छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जिला, जो एक समय केवल नक्सल हिंसा के लिए जाना जाता था, अब विकास और उम्मीद का प्रतीक बन रहा है।
एक ओर जहां सुरक्षाबलों के लगातार ऑपरेशनों से नक्सलियों की कमर टूटी है, वहीं दूसरी ओर प्रशासन अब बच्चों और युवाओं के भविष्य को मजबूत करने में जुटा है।
बस्तर में खेलों के माध्यम से एक नई क्रांति की शुरुआत हो चुकी है।
जिला प्रशासन ने मान देशी फाउंडेशन और सचिन तेंदुलकर फाउंडेशन के सहयोग से ‘मैदान कप’ की शुरुआत की है।
इसके तहत दंतेवाड़ा जिले के 50 गांवों में खेल मैदान विकसित किए जा रहे हैं।
अभी तक 20 गांवों में मैदान बनकर तैयार हो चुके हैं, जहां बच्चे दौड़ना, कूदना और विभिन्न खेलों में हिस्सा लेना शुरू कर चुके हैं।
दंतेवाड़ा कलेक्टर कुनाल डुडावत ने बताया कि इन मैदानों को स्थानीय लोगों की मदद से सरकारी स्कूलों की जमीन पर तैयार किया गया है।
यहां रनिंग ट्रैक, शॉट पुट, जैवलिन थ्रो, लॉन्ग जंप, वॉल क्लाइंबिंग जैसे 13 तरह के खेलों की सुविधाएं दी जा रही हैं।
हर मैदान पर चार लाख रुपये से भी कम खर्च आया है। स्थानीय बच्चों ने खुद अपने हाथों से मैदान की दीवारों पर रंग-बिरंगी पेंटिंग की है।
पिछले साल बस्तर ओलंपिक्स 2024 का आयोजन हुआ था, जिसमें बस्तर के सात जिलों के हजारों युवाओं ने भाग लिया।
इस आयोजन का उद्देश्य था कि नक्सल प्रभावित इलाकों के युवाओं को खेलों के माध्यम से मुख्यधारा से जोड़ा जाए और उन्हें एक नई पहचान दी जाए।
उसी दिशा में 'मैदान कप' एक मजबूत कदम साबित हो रहा है।
मान देशी फाउंडेशन की दिव्या सिन्हा बताती हैं कि दंतेवाड़ा में पहली बार ऐसा हुआ है जब गांववाले खुद बच्चों के लिए खेल मैदान बना रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यहां के बच्चे कभी गोल करने की खुशी या कबड्डी में जीतने का गर्व नहीं महसूस कर पाए थे। लेकिन अब यह सब बदल रहा है।
खेल मैदान बच्चों की मानसिक सेहत बेहतर करते हैं, उन्हें स्कूल से जोड़े रखते हैं और उन्हें हिंसा की ओर जाने से रोकते हैं।
अब तक छिंदनार, हीतमेटा और कसोली जैसे गांवों में मैदान तैयार हो चुके हैं, जिनसे लगभग 10,000 बच्चों को सीधा फायदा मिला है।
100 स्कूलों के खेल शिक्षकों को खास ट्रेनिंग दी जा चुकी है ताकि वे बच्चों को सही तरीके से मार्गदर्शन दे सकें।
दंतेवाड़ा प्रशासन अब एक आवासीय स्पोर्ट्स सिटी भी बना रहा है, जहां प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को विशेष प्रशिक्षण मिलेगा।
इसमें क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, तैराकी और अन्य खेलों की सुविधाएं होंगी।
कलेक्टर डुडावत ने कहा, "हम चाहते हैं कि अगला देश का चैंपियन खिलाड़ी बस्तर से निकले। यहां के युवा मजबूत शरीर और खेल कौशल के साथ देश की पुलिस और सेना में जाते हैं। अब वे खेल के मैदान में भी चमकेंगे।"
साफ है कि अब बस्तर केवल नक्सल प्रभावित इलाका नहीं रहा, बल्कि खेल और विकास के रास्ते पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।
जहां एक तरफ बंदूक की आवाजें अब कम हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ मैदान में गूंजती सीटी और बच्चों की खिलखिलाहट सुनाई दे रही है। यही असली जीत है बस्तर की।