सर्वोच्च न्यायालय ने देश में बढ़ते जबरन कन्वर्जन (धर्मांतरण) के प्रकरणों को गंभीर चुनौती बताते हुए इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, न्यायालय ने इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह देश के नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए भी बड़ी चुनौती है, न्यायालय ने यह टिप्पणी, भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई याचिका की सुनवाई के दौरान कही है। इस दौरान न्यायालय ने कहा कि "धोखे अथवा जबरन कराया जाने वाला कन्वर्जन राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित जटिल स्थिति उत्पन्न कर सकता है, न्यायालय ने कहा कि यह नागरिकों के धर्म एवं अंतरात्मा के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के लिए भी ठीक नहीं है।"
अश्वनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई याचिका पर न्यायमूर्ति एम आर शाह की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 23 सितंबर को नोटिस जारी किया था, जिस पर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता में न्यायालय ने केंद्र का पक्ष रखा, दरअसल इस याचिका के माध्यम से उपाध्याय ने न्यायालय को बताया था कि जबरन धर्मांतरण को लेकर देश में सुनियोजित षड़यंत्र चलाया जा रहा है और इसके लिए बड़े पैमाने पर विदेशी फंडिंग भी मुहैया करायी जा रही है, इस याचिका में उपाध्याय ने तमिलनाडु की 17 वर्षीय हिन्दू छात्रा लावण्या की आत्महत्या को भी प्रमुखता से शामिल किया था, हालांकि पिछली सुनवाई में उपाध्याय ने न्यायालय को बताया कि अब इस प्रकरण की जांच सीबीआई को सौंपी गई है।
उपाध्याय ने न्यायालय को सूचित किया था कि इस सुनियोजित एवं संगठित अपराध को लेकर केंद्र का कोई कानून नहीं है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिसको लेकर न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था, अब इसी मामले में सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से महान्यायभिकर्ता तुषार मेहता ने न्यायालय को बताया कि अवैध रूप से लालच एवं छलपूर्वक कराए जाने वाले धर्मांतरण को लेकर मध्यप्रदेश एवं ओड़िशा में दो कानून बनाए गए हैं जिस पर न्यायालय ने कहा कि " आप कह रहे हैं कि कुछ राज्यों ने इस पर कानून बनाए हैं लेकिन हम केंद्र सरकार का पक्ष जानना चाहते हैं आप 22 नवंबर तक अपने पक्ष से न्यायालय को अवगत कराएं, जिस पर हम 28 नवंबर को सुनवाई करेंगे।"
सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने भी न्यायालय में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए यह माना कि जनजातीय बहुल क्षेत्रों में कन्वर्जन के बहुतायत प्रकरण सामने आए हैं, मेहता ने कहा कि " यह मुद्दा संविधान सभा मे भी उठाया गया था और जनजातीय बहुल क्षेत्रों में तो लोगों को गेंहू-चावल देने के एवज में भी धर्मांतरण करा दिया जाता है, जिस पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायालय ने कहा कि संविधान स्वेक्षा से धर्म परिवर्तन की अनुमति देता है, धोखेधड़ी एवं लालच में कराए जा रहे कन्वर्जन की नहीं।
क्या है वर्तमान स्थिति
बता दें कि देश भर से अवैध धर्मांतरण से संबंधित खबरे आये दिन सामने आती रहती हैं जिसकी पुष्टि उपाध्याय ने अपने याचिका में भी की है, याचिका में कन्वर्जन के इस गोरखधंधे की वर्तमान स्थिति को लेकर याचिकाकर्ता ने न्यायालय को बताया है कि देश भर में कोई ऐसा जिला नहीं है जो लालच अथवा जबरन कराए जाने वाले धर्मांतरण से वंचित रहा हो, जिनमे से कुछेक राज्यों की स्थिति तो भयावह प्रतीत होती है।
दरअसल देश भर में जहां एक ओर ईसाई मिशनरियों द्वारा अंधविश्वास, लालच, धोखाधड़ी, आर्थिक सहायता, उपचार एवं शिक्षा को आधार बनाकर धड़ल्ले से कन्वर्जन के इस कुकृत्य को पोषित किया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार एवं उत्तरप्रदेश समेत देश के कई राज्यों में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इसे लव जिहाद के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है, अवैध कन्वर्जन देश के सीमाई क्षेत्रो में भी गंभीर चुनौती बनकर उभरा है, जहां वर्षो से चलाये जा रहे इस संगठित अपराध ने इन क्षेत्रों में जनसांख्यिक असंतुलन की स्थित उत्पन्न कर दी है।
कौन है निशाने पर
इसमें संशय नहीं कि अवैध धर्मांतरण के इस कुकृत्य का सबसे ज्यादा शिकार देश का जनजातीय वर्ग एवं दलित समुदाय रहा है, हालांकि मोटे तौर पर लव जिहाद जैसे संगठित अपराध का शिकार तो समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग रहे हैं जबकि ईसाई मिशनरियों का प्रपंच सबसे अधिक उन क्षेत्रों में प्रभावी दिखाई देता है जहां जनजातीय अथवा दलित समुदाय बहुसंख्यक है, राज्यों की बात की जाए तो ईसाई मिशनरियों द्वारा धड़ल्ले से चलाए जा रहे इस गोरखधंधे का सबसे अधिक प्रभाव तमिलनाडु, पंजाब, उत्तरपूर्व (ईसाई बहुल कई राज्य),आंध्र एवं तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड मध्यप्रदेश, कर्नाटक, केरल, उत्तरप्रदेश एवं बिहार में देखने को मिलता है।
एक समस्या यह भी है कि तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल इनमें से कई राज्यों में सत्तासीन हैं जो गाहे-बगाहे ईसाई मिशनरियों के इस कुकृत्य में इनका समर्थन करते आये हैं, इन राज्यों में तो कन्वर्जन के लिए दबाव बनाए जाने एवं जोर जबर्दस्ती से धर्मांतरण कराए जाने के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं, इस क्रम में झारखंड, पंजाब एवं तमिलनाडु में काँग्रेस एवं सहयोगी दलों की सरकारों के दौरान मिशन सम्बंधित कन्वर्जन के मामलों को दबाया जाना इसका ज्वलंत उदाहरण रहे हैं जहां पीड़ित हिन्दू समुदाय अपने वोटों से चुनी हुई सरकार के आचरण से ही ठगा महसूस करता है।
अब ऐसी विकट परिस्थितियों में देर से ही सही इस स्थिति को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती के रूप में इंगित करने वाली न्यायालय, इस विषय पर केंद्र सरकार के जवाब के उपरांत क्या कदम उठाती है यह देखने वाली बात होगी।