छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जंगल में 21 मई 2025 को हुए एक बड़े नक्सली मुठभेड़ में नक्सलियों के शीर्ष आतंकी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव, उर्फ बसव राजू, सहित 27 अन्य नक्सलियों के मारे जाने के बाद, नक्सली संगठन ने इस घटना के विरोध में 10 जून को भारत बंद का आह्वान किया है। इसके साथ ही, नक्सलियों ने पहली बार 11 जून से 3 अगस्त तक तथाकथित "शहीदी माह" मनाने की घोषणा की है, जो उनकी परंपरागत शहीदी सप्ताह से एक बड़ा बदलाव है।
इस दौरान माओवादी बस्तर, तेलंगाना, और आंध्र प्रदेश में विभिन्न आयोजन करने का प्रयास करेंगे। ऐतिहासिक रूप से, नक्सलियों के बंद और तथाकथित शहीदी आयोजनों के दौरान हिंसक वारदातों की आशंका रहती है, जिसके चलते बस्तर में सुरक्षा बलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। हाल ही में, बस्तर के पूवर्ती गांव में एक जनजातीय ग्रामीण की नक्सलियों द्वारा हत्या ने इस क्षेत्र में भय को और बढ़ा दिया है।
फ़ोर्स का ऑपरेशन और बसव राजू की मौत
21 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ जंगल में नक्सल उन्मूलन ऑपरेशन के तहत सुरक्षा बलों ने एक बड़े पैमाने पर नक्सल विरोधी अभियान चलाया। इस 50 घंटे के अभियान में नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, और कोंडागांव के डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG), विशेष कार्य बल (STF), और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की कोबरा इकाई शामिल थी।
इस मुठभेड़ में नक्सलियों के शीर्ष नेता बसव राजू सहित 27 नक्सली मारे गए, जिनमें 12 महिलाएँ भी शामिल थीं। मुठभेड़ स्थल से तीन एके-47 राइफल, चार सेल्फ-लोडिंग राइफल (SLR), छह इंसास राइफल, एक कार्बाइन, छह .303 राइफल, एक बैरल ग्रेनेड लॉन्चर, दो रॉकेट लॉन्चर, दो 12 बोर बंदूकें, एक देसी पिस्तौल, दो मज़ल-लोडिंग बंदूकें, और भारी मात्रा में विस्फोटक बरामद किए गए।
बसव राजू, जो 1970 के दशक से नक्सली आंदोलन से जुड़ा था, माओवादी संगठन के सबसे बड़े रणनीतिकारों में से एक था। उसके सिर पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था, जिसमें छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्रीय गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और आंध्र प्रदेश व ओडिशा ने इनाम घोषित किया था। बसव राजू को नक्सलियों की पीपुल्स लिबरेशन गैरिला आर्मी (PLGA) का संस्थापक माना जाता था, और वह विस्फोटकों, विशेष रूप से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) बनाने में विशेषज्ञ था।
बसव राजू के कारण बस्तर में कई बड़े हमले हुए, जिनमें 2010 का दंतेवाड़ा हमला, जिसमें 76 CRPF जवान बलिदान हुए, और 2013 का झीरम घाटी नरसंहार, जिसमें छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता मारे गए, शामिल हैं। बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने इस ऑपरेशन को नक्सलवाद के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी सफलता करार दिया था। उन्होंने कहा, “यह ऑपरेशन नक्सली संगठन के लिए एक बड़ा झटका है, और यह उनकी कमजोर होती स्थिति को दर्शाता है।”
नक्सलियों का भारत बंद और शहीदी माह का आह्वान
नक्सलियों की केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने 28 मई को एक प्रेस नोट जारी कर मुठभेड़ में 28 नक्सलियों के मारे जाने की पुष्टि की, जिसमें बसव राजू भी शामिल था। इस मुठभेड़ के विरोध में, नक्सलियों ने 10 जून को भारत बंद का आह्वान किया है। इसके अलावा, नक्सलियों ने 11 जून से 3 अगस्त तक शहीदी माह मनाने की घोषणा की है, जो उनकी परंपरागत शहीदी सप्ताह (28 जुलाई से शुरू) से अलग है।
