DRDO बना भारत की रक्षा तकनीक का शिखर

DRDO की स्वदेशी तकनीक ने भारतीय सेना को नई ताकत दी और देश की सुरक्षा को हर मोर्चे पर मजबूत किया।

The Narrative World    28-Sep-2025
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देश का रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन यानी DRDO अब भारत की रक्षा संरचना का एक मजबूत स्तंभ बन चुका है। पिछले चार दशकों से अधिक की चुनौतियों और संघर्षों के बावजूद DRDO ने खुद को एक सफल और आत्मनिर्भर संस्थान के रूप में स्थापित किया है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, तकनीकी नियंत्रणों और बार-बार आने वाली कठिनाइयों के बावजूद यह सफलता भारतीय वैज्ञानिकों और उद्योग भागीदारों की मेहनत और देशभक्ति का परिणाम है।
 
आज DRDO द्वारा विकसित तकनीकें सीधे सैन्य अभियानों में काम आ रही हैं। हाल ही में पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर में DRDO के बने प्लेटफॉर्म ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस अभियान में देश की सीमाओं की सुरक्षा को मज़बूत करने और दुश्मन की संपत्तियों को बेअसर करने में DRDO की तकनीकें निर्णायक रही।
 
भारतीय सेना ने आकाश मिसाइल प्रणाली, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और उन्नत एंटी-ड्रोन समाधान जैसी तकनीकों का सफल उपयोग किया। इन तैनातीयों ने दिखा दिया कि DRDO न केवल पारंपरिक खतरे बल्कि ड्रोन युद्ध जैसी नई चुनौतियों का भी सामना कर सकता है।
 
DRDO का मिशन अब जल, समुद्री, थल, वायु, अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्रों तक फैला है। यह संगठन आयात पर निर्भरता कम करके स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दे रहा है और भारत को रक्षा उपकरणों का निर्यातक बनाने की दिशा में अग्रसर कर रहा है।
 
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पिछले साठ वर्षों में DRDO ने उन्नत मिसाइलें, लड़ाकू विमान, राडार, डायरेक्टेड-एनर्जी हथियार और जल-तल सेंसर सहित अनेक उपकरण विकसित किए हैं। इसके पांचों दर्जन से अधिक प्रयोगशालाओं और केंद्रों में करीब तीस हजार वैज्ञानिक, इंजीनियर और तकनीकी कर्मचारी कार्यरत हैं।
 
1980 के दशक में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुवाई में शुरू हुआ इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) DRDO के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इस पहल से अग्नि और पृथ्वी श्रृंखला, आकाश सतह से हवा में मिसाइल, नाग एंटी-टैंक मिसाइल और त्रिशूल त्वरित-प्रतिक्रिया प्रणाली विकसित हुईं, जिसने स्वदेशी निवारक क्षमता में नई ऊँचाई हासिल की।
 
हवाई क्षेत्र में भी DRDO ने महत्वपूर्ण प्रगति की। तेजस हल्का लड़ाकू विमान पूरी तरह भारतीय इंजीनियरिंग का प्रतीक बनकर भारतीय वायुसेना की सेवाओं में शामिल हुआ और देश की वायु शक्ति को मजबूत किया। नेट्रा एयरबोर्न अर्ली वार्निंग और नियंत्रण प्रणाली और अनेक ड्रोन परियोजनाओं ने निगरानी और संचालन में नई क्षमता जोड़ी।
 
DRDO की ये उपलब्धियां केवल रक्षा क्षमता बढ़ाने तक सीमित नहीं हैं। यह भारत की तकनीकी स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बन चुकी हैं। आज DRDO ने साबित कर दिया है कि दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयास से कोई भी संगठन विश्वस्तरीय सफलता हासिल कर सकता है।
 
लेख
शोमेन चंद्र