वामियों की मनोवृत्ति, हथकंडे व दमनकारी इतिहास पर धारदार लेखनी से वज्रपात करती पुस्तक विषैला वामपंथ भाग 1

राजीव मिश्रा जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि “शासन उसका नहीं होता जो कुर्सी पर बैठा है अपितु उसका है जिसकी बात वह कुर्सी पर बैठा आदमी सुनता है

The Narrative World    25-Jan-2023   
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अधिकांशतः कहा जाता है कि कम्युनिस्ट विचारधारा को समझने हेतु कार्ल मार्क्स की कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो को पढना चाहिए किन्तु जिसे यदि यह समझना हो कि कम्युनिज्म की विचारधारा किस प्रकार बहुतेरे राष्ट्रों को पतन की ओर ले गई तो डॉ. राजीव मिश्रा जी द्वारा लिखित “विषैला वामपंथ” पुस्तक पढनी चाहिए I
 
2019 में आई यह पुस्तक कम्युनिस्टों की वह षड़यंत्र नीति और वृत्ति उजागर करती है, जिसे पढ़कर आज के युवा अपनी तथाकथित आधुनिकता के मापदंडों पर व भारत राष्ट्र – समाज के प्रति समस्त दृष्टिकोण पर विस्मय व घृणा करेंगेI पुस्तक में कुल 56 चैप्टर्स हैं I यह पुस्तक को पाठक के तौर पर मैंने चार छोटे बