नवरात्रि: शक्ति की आराधना और स्त्री के दिव्य स्वरूप का उत्सव

नवरात्रि में नौ रातों तक शक्ति के नौ रूपों की आराधना, स्त्री को सृष्टि की आधारशिला मानकर मनाया जाता है यह महापर्व।

The Narrative World    22-Sep-2025
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आज से भारत में नवरात्रि का उत्सव मनाया जा रहा है, जो स्त्री के दिव्य अस्तित्व का प्रतीक है। शक्ति की ये नौ रातें पूरे ब्रह्माण्ड में ऊर्जा के विकास को दर्शाती हैं। इन नौ रातों में तीन रातों की त्रि-मूर्ति सृष्टि के निर्माण में सत्व, रजस और तमस की अभिव्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
 
हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसी सभ्यता है जिसने नारी को ईश्वर के रूप में स्वीकार किया है। ऐसा कोई और दर्शन नहीं है जिसने स्त्रीत्व की सर्वोच्च शक्ति को पहचाना हो। इसका कारण यह है कि बाकी दुनिया मान्यता की परंपरा पर चलती है, जहां सृष्टि को या तो किसी व्यक्ति पर आस्था या किसी विशेष विचार पर आस्था के माध्यम से देखा जाता है। इसमें न तो व्यक्ति का दोष है और न ही विचार का; बल्कि दोष तब आता है जब ये मान्यताएं रूढ़ हो जाती हैं।
 
परन्तु हिन्दुओं के साथ ऐसा नहीं है। हमने सृष्टि के कारण, उद्देश्य, निर्माण की प्रक्रिया और निर्माण शक्ति से साक्षात्कार किया है। इसमें सबसे खास बात यह है कि हमने इसे जानने के बाद जैसा है वैसा ही आगे नहीं थोपा, बल्कि हमारे ऋषियों ने इस ज्ञान के बोध को एक परंपरा बनाया और इस राष्ट्र को इसी परंपरा में लगाया।
 
इसी ज्ञान को लगातार जानने की परंपरा में लगे रहने के कारण हम 'भारत' कहलाए। 'आभा रति इति भारतम्' अर्थात जो आभा (प्रकाश) में रत है, वही भारत है। लेकिन यह प्रकाश किसका है? यह प्रकाश ज्ञान का है, सत्य के ज्ञान का। वह सत्य जो सापेक्ष नहीं, निरपेक्ष है, जो सबका अंतिम सत्य है, जिसे हम ब्रह्म कहते हैं।
 
इसी सत्य के बोध से हमने स्त्रीत्व की शक्ति को पहचाना और शक्ति की उपासना शुरू की। शक्ति से ही सब कुछ संभव होता है। अस्तित्व के विभिन्न आयामों में उस सर्वोच्च शक्ति से ही ईश्वर की अभिव्यक्ति संभव हुई है। हम उन्हीं आयामों के निर्माण का प्रतिनिधित्व करने वाली शक्ति के विभिन्न रूपों की आराधना इन आठ दिनों और नौ रात्रियों में करते हैं। इन नौ रूपों के अतिरिक्त भी शक्ति अन्य रूपों में ईश्वर की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्हें हम सामान्यतः देवी के अवतार या रूप कहते हैं।
 
शक्ति का अर्थ क्या है?
 
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यह जानने के लिए हमें मूल प्रश्न को समझना होगा जो हमें शक्ति के साक्षात्कार तक ले जाएगा। हम अपने आसपास जो कुछ भी देखते, जानते या समझते हैं, वह कैसे घटित हो रहा है? यह प्रश्न अस्तित्व की सबसे छोटी इकाई, परमाणु के घटकों से लेकर अनंत ब्रह्मांड तक हर चीज से जुड़ा है।
 