नक्सलियों के इतिहास में शहीदी सप्ताह हिंसक गतिविधियों का पर्याय रहा है। पिछले वर्षों में, इस दौरान नक्सलियों ने सड़कें अवरुद्ध कीं, वाहनों में आग लगाई, और सुरक्षा बलों पर हमले किए। इस बार तथाकथित शहीदी माह की घोषणा ने सुरक्षा बलों की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि यह एक लंबी अवधि तक हिंसक गतिविधियों की संभावना को दर्शाता है। बस्तर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन) विवेकानंद सिन्हा ने कहा, “हम नक्सलियों की हर गतिविधि पर नजर रख रहे हैं। बंद और शहीदी माह के दौरान सुरक्षा बल पूरी तरह तैयार रहेंगे।”
पूवर्ती गांव में हत्या और सुरक्षा चुनौतियाँ
इस बीच शनिवार, 7 जून की रात, बस्तर के पूवर्ती गांव में नक्सलियों ने एक जनजातीय ग्रामीण, बोडके रामा की धारदार हथियार से हत्या कर दी। नक्सलियों ने उन पर मुखबिरी का आरोप लगाया, लेकिन इस हत्या के संबंध में कोई पर्चा जारी नहीं किया गया।
यह घटना सुरक्षा बलों के कैंप के निकट हुई, जिसने क्षेत्र में नक्सलियों की मौजूदगी और उनकी हिंसक रणनीति को फिर से उजागर किया। पूवर्ती गांव माओवादी आतंकी कमांडर मडवी हिड़मा का गांव है, जो अब भी फरार है। हिड़मा को 2010 के चिंतलनार हमले और 2013 के झीरम घाटी नरसंहार का मास्टरमाइंड माना जाता है।
पुलिस ने इस हत्या की जाँच शुरू कर दी है और शामिल नक्सलियों की तलाश कर रही है। पुलिस ने कहा, “हम इस घटना को गंभीरता से ले रहे हैं। पूवर्ती जैसे क्षेत्रों में नक्सलियों की गतिविधियों को रोकने के लिए अतिरिक्त बल तैनात किए गए हैं।” इस हत्या ने स्थानीय समुदाय में डर का माहौल पैदा कर दिया है, क्योंकि नक्सली अक्सर मुखबिरी के शक में ग्रामीणों को निशाना बनाते हैं।
सुरक्षा बलों की रणनीति और चुनौतियाँ
नक्सल उन्मूलन ऑपरेशन, जिसे 19 मई को शुरू किया गया था, नक्सलियों के खिलाफ अब तक का सबसे प्रभावी अभियान माना जा रहा है। इस अभियान में 10,000 से अधिक सैनिक शामिल थे, और यह बस्तर के खनिज-समृद्ध क्षेत्रों में नक्सलियों की उपस्थिति को कमजोर करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त रणनीति का हिस्सा था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस ऑपरेशन को “नक्सलवाद के खिलाफ तीन दशकों में सबसे बड़ी जीत” करार दिया और कहा कि सरकार 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
हालांकि, नक्सलियों का भारत बंद और शहीदी माह का आह्वान सुरक्षा बलों के लिए नई चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकता है। बस्तर के भीतरी इलाकों में परिवहन व्यवस्था को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि नक्सली अक्सर सड़कों को अवरुद्ध करते हैं और वाहनों पर हमला करते हैं।
बस्तर में हाल की घटनाएँ, जैसे पूवर्ती गांव में हत्या, दर्शाती हैं कि नक्सली अभी भी स्थानीय समुदायों में भय पैदा करने में सक्षम हैं। सुरक्षा बलों को न केवल नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों का सामना करना होगा, बल्कि ग्रामीणों के बीच विश्वास भी बहाल करना होगा।
बसव राजू की मौत और नक्सल उन्मूलन ऑपरेशन ने माओवादी संगठन को गहरा झटका दिया है, लेकिन भारत बंद और शहीदी माह की घोषणा दर्शाती है कि नक्सली अभी भी सक्रिय हैं। बस्तर में सुरक्षा बलों के सामने न केवल हिंसक वारदातों को रोकने की चुनौती है, बल्कि स्थानीय समुदायों में विश्वास बढ़ाने करने की भी जिम्मेदारी है। पूवर्ती गांव की हालिया हत्या और हिड़मा की फरारी इस बात का संकेत है कि दक्षिण बस्तर क्षेत्र में नक्सलवाद का खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। अगले कुछ हफ्तों में बस्तर की स्थिति पर पूरे देश की नजर रहेगी।