विश्व भर में जब भी कम्युनिज्म अथवा वामपंथी विचारधारा की बात होती है तो इसे सामान्यतः मार्क्स, स्टालिन, माओ अथवा लेनिन की जीवनी एवं इनके द्वारा ही विकसित किये गए कम्युनिज्म की विस्तृत शाखाओं तक समेट दिया जाता है, अधिक से अधिक ज्यादा गहराई में उतरने पर रूस एवं चीन के अतिरिक्त कंबोडिया, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे राष्ट्रों में हुए नरसंहारों के अतिरिक्त हमें कम्युनिज्म को जानने समझने के लिए बहुत कुछ नहीं मिलता, तो क्या कम्युनिस्ट विचारों का प्रसार केवल इतना सा ही है यह फिर इसके दूसरे स्वरूप भी हैं जो उदारवादी विचारों का चोला ओढ़कर दुनिया के कई लोकतांत्रिक राष्ट्रों को भीतर से खोखला करने पर आमादा हैं? क्या आधुनिक राष्ट्र की अवधारणा विकसित होने के उपरांत के राष्ट्रों में सबसे पुराना लोकतंत्र माने जाने वाला अमेरिका भी कभी इसकी जद में रहा है यदि हाँ तो फिर वर्तमान परिदृश्य में वह कितना प्रभावी है, आलेखों की इस श्रृंखला के माध्यम से हम इन्ही प्रश्नों के उत्तर ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं।
कम्युनिज्म की बात हो और इसके बाइबल यानी "रूल्स फ़ॉर रैडिकल्स" की बात ना हो तो बात जैसे अधूरी है, विश्व भर में कम्युनिस्टों की बात होते ही सामान्य व्यक्ति इसे मार्क्स एवं एंजेल्स द्वारा लिखी गई अवधारणा जनित समस्या से जोड़ कर देखता है, यानी 'द कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो' अथवा 'द दास कैपिटल', हालांकि यदि बात कम्युनिस्टों के अपने लक्ष्य तक पहुँचने के व्यवहारिक आचरण की करें तो हम पाएंगे कि यदि किसी एक किताब जिसका इसपे सबसे गहरा प्रभाव रहा है तो वह अलिन्सकी द्वारा लिखी गई रूल्स फ़ॉर रैडिकल्स है।
दरअसल 60 के दशक में अमेरिकी कम्युनिस्टों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान गढ़ने वाले सॉल अलिन्सकी ने वर्ष 1971 में अपने अनुभवों के आधार पर रूल्स फ़ॉर रैडिकल्स लिखी, मोटे तौर पर कम्युनिज्म के प्रसार एवं इसके दीर्घकालिक लक्ष्यों को साधने के लिए नियमावली समेटे इस पुस्तक में नैतिक सिद्धांत अथवा पूंजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद (कम्युनिज्म) पर कोई थीसिस नहीं लिखी गई अपितु इसमें विश्व भर के कम्युनिस्टों के लिए अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विशुद्ध रणनीति की बात की गई है यानी यह कोई दर्शन नहीं अपितु एक स्ट्रेटेजिक वारफेयर का ही मैन्युअल है, जिसे कम्युनिस्ट विचारों के प्रति समर्पित लगभग प्रत्येक व्यक्ति उतना ही महत्व देता है जितना सामान्य तौर पर धार्मिक आस्था को समर्पित व्यक्ति अपने धार्मिक ग्रंथों को देता है।
अलिन्सकी ने अपनी इस किताब के शुरुआती तीन नियमों में शक्ति के आभासी प्रयोग यानी दिखावा, अपनी क्षमताओं पर केंद्रित रहने एवं शत्रु (लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाला व्यक्ति अथवा देश) को उसकी क्षमताओं से इतर खींचकर उसमें निरंतर असुरक्षा का भाव गढ़ने की बात की है, अलिन्सकी के आगे की नियमावली के अनुसार विपक्षी को प्रतिकार करने तक दीवार से लगाना (यानी यदि कोई व्यक्ति या समाज सहिष्णु है तो उसे उसकी सीमाओं तक ले जाना जसब तक कि वो प्रतिकार ना करे), उपहास उड़ा कर उसे कमजोर करने, लोकप्रिय एवं परिवर्तनशील नीतियों के माध्यम से शत्रु पर दबाव बनाए रखने, खतरे का भय उत्पन्न करने एवं शत्रु को बाध्य करने के उपरांत उसके द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओं को रणनीतिक रूप से उपयोग करने की बात कि गई है।
