माओवादियों में वर्चस्व की लड़ाई: क्या संगठन में फूट से ही आया शांति का विचार?

माओवादी हिंसा छोड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन क्या यह सच है या सुरक्षाबलों का दबाव कम करने की चाल?

The Narrative World    20-Sep-2025
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माओवादी संगठन एक बार फिर से शांति वार्ता की बात कर रहा है, लेकिन अंदरूनी विरोधाभास और अलग-अलग बयान यह साफ दिखाते हैं कि यह सब सिर्फ दिखावा है। एक तरफ पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू उर्फ वेणुगोपाल जनता से माफी मांगते हुए कह रहे हैं कि संगठन अपने मकसद में नाकाम रहा है और अब बातचीत ही रास्ता है। वहीं दूसरी ओर तेलंगाना राज्य समिति साफ कह रही है कि यह सोनू की निजी राय है, पार्टी का आधिकारिक फैसला नहीं।
 
यह टकराव यह साबित करता है कि संगठन अब अंदर से टूट चुका है। बार-बार नेताओं के मारे जाने और सैकड़ों कैडरों के आत्मसमर्पण ने उनकी ताकत को खत्म कर दिया है। यही वजह है कि अब वह जनता को गुमराह करने के लिए शांति का नकाब पहन रहे हैं।
 
सोनू का बयान जनता को शांत करने और सुरक्षा बलों का दबाव कम करने की कोशिश है। जबकि पार्टी का दूसरा धड़ा अभी भी खून-खराबे और हिंसा पर अड़ा हुआ है। यही दोहरी रणनीति माओवादियों की असली सोच दिखाती है – जनता को धोखे में रखना और हिंसा को कभी न छोड़ना।
 
सुरक्षा बलों ने पिछले एक साल में कई बड़े माओवादी नेताओं को ढेर कर संगठन की कमर तोड़ दी है। इसके बावजूद माओवादी बार-बार अलग-अलग बयान देकर जनता में भ्रम फैलाना चाहते हैं। सच यह है कि उनका आंदोलन अब खत्म होने की कगार पर है और उनकी “शांति वार्ता” महज़ समय खरीदने की चाल है।
 
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माओवादी आंदोलन की टाइमलाइन
 
2004: पीपुल्स वार ग्रुप और MCC मिलकर CPI (माओवादी) का गठन।
 
2007: रानी बोदली हमले में 55 जवान बलिदान।
 
2010: ताड़मेटला नरसंहार, 76 जवान बलिदान।
 
2018-19: सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाइयों में कई बड़े नक्सली मारे गए।
 
2024-25: सरकार का ऑपरेशन "कगार" तेज, 400 से ज्यादा नक्सली ढेर।
 
2025: सोनू ने शांति वार्ता का ऐलान किया, लेकिन पार्टी ने इसे निजी राय बताया।
 
फैक्ट बॉक्स: माओवादी vs सुरक्षा बल
 
25 साल में मुठभेड़: 3366
 
वीरगति को प्राप्त जवान: 1324
 
ढेर माओवादी: 1510+
 
इनामी मारे गए नक्सली (2024-25): 5 करोड़ से अधिक इनाम वाले दर्जनों बड़े कमांडर।
 
प्रमुख घटनाओं का सार
 
रानी बोदली (2007): 55 जवान बलिदान, अब तक की बड़ी घटनाओं में से एक।
 
ताड़मेटला (2010): 76 जवानों को मारा, देश को हिला देने वाली घटना।
 
गरियाबंद (2025): 10 नक्सली ढेर, जिन पर कुल 5 करोड़ से ज्यादा का इनाम था।
 
सोनू बनाम केंद्रीय समिति (2025): शांति वार्ता पर संगठन में गंभीर मतभेद।
साफ है कि माओवादी अब अंदर से टूट चुके हैं। उनकी “वार्ता” और “माफी” जनता को गुमराह करने का नया हथकंडा है। असली सच्चाई यही है कि हिंसा उनका मूल चरित्र है और इसे छोड़ने का उनका दावा सिर्फ एक और ढोंग है।
 
रिपोर्ट
शोमेन चंद्र