रायपुर प्रेस क्लब में बस्तर के नक्सल पीड़ितों ने प्रेस वार्ता कर अपने जख्म और दर्द देश के सामने रखे। पीड़ितों ने सांसदों से अपील की कि उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को समर्थन ना दिया जाए, क्योंकि उन्हीं के फैसले ने बस्तर की जंजाती जनता पर नक्सलवाद का कहर बढ़ाया।
सलवा जुडूम पर रोक और नक्सलियों की ताकत
बस्तर शांति समिति के बैनर तले हुए इस कार्यक्रम में पीड़ितों ने कहा कि जब सलवा जुडूम मजबूत हो रहा था, तब नक्सली कमजोर पड़ गए थे और खत्म होने की कगार पर थे। लेकिन दिल्ली में बैठे कुछ नक्सल समर्थकों के दबाव और बी. सुदर्शन रेड्डी के आदेश पर इस आंदोलन पर रोक लगा दी गई। इस फैसले ने माओवाद को फिर से पनपने का मौका दिया और बस्तर की धरती को लहूलुहान कर दिया।
गोली, पत्थर और दिव्यांग जिंदगी
नक्सल पीड़ित सियाराम रामटेके ने बताया कि अगर यह विवादित फैसला न आया होता तो उनकी जिंदगी अलग होती। माओवादियों ने उन पर तीन गोलियां चलाईं, पत्थरों से हमला किया और मरा समझकर छोड़ गए। आज वे दिव्यांग जीवन जी रहे हैं। सियाराम ने कहा कि जब उन्होंने सुना कि सुदर्शन रेड्डी बड़े पद के उम्मीदवार बनाए गए हैं तो उन्हें गहरा आघात लगा।
भाई की बर्बर हत्या
एक अन्य पीड़ित केदारनाथ कश्यप ने बताया कि सलवा जुडूम खत्म होने के बाद नक्सलियों ने उनके भाई का पेट चीरकर अमाशय बाहर निकाल दिया। उन्होंने कहा कि अगर 2011 में प्रतिबंध नहीं लगता तो 2014 तक उनका इलाका नक्सल मुक्त हो गया होता और उनका भाई आज जीवित होता।
शहीद जवान की विधवा की पुकार
नक्सल हिंसा में शहीद जवान मोहन उड़के की पत्नी ने रोते हुए कहा कि सलवा जुडूम बंद होने के बाद ही माओवादियों ने घात लगाकर उनके पति की हत्या कर दी। उस समय उनकी गोद में तीन महीने की बच्ची थी, जिसने कभी अपने पिता को देखा ही नहीं। आज वही बेटी मां के साथ देश से न्याय की गुहार लगाने पहुंची।
32 की जान लेने वाला बस हमला
चिंगावरम हमले के पीड़ित महादेव दूधी ने टूटी-फूटी हिंदी और गोंडी में कहा कि किस तरह माओवादियों ने आम यात्री बस को निशाना बनाया। उस हमले में 32 लोग मारे गए और उन्होंने अपना एक पैर खो दिया। आज वे मजबूरी में अपाहिज जिंदगी जी रहे हैं।
हजारों परिवार आज भी आहत
बस्तर शांति समिति के जयराम और मंगऊ राम कावड़े ने कहा कि दिल्ली से रायपुर लौटे ये पीड़ित केवल अपनी व्यथा नहीं सुना रहे, बल्कि पूरे बस्तर की आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हजारों परिवार सलवा जुडूम पर रोक के कारण तबाह हुए और नक्सल आतंक का शिकार बने। ऐसे में सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
पीड़ितों ने दोहराया कि नक्सलियों की बंदूक और रेड्डी जैसे फैसले दोनों ने बस्तर को नर्क बनाया है। यही कारण है कि वे देश से अपील कर रहे हैं कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को समर्थन ना दिया जाए जिसने नक्सलवाद को मजबूत किया और जंजाती समाज की पीड़ा को अनदेखा किया।
रिपोर्ट
शोमेन चंद्र
तिल्दा, छत्तीसगढ़