भारतीय स्वाधीनता दिवस – एकजुट भारत की अदम्य इच्छाशक्ति का प्रतीक

स्वाधीनता दिवस भारत की अमर गाथा है जो हमें हर परिस्थिति में देशहित को सर्वोपरि रखने की प्रेरणा देती है।

The Narrative World    15-Aug-2025
Total Views |
Representative Image
 
15 अगस्त, 1947 भारत के इतिहास का वह दिन है जिसे हर भारतीय गर्व और सम्मान से याद करता है। यह केवल स्वाधीनता का दिन नहीं बल्कि सदियों के संघर्ष, त्याग और बलिदान का परिणाम है।
 
भारत को यह स्वाधीनता सहज नहीं मिली। लगभग 800 वर्षों तक देश ने विदेशी आक्रमणों का सामना किया। पहले इस्लामिक आक्रमणकारी आए, जिन्होंने हमारी संस्कृति, परंपराओं और पहचान को मिटाने का प्रयास किया। फिर ईसाई शक्तियां आईं, जिन्होंने व्यापार के बहाने भारत में पैर जमाए और धीरे-धीरे पूरे देश पर अपना शासन स्थापित कर लिया।
 
इस लंबे कालखंड में लाखों-करोड़ों भारतीयों ने स्वाधीनता के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए। अनगिनत युद्ध लड़े गए, कई क्रांतियां हुईं और हर बार भारत के वीरों ने यह साबित किया कि वे पराधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। चाहे मैदान-ए-जंग में तलवार से लोहा लेना हो या फांसी के फंदे पर झूलना, हर बलिदान ने स्वाधीनता की नींव को मजबूत किया।
 
भारत के इतिहास में वीरांगनाओं की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण रही। रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, मातंगिनी हाजरा और असंख्य महिलाएं स्वाधीनता की लड़ाई में अग्रिम पंक्ति में रहीं। उन्होंने यह दिखा दिया कि देशभक्ति का जज़्बा किसी लिंग या उम्र से नहीं बंधा होता।
 
Representative Image 
अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम संघर्ष 19वीं और 20वीं सदी में तेजी से बढ़ा। क्रांतिकारियों ने अपने साहस और अदम्य इच्छाशक्ति से अंग्रेजी शासन की नींव हिला दी। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु जैसे युवाओं ने हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर किए। दूसरी ओर महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और अनेक नेताओं ने जनांदोलनों, असहयोग, सविनय अवज्ञा और आज़ादी के नारों से पूरे देश को एकजुट कर दिया।
 
स्वाधीनता संग्राम केवल किसी एक वर्ग, धर्म या जाति की लड़ाई नहीं था। यह पूरे भारतवर्ष का आंदोलन था, जिसमें किसान, मजदूर, विद्यार्थी, व्यापारी, साधु-संत, लेखक और कलाकार, सभी ने अपनी भूमिका निभाई। यही एकजुटता अंग्रेजों को यह एहसास कराने में सफल रही कि अब भारत को गुलाम बनाए रखना असंभव है।
अंततः 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया और हमारे पूर्वजों का सपना सच हो गया। यह दिन केवल जश्न का अवसर नहीं, बल्कि यह याद दिलाता है कि आज़ादी पाने के लिए कितने बलिदानों की जरूरत पड़ी।
 
आज जब हम तिरंगा लहराते हैं, तो हमें उन बलिदानियों को याद करना चाहिए जिनके खून से यह आज़ादी सींची गई। स्वाधीनता दिवस हमें यह संकल्प दिलाता है कि हम अपने देश की रक्षा, सम्मान और प्रगति के लिए सदैव तत्पर रहेंगे।
 
लेख
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़