ब्रिटेन के ल्यूटन शहर में एक ऐसी घटना ने तूल पकड़ा है, जो देश की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान पर सवाल उठा रही है। स्थानीय ब्रिटिश समुदाय द्वारा फहराए गए अंग्रेजी ध्वजों (सेंट जॉर्ज क्रॉस और यूनियन जैक) को पाकिस्तानी मुस्लिम समुदाय द्वारा अपने ध्वज से नीचे करने की खबरें सामने आई हैं, जिसे कई लोग ब्रिटेन में इस्लामी प्रभाव के बढ़ते प्रभुत्व का प्रतीक मान रहे हैं।
ल्यूटन, जो एक समय टॉमी रॉबिनसन जैसे फार-राइट कार्यकर्ताओं के गढ़ के रूप में जाना जाता था, अब एक ऐसी परिस्थिति पर पहुंच गया है, जहां राष्ट्रीय पहचान और आप्रवासी मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्ष की स्थिति बन चुकी है।
स्थानीय रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तानी समुदाय के कुछ लोगों ने लैंप-पोस्ट्स और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर फहराए गए अंग्रेजी ध्वजों को हटाकर अपने ध्वज को ऊंचा फहराया है, जिसे वे क्षेत्र पर अपना दावा जताने के रूप में देख रहे हैं। यह कदम स्थानीय निवासियों द्वारा "धार्मिक और सांस्कृतिक आक्रमण" के रूप में देखा जा रहा है।
इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई है, जहां कई यूजर्स ने इसे "इस्लामी आक्रमण" का प्रतीक बताया है। एक ट्विटर यूजर ने लिखा, "ल्यूटन में पाकिस्तानी ध्वज अंग्रेजी ध्वज से ऊपर फहराया जा रहा है, यह दिखाने के लिए कि यह क्षेत्र अब उनका है।" स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह ब्रिटेन की राष्ट्रीय पहचान और एकता को चुनौती देने लगा है।
यह घटना ब्रिटेन में बढ़ते इस्लामी प्रभाव और स्थानीय समुदायों के बीच तनाव की पृष्ठभूमि में आई है। हाल के वर्षों में, देश में शरिया परिषदों, हलाल स्लॉटर, और अन्य इस्लामी प्रथाओं को लेकर विवाद लगातार बढ़े हैं। लेबर सरकार की नीतियों को लेकर आलोचकों का कहना है कि यह देश की सांस्कृतिक और कानूनी पहचान को बदल रहा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, ल्यूटन में इस तरह की घटनाएं पहली बार नहीं हुई हैं। पिछले कुछ महीनों में, शहर में अंग्रेजी ध्वज फहराने के अभियान को लेकर भी विवाद हुआ था। अब, पाकिस्तानी ध्वज को ऊंचा फहराने की घटना ने इस संघर्ष को और तीखा कर दिया है। कुछ स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह घटना ब्रिटेन में इस्लामी समुदाय के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक है, जो देश की राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाल रही है।
इस मुद्दे पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। कंजर्वेटिव सांसदों और फार-राइट ग्रुप्स ने लेबर सरकार पर निशाना साधा है और आरोप लगाते हुए कहा है कि उनकी नीतियां देश को एक ऐसे रास्ते पर ले जा रही हैं, जहां से वापस लौटना मुश्किल हो जाएगा। दूसरी ओर, लेबर सरकार और कुछ लिबरल ग्रुप्स का कहना है कि यह केवल सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है, और इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।
हालांकि, इस घटना ने ब्रिटेन में सांस्कृतिक और धार्मिक तनाव को और बढ़ा दिया है। ल्यूटन जैसे शहर, जो एक समय आप्रवासियों के एकीकरण का उदाहरण थे, अब एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं, जहां राष्ट्रीय पहचान और आप्रवासी पहचान के बीच संघर्ष साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। यह घटना न केवल स्थानीय समुदायों को बांट रही है, बल्कि यह ब्रिटेन की भविष्य की दिशा पर भी सवाल उठा रही है।
शरिया को लेकर भी छिड़ा है विवाद
वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन की संसद में एक ऐसी बहस ने तूल पकड़ा है, जो देश की सांस्कृतिक, धार्मिक और कानूनी पहचान पर सवाल उठा रही है। लेबर पार्टी की मंत्री सारा सैकमैन ने हाल ही में हाउस ऑफ कॉमंस में शरिया परिषदों (शरिया काउंसिल) को "धार्मिक सहिष्णुता" का हिस्सा बताते हुए उनका बचाव किया, जिससे देश भर में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। यह बयान न केवल ब्रिटेन की कानूनी व्यवस्था पर, बल्कि महिलाओं के अधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े करता है, और इस्लामी तुष्टिकरण की नीतियों को लेकर आलोचकों ने सरकार पर निशाना साधा है।
सारा सैकमैन, जो वर्तमान में कोर्ट्स और लीगल सर्विसेज की स्टेट मिनिस्टर हैं, ने 16 सितंबर को संसद में कहा कि शरिया परिषदें स्वैच्छिक और गैर-बाध्यकारी फोरम हैं, जो सिविल विवादों को हल करने के लिए मुस्लिम समुदाय में काम करती हैं। उन्होंने इन परिषदों की तुलना यहूदी बीथ डिन (Beth Din) और अन्य धार्मिक निकायों से की।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटेन में 30 से 85 के बीच शरिया परिषदें काम कर रही हैं, और इनमें से कई मामलों में महिलाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाया गया है। द गार्डियन की एक रिपोर्ट (2017) में खुलासा हुआ कि इन परिषदों ने घरेलू हिंसा और वैवाहिक बलात्कार को सही ठहराया है, जबकि महिलाओं को धार्मिक तलाक (खुला) हासिल करने के लिए इन परिषदों पर निर्भर रहना पड़ता है। यह स्थिति विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के लिए खतरनाक साबित हो रही है, जो इन परिषदों के फैसलों के आगे असहाय हो जाती हैं।
कंजर्वेटिव सांसद निक टिमोथी ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है, उन्होंने कहा है कि शरिया परिषदें देश में एक समानांतर कानूनी व्यवस्था बना रही हैं, जहां महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है। उन्होंने ट्विटर (X) पर लिखा, "शरिया परिषदों के 'न्यायाधीश' अक्सर घरेलू हिंसा और वैवाहिक बलात्कार को सही ठहराते हैं।"
ब्रिटेन में शरिया परिषदों की संख्या और इनके प्रभाव पर सटीक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि ये परिषदें देश के विभिन्न हिस्सों में काम कर रही हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां मुस्लिम आबादी घनी है।कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस ट्रेंड को रोका नहीं गया, तो 2050 तक ब्रिटेन में मुस्लिम आबादी बहुमत में आ सकती है, जिससे देश की सांस्कृतिक और कानूनी पहचान में और भी गंभीर बदलाव आएंगे।