलेन्द्र शुक्ला (पूर्व निदेशक, क्रेडा) जैसे वरिष्ठ लोगों ने हिस्सा लिया।
इन वक्ताओं ने बताया कि यह पहल सिर्फ एक प्रेस कांफ्रेंस नहीं, बल्कि देशभर के जिम्मेदार नागरिकों का सामूहिक संकल्प है।
प्रेस वार्ता में जारी किए गए पत्र में माओवादी हिंसा के कारण बस्तर के जनजातियों को हुए नुकसान, विकास में रुकावट और तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा माओवाद के महिमामंडन पर गहरी चिंता जताई गई।
यह बताया गया कि माओवाद केवल एक विचारधारा नहीं, बल्कि एक खूनी आंदोलन बन चुका है, जिसमें हजारों निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं।
South Asia Terrorism Portal के अनुसार, सिर्फ छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा में एक हजार से ज्यादा आम नागरिकों की जान गई है, जिनमें ज्यादातर बस्तर के जनजाति हैं।
इन आंकड़ों से यह साफ होता है कि माओवाद के शिकार वही लोग हैं, जिनके नाम पर यह आंदोलन चलाया जाता है।
प्रमुख वक्ताओं ने यह भी बताया कि माओवादी हिंसा को कुछ लोग 'आक्रोश की अभिव्यक्ति' बताकर सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन ऐसा करना उन पीड़ितों का अपमान है जिन्होंने अपनों को खोया है। अगर माओवादी सच में शांति चाहते हैं, तो उन्हें पहले हिंसा और हथियारों को त्यागना होगा। बिना इसके कोई भी वार्ता केवल एक दिखावा साबित होगी।
पत्र में 2004 में हुई शांति वार्ता का जिक्र भी किया गया है, जिसके बाद 2010 में ताड़मेटला में हुआ नरसंहार आज भी एक कड़वी सच्चाई के रूप में याद किया जाता है। इससे यह साफ है कि माओवादी वार्ता को केवल रणनीतिक चाल के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
वक्ताओं ने यह भी कहा कि जो संगठन माओवादियों के फ्रंटल ग्रुप के रूप में काम कर रहे हैं, उनकी पहचान कर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।
ये संगठन बाहर से तो सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरह दिखते हैं लेकिन अंदर से नक्सल विचारधारा को ही बढ़ावा देते हैं।
सलवा जुडूम की बार-बार आलोचना करना भी माओवादी एजेंडे का हिस्सा बताया गया। वक्ताओं ने कहा कि बस्तर की जनता खुद सबसे ज्यादा इस हिंसा की शिकार रही है और वह चाहती है कि माओवाद को हमेशा के लिए खत्म किया जाए।
पत्र में सरकार से चार प्रमुख मांगें रखी गईं:
1. नक्सल विरोधी अभियानों को लगातार और और भी सशक्त रूप में जारी रखा जाए।
2. माओवादी और उनके समर्थक संगठनों से किसी भी प्रकार की वार्ता तभी हो जब वे हिंसा छोड़ने को तैयार हों।
3. माओवादी फ्रंटल संगठनों और उनके समर्थकों पर कड़ी वैधानिक कार्रवाई की जाए।
4. बस्तर के विकास और शांति के लिए ठोस और दीर्घकालिक कदम उठाए जाएं।
इस पत्र पर 15 से ज्यादा संस्थाओं और कई प्रबुद्धजनों ने हस्ताक्षर किए हैं। इनमें Intellectual Forum of Chhattisgarh, Bharat Lawyers Forum, Society For Policy and Strategic Research, Bastar Shanti Samiti और Writers For The Nation जैसे मंच शामिल हैं।
हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल हैं:
न्यायमूर्ति राकेश सक्सेना (सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश, मध्य प्रदेश), मेजर जनरल मृणाल सुमन (सेना के पूर्व अधिकारी), ब्रिगेडियर राकेश कुमार शर्मा (सेना के पूर्व अधिकारी), डॉ. प्रो. एस.के. पांडे (पूर्व कुलपति), डॉ. प्रो. बी.के. स्थापक (पूर्व कुलपति), श्री अनुराग पांडे (सेवानिवृत्त आईएएस), श्री श्याम सिंह कुमरे (सेवानिवृत्त आईएएस), श्री राकेश चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त आईएफएस), न्यायमूर्ति प्रकाश भाऊ उइके (पूर्व न्यायाधीश), डॉ. टी.डी. डोगरा (पूर्व निदेशक, एम्स दिल्ली), श्री भास्कर राव किन्हेकर (सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी), श्री बी. गोपा कुमार (पूर्व उप सॉलिसिटर जनरल), श्री शैलेन्द्र शुक्ला (पूर्व निदेशक, क्रेडा), श्रीमती किरण सुषमा खोया (जनजातीय कार्यकर्ता), श्रीमती ऋतु जैन (चार्टर्ड अकाउंटेंट), प्रो. दिनेश नंदिनी परिहार (सेवानिवृत्त प्रोफेसर, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय), श्री कौस्तुभ शुक्ला (अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय), श्री संघर्ष पांडे (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री विवेक सिद्धार्थ ओझा (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री सृजन पांडे (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री वैभव पी. शुक्ला (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री जय प्रकाश शुक्ला (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री पुष्कर सिन्हा (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री अनुपम दुबे (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री पलाश अग्रवाल (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री अमन तंबोली (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री विवेक अग्रवाल (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), सुश्री ज्योति सिंह (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री राजेश वर्मा (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री जय सिंह (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री सुरेंद्र देवांगन (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), अधिवक्ता सुप्रिया उपासने (अधिवक्ता, उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़), श्री गोपाल समंता (सामाजिक कार्यकर्ता), श्री गोरख नाथ बघेल (सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक), और श्री विक्रांत सिंह कुमरे (अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय)।
यह प्रेस वार्ता सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि बस्तर के दर्द और देश की जिम्मेदारी की अभिव्यक्ति थी। अब यह आवाज़ पूरे देश में गूंज रही है कि बस्तर को नक्सल आतंक से आज़ादी चाहिए।