12 जून के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय के पश्चात 1, सफदरजंग रोड पर प्रधानमंत्री आवास में सरगर्मी बढ़ गई। यहां से संजय गांधी सारे सूत्र हिला रहे थे।
इंदिरा जी का इस्तीफा मांगने वाले विपक्षी दलों पर कड़ी कार्रवाई करने का मन, प्रधानमंत्री कार्यालय बना चुका था।
इसी बीच संजय गांधी ने सारे कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों से कहा कि उन्हें इंदिरा गांधी के समर्थन में बड़ी रैलियां करनी हैं।
बस, चाटुकार मुख्यमंत्रियों की होड़ लग गई, कौन ज्यादा भीड़ जुटाता है, इस पर।
18 जून को दिल्ली में मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकर यही संदेश दिया गया। इस बैठक में केंद्रीय मंत्री यशवंतराव चव्हाण सहित सभी मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों ने इंदिरा जी की तारीफ के जबरदस्त पुल बांधे।
इधर विपक्षी पार्टियां भी तैयारी कर रही थीं। 21 और 22 जून को जनता मोर्चा की घटक पार्टियों के कार्यकारिणी सदस्यों की बैठक दिल्ली में हुई।
इसमें इंदिरा गांधी के त्यागपत्र की मांग करने के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा करने का निर्णय लिया गया।
जयप्रकाश नारायण जी ने इस आंदोलन में सम्मिलित होने हेतु स्वीकृति दी।
इंदिरा गांधी, संजय गांधी, बंसीलाल, आर. के. धवन, यशपाल कपूर, ये सारे लोग इस समय प्रशासन की सर्जरी करने में लगे थे।
सभी बड़े महत्व के स्थान पर संजय गांधी के खास विश्वासपात्र व्यक्ति लाने हेतु आदेश जारी हो रहे थे।
विपक्ष पर निर्णायक प्रहार करने का निर्णय लिया गया। तिथि भी निश्चित हुई। इंदिरा जी की केस सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए जिस दिन आएगी, उसके दूसरे दिन विपक्ष पर अंतिम घाव करने की योजना बनाई गई।
20 जून को सारी सरकारी व्यवस्थाओं की मदद से कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के समर्थन में दिल्ली में एक बड़ी रैली की।
इसमें अच्छी खासी भीड़ जुटाई गई। वक्ताओं ने इंदिरा गांधी की प्रशंसा की और सारी सीमाएं तोड़ दीं। कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने अपने भाषण में कहा -
कांग्रेस की इस रैली का समाचार दूरदर्शन पर नहीं आ सका। कारण..? आई के गुजराल सूचना प्रसारण मंत्री थे, और यह रैली पार्टी की थी, सरकार की नहीं। इसलिए उन्होंने इसे दूरदर्शन पर आने से रोका।
इस बात को लेकर आई के गुजराल और संजय गांधी के बीच कहासुनी हो गई।
आखिर आई के गुजराल को सूचना प्रसारण मंत्रालय छोड़ना पड़ा। उनकी जगह लाए गए मध्य प्रदेश के विद्याचरण शुक्ला।
इस रैली के बाद इंदिरा जी काम करने लगीं, विपक्ष को समाप्त करने की स्थायी योजना पर।
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने आपातकाल का सुझाव दिया, जिसमें संविधान की धारा 19 को स्थगित रखते हुए आम नागरिकों के सभी मूलभूत अधिकार छिन सकते हैं।
इंदिरा जी को यह पसंद आया। कानून मंत्री हरीभाऊ गोखले अब इसे कानूनी जामा पहनाने के प्रयास में लग गए।
अर्थात यह निर्णय स्वतः इंदिरा गांधी, संजय गांधी, बंसीलाल, ओम मेहता, किशनचंद, सिद्धार्थ शंकर रे और हरिभाऊ गोखले के अलावा किसी को नहीं मालूम था।
इसी बीच, 25 जून को विपक्षी दलों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक भव्य रैली का आयोजन किया।
यह रैली सभी अर्थों में भव्य थी, विशाल थी, स्वयंस्फूर्त थी और उत्साही थी।
इस रैली में मोरारजी देसाई, नानाजी देशमुख, जॉर्ज फर्नांडीज, मदनलाल खुराना आदि नेताओं के भाषण हुए।
समापन का भाषण लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया। उन्होंने पांच सदस्यों की 'लोक संघर्ष समिति' की घोषणा की, जिसके अध्यक्ष मोरारजी भाई देसाई और सचिव नानाजी देशमुख थे।
इस सभा में जयप्रकाश जी ने जनता से एक प्रश्न किया, "देश में नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना करने के लिए यदि जेल जाना पड़े तो कौन-कौन जाने के लिए तैयार है?" सभी ने हाथ खड़े किए। (अर्थात 24 घंटे के अंदर ही सत्य स्थिति सामने आई।)
इधर, रात को इंदिरा गांधी, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से मिलने गईं।
उन्हें संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लगाने वाले अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा।
राष्ट्रपति जी ने भी अत्यंत निष्ठावान कार्यकर्ता के जैसे, बिना कुछ प्रश्न पूछे, रात में 11.45 पर इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए।
बिलकुल इसी तरह, 42 वर्ष पहले हिटलर ने जर्मनी के चांसलर पॉल वॉल हिंडेनबर्ग से 28 फरवरी 1933 को एक अध्यादेश पर हस्ताक्षर करवा लिए थे।
इस अध्यादेश के द्वारा जर्मनी के नागरिकों के सारे मूलभूत अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। इंदिरा गांधी ने हूबहू हिटलर को दोहरा दिया..!
इधर दिल्ली में रामलीला मैदान की सभा समाप्त करके सब लोग अपने-अपने घर पहुंचकर सोने की तैयारी में लगे थे।
जयप्रकाश जी भी सोने के लिए चले गए। मध्यरात्रि 1 बजे के लगभग, पुलिस के उच्च अधिकारियों ने उन्हें जगाया और कहा कि "आपको गिरफ्तार किया जाता है"।
जयप्रकाश जी समझ गए। उन्होंने मात्र इतना ही कहा - 'विनाश काले विपरीत बुद्धि..!' (क्रमश:)
लेख
प्रशांत पोळ
लेखक, चिंतक, विचारक