दुनिया के अन्य दर्शन, जो सिर्फ मान्यता तक सीमित हैं, उनके विद्वानों ने इसे 'अपने आप घटित होना' बताया। उनके अनुसार, ब्रह्मांड में अचानक कुछ गैस और धूल आपस में मिलीं और सृष्टि का निर्माण होना शुरू हो गया। उन्होंने इसे 'बिग बैंग' नाम दिया।
 
परन्तु मूल प्रश्न फिर भी वही है कि गैस और धूल कहाँ से आए और मिले कैसे, और मिलकर ऐसे ही कैसे घटित हुए? हमारे ऋषियों ने इस प्रश्न का उत्तर दिया है और इसे समझने के लिए 'श्रद्धा' की योग्यता बताई है। श्रद्धा का अर्थ केवल मान्यता नहीं है, बल्कि 'साक्षात्कार होने तक आस्था' (Acceptance until discovery) है।
 
हम जो कुछ भी अपने आसपास देख रहे हैं, जान रहे हैं या समझ रहे हैं, यह तो तय है कि वह अपने आप नहीं हो रहा, क्योंकि 'अपने आप होने' की व्याख्या के बाद भी मूल प्रश्न बना रहता है। अब, अगर यह अपने आप नहीं हो रहा तो इसका मतलब यह हुआ कि जो कुछ भी होता है, वह बुद्धिमत्ता से और उद्देश्यपूर्ण ढंग से घटित किया जाता है। और जो इसे घटित कर रहा है, उसे इसे करने का ज्ञान भी होना चाहिए। जैसे घड़ा बनाने वाला कुम्हार मिट्टी को अपनी बुद्धिमत्ता से, घड़ा बनाने के उद्देश्य से ढालता है और उसे घड़ा बनाने का ज्ञान भी होता है।
 
अर्थात, ‘यो यत् कर्ता, स: ततज्ञ’ जिसका अर्थ है जो कुछ भी करने वाला है, वह उसका ज्ञानी है।
 
जैसे घड़ा कुम्हार के बिना घटित नहीं हो सकता, वैसे ही यह सर्वस्व भी बिना रचनाकार के कैसे घटित हो सकता है। किसी ने तो इस सर्वस्व को भी बुद्धिमत्ता से उद्देश्यपूर्ण ढंग से घटित किया है। तो इसका अर्थ हुआ कि ‘सर्व कर्ता, सर्वज्ञ’ यानी इस सर्वस्व को घटित करने वाला ही सर्वज्ञ है। अर्थात ईश्वर (सर्वज्ञ) ही सर्वस्व को घटित करने वाला है, और यह रचना उसी के ज्ञान की अभिव्यक्ति है।
 
प्रश्न यह भी है कि क्या कुम्हार घड़ा बनाने का ज्ञान होने के बाद भी बिना बनाने की क्षमता के घड़ा बना सकता है? क्या बिना क्षमता के बर्तन बनाने का उसका ज्ञान घड़े के रूप में अभिव्यक्त हो सकता है? इसका अर्थ हुआ कि घटित करने वाले कर्ता के पास घटित करने के ज्ञान के साथ उसे घटित करने की क्षमता (शक्ति) भी होनी चाहिए।
 
अर्थात, ‘यो यत् कर्ता, स: तत शक्तिमान; यो सर्वकर्ता, तत सर्वशक्तिमान’
 
तो, सर्वज्ञ ईश्वर के पास अपने सृजन के ज्ञान को अभिव्यक्त करने की क्षमता ही शक्ति कहलाती है। आज की भाषा में कहें तो "The power to express the knowledge of creation is called Shakti"। हम सर्वज्ञ ईश्वर के विभिन्न आयामों में अभिव्यक्त होने की शक्ति की ही देवी के विभिन्न रूपों में उपासना करते हैं। यह शक्ति ही है जिससे सब संभव होता है।
 
हमारे यहां कहा गया है: 'या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'
 
श्री देव्यै नम:
 
लेख
 
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सूरजभान शर्मा