कौन है नवलखा, क्यों दी गई हाउस अरेस्ट की सहूलियत

उनसे यह पूछे जाने की भी आवश्यकता है कि जिस तथाकथित क्रांति के विचारों का नवलखा जैसे लोग प्रतिनिधित्व करते आये हैं उसके परिणामस्वरूप हुई हिंसा में ऐसे कितने वयोवृद्ध निर्दोषों को अपनी जान गवांनी पड़ी है, ऐसे कितनो को अपने नौजवान बच्चों की चिंताएं जलानी पड़ी हैं, यहां कहीं हमारी दृष्टि धुंधली तो नहीं पड़ जाती

The Narrative World    14-Nov-2022
Total Views |
 
 

Urban Naxals
 
गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने एल्गार परिषद प्रकरण में आरोपी अर्बन नक्सल (शहरी माओवादी) गौतम नौलखा को राहत देते हुए एजेंसियों से उसे तलोजा जेल से निकालकर हाउस अरेस्ट करने के लिए निर्देशित किया, न्यायालय ने यह निर्णय तब दिया जब सुरक्षा एजेंसियों की ओर से अपने अधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट को यह जानकारी दी गई कि गौतम नौलखा जैसे देशद्रोह के आरोप में विचाराधीन अभियुक्त को हाउस अरेस्ट में नियंत्रण करना बेहद मुश्किल है, हालांकि बावजूद इसके न्यायालय ने नवलखा की बढ़ती आयु एवं कथित रूप से गिरते स्वास्थ्य की दृष्टि से मानवीय आधार पर अंततः उसे हाउस अरेस्ट करने के लिए निर्देशित किया है।
 
अब न्यायालय द्वारा दिए गए इस निर्णय के उपरांत एजेंसिया ना केवल देशद्रोह के आरोप में विचाराधीन अभियुक्त नवलखा को जेल से निकाल कर उसे वन बीएचके के एक घर में शिफ्ट करने को बाध्य हैं अपितु निर्णय के अनुसार नवलखा को इस दौरान अपने लिविंग-इन पार्टनर के साथ रहने एवं नौकरानी रखने तक का अधिकार होगा, तो क्या न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुसार आचरण करने वाली न्यायिक व्यवस्था में सामान्यतः दिया जाने वाला निर्देश है (यानी क्या प्रत्येक वयोवृद्ध विचाराधीन कैदी के लिए न्यायालय इसी प्रकार के निर्णय देती आई है) अथवा गौतम नवलखा के प्रकरण में उनके कथित स्टेचर (कथित सामाजिक कार्यकर्ता होने का) के कारण उन्हें विशेष सहूलियत दी गई है,
 
या फिर अपने निर्णय में न्यायालय ने अपराध सिद्ध ना हो जाने तक एजेंसियों द्वारा आरोप-पत्र में लगाये गए गंभीर धाराओं के बेबुनियाद होने की गुंजाइश पर दूरदृष्टि दिखाई है कि क्या हो यदि ये सारे आरोप निराधार ही हो, तो ऐसे में क्या एक महान वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता को मानवीय आधार पर राहत भी ना दी जानी चाहिए (जैसी गुंजाइश न्यायालय ने नवलखा को हाउस अरेस्ट रखने के दौरान सीसीटीवी के खर्च पर दिखाई है) तो ऐसे में यह समझना बेहद आवश्यक है कि आखिर गौतम नवलखा पर आरोप क्या हैं, किन लोगों अथवा समुहों से उसके संबंध रहे हैं ?
 
 
gautam Navlakha
 
तो कथित सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को पुणे के एल्गार परिषद प्रकरण एवं भीमा कोरेगांव हिंसा के आरोप में अगस्त 2018 में पुलिस द्वारा नामित किया गया था, जिसके उपरांत न्यायालय में दायर किये गए अग्रिम जमानत याचिकाओं एवं हाउस अरेस्ट से मिली राहत के उपरांत नवलखा ने वर्ष 2020 मार्च में इस मामले की जांच कर रही एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था, कथित सामाजिक कार्यकर्ता एवं ' इ-कनोमिक एवं पोलिटिकल वीकली जर्नल जैसे प्रोपोगेंडा जर्नल के संपादकों में से एक गौतम नवलखा को पीपुल्स यूनियन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (भाकपा माओवादी संगठन की फ्रंटल इकाई) के अहम सदस्यों में से भी एक माना जाता है।
 
नवलखा कश्मीर में रेफरेंडम की मांग एवं अलगाववादियों का सार्वजनिक रूप से समर्थन करते आया है और अपने सहयोगियों के साथ स्थापित की गई संस्था इंटरनेशनल पीपुल्स ट्रिब्यूनल ऑन ह्यूमन राइट्स एंड जस्टिस इन कश्मीर (आईपीटीके) का संयोजक है, भीमा कोरेगांव हिंसा में दायर की गई एनआईए के आरोप-पत्र के अनुसार नवलखा भारत में कम्युनिस्ट उग्रवादियों की अग्रणी संस्था प्रतिबंधित माओवादी संगठन भाकपा माओवादी के वरिष्ट सदस्यों में से एक है, जिसने माओवादियों की एक और इकाई ' कबीर कला मंच' के माध्यम से भीमा कोरेगांव में जातीय हिंसा भड़काने का षड़यंत्र रचा था। एनआईए के अनुसार भारत मे कथित क्रांति के लिए भाकपा माओवादी संगठन उत्तरपूर्वी राज्यों एवं कश्मीर समेत दक्षिण भारत के राज्यों में अलगाववादी विचारों को पोषित अथवा समर्थन करने का पक्षधर रहा है एवं उसकी रणनीति इसके माध्यम से राष्ट्र को विखंडित करने की है।
 