इन सब के अतिरिक्त अलिन्सकी विश्व भर के अतिवादियों को तीन और नियमों के अनुपालन का परामर्श देता है, जिनमें से एक अतिवाद से उपजी सहानभूति एवं दूसरा सकारात्मक समाधान के विषय में है, तीसरा एवं सबसे महत्वपूर्ण पहलू शत्रु (यहां संदर्भ व्यक्ति से है) को भीड़ अथवा समूह से पृथक कर उस पर चौतरफा हमला बोलने एवं उसे अलग थलग कर उसे मिटाने के संदर्भ में है, यह अलिन्सकी कि रणनीतिक किताब का सबसे अहम पहलू है, इसमें व्यक्ति को सहानुभूति विहीन कर अछूत बनाने का उल्लेख है ताकि उसके तर्कों अथवा प्रयासों को किसी भी प्रकार का समर्थन ना मिल सके, आप भारत, अमेरिका समेत विश्व भर के लोकतांत्रिक राष्ट्रों में कम्युनिस्टों की रणनीति को देखें आपको समूह अथवा संगठन से इतर व्यक्तिगत हमलों के सैकड़ो उदाहरण मिलेंगे, इसका तर्क बिल्कुल सीधा है, व्यक्तिगत हमला संगठन अथवा समूह जिससे कि संबंधित व्यक्ति जुड़ा है को उसे डिजेक्ट करने के लिए बाध्य कर देता है, परिणामस्वरूप व्यक्ति को सहजता से अपना शिकार बनाया जा सकता है।
अलिन्सकी की किताब विश्व भर के कम्युनिस्टों के लिए किसी धर्मग्रंथ से कम कुछ भी नहीं, आप सूक्ष्मता से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि विश्व भर के लोकतांत्रिक राष्ट्र जहां कम्युनिस्टों ने अपनी गहरी पैठ जमा ली है वहां अपनी पैठ जमाने एवं वर्चस्व स्थापित रखने की प्रक्रिया में उन्होंने अक्षरशः इस नियमावली (यदि अपवाद स्वरूप सकारात्मक समाधान के नियम को हटा दें तो) का ही अनुपालन किया है। अलिन्सकी एवं उसके शैतानी मैन्युअल ने दुनिया भर के कम्युनिस्टों पर क्या असर डाला इसे उसकी स्वीकार्यता से बखूबी समझा जा सकता है, इसे ऐसे समझे कि विश्व भर में सांस्कृतिक मार्क्सवाद की अवधारणा को मजबूती से लागू करनें में अलिन्सकी की रूल्स फ़ॉर रैडिकल्स ने ना केवल निर्णायक भूमिका निभाई है अपितु अलिन्सकी को वर्तमान में वैश्विक परिदृश्य में बेहद अहम पदों पर स्थापित कई नेता अपना राजनैतिक एवं वैचारिक गुरु भी मानते हैं।
यह आश्चर्यजनक है और उतना ही भयावह भी, कुल मिलाकर अलिन्सकी एवं फ्रैंकफर्ट की साझी विरासत ने विश्व भर में कम्युनिस्टों के आचरण एवं उनके व्यवहारिक स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन लाया है, अब कम्युनिज्म ( वामपंथ) आपको केवल बड़ी बड़ी दाढ़ीयों, कथित क्रांति के गीतों अथवा मार्क्स, लेनिन एवं माओ के तर्ज पर फैलाये जा रहे प्रत्यक्ष आतंक के स्वरूप में नहीं मिलेगा, यह राष्ट्रवादियों की संस्कृति, उनके मूल्यों में समाहित हो रहा, उनके रक्त उनकी धमनियों में दौड़ने का यत्न कर रहा, यहां तक कि जाने-अनजाने वे उसकी सहायता भी कर रहे, आप अमेरिका के राजनीतिक परिदृश्य का अवलोकन करें आपको सबकुछ प्रत्यक्ष दिखाई देगा, वहां पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर इससे पूर्व राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार रही हिलेरी क्लिंटन तक अलिन्सकी को अपना गुरु मानते आए हैं।
(तथ्य - साभार, राजीव मिश्रा, लेखक - विषैला वामपंथ)