Bheema koregaon 
एनआईए के अनुसार जांच के दौरान गौतम नवलखा एवं उसके अन्य सहयोगी प्रोफेसर हैनी बाबू, रोना विल्सन एवं वरवरा राव समेत अन्य अभियुक्त भाकपा माओवादी की उक्त रणनीति को ही आगे बढ़ा रहे थे, जिसमें हैनी बाबू और गौतम नवलखा के पास से एनआईए को ऐसे गुप्त डॉक्यूमेंटों की प्राप्ति हुई है जो संगठन में केवल वरिष्ठ कैडरों के बीच वितरण के लिए तैयार किये गए थे, एजेंसी के अनुसार इस बात के पुख्ता प्रमाण है कि गौतम नवलखा जिसे दरबार जी कोड वर्ड दिया गया था, शहरों में भाकपा माओवादी संगठन के लिए युवाओं की भर्ती के लिए भी प्रयासरत था और दिल्ली, मुम्बई सहित छत्तीसगढ़ के कई युवाओं को उसने माओवादियों के लिए लड़ने को तैयार भी किया था, एनआईए के अनुसार नवलखा माओवादियों की कई अन्य फ्रंटल इकाइयां जैसे सीडीआरओ एवं अनुराधा गन्धी मेमोरियल कमेटी (ऐजीएमसी) के साथ भी बेहद करीबी रूप से जुड़ा हुआ था और उसकी शहरी माओवादीयों (अर्बन नकसल्स) एवं अंडरग्राउंड कैडरों के बीच संवाद स्थापित करने में अहम भूमिका थी।
 
एनआईए के अनुसार सबसे अहम नवलखा फ़ोन एवं ईमेल के माध्यम से ग़ुलाम नबी फाई, जिसे पकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए अवैध धन एकत्रित करने के आरोप में अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी द्वारा वर्ष 2011 में गिरफ्तार किया गया था के संपर्क में था, एजेंसी के अनुसार फाई ने नवलखा को आईएसआई के एक जनरल से भी मिलवाया था जिसने नवलखा को आईएसआई के लिए काम करने की पेशकश की थी। कुल मिलाकर अपनी गिरफ्तारी के पूर्व नवलखा भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को हटाकर कम्युनिस्ट अधिनायकवादी सत्ता व्यव्यस्था लाने के लिए प्रयासरत प्रतिबंधित भाकपा माओवादी संगठन का ना केवल बेहद अहम सदस्य के रूप में कार्र कर रहा था अपितु इस कृत्य में वह शत्रु राष्ट्र की एजेंसियों के साथ भी प्रत्यक्ष रूपसे जुड़ा हुआ था।
 
अब ऐसे में प्रश्न यह है कि भारत जैसे विशाल जनसमूह वाले देश में जहाँ लाखों विचाराधीन अभियुक्त (जिनमें बड़ी संख्या में वयोवृद्ध भी हैं) वहां 70 वर्षीय गौतम नवलखा को मानवीय आधार पर जेल से निकाल कर हाउस अरेस्ट करने की ये विशेष सहूलियत क्यों, क्या यह केवल इसलिए कि यूएपीए की गंभीर धाराओं के अंतर्गत नामित अभियुक्त जो देश के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के आरोपों में विचाराधीन है को देश के भीतर के एक कथित उदारवादी बुद्धिजीवियों (जिनकी अपनी चुनिंदा वैश्विक पहुंच है) का समर्थन है अथवा इसलिए कि वर्षो से देश के प्रशासनिक तंत्र, मीडिया हाउसेस यहां तक कि न्यायिक व्यवस्था में घुसपैठ कर बैठे कम्युनिस्टों ने हमारे न्यायिक तंत्र को भी अपनी सुविधानुसार ढ़ाल लिया है जहां वयोवृद्ध होने का पैमाना देशद्रोही होने के मेरिट पर भी भारी पड़ जाता है।
 
उनसे यह पूछे जाने की भी आवश्यकता है कि जिस तथाकथित क्रांति के विचारों का नवलखा जैसे लोग प्रतिनिधित्व करते आये हैं उसके परिणामस्वरूप हुई हिंसा में ऐसे कितने वयोवृद्ध निर्दोषों को अपनी जान गवांनी पड़ी है, ऐसे कितनो को अपने नौजवान बच्चों की चिंताएं जलानी पड़ी हैं, यहां कहीं हमारी दृष्टि धुंधली तो नहीं पड़ जाती?
 
(नैरेटिव डेस्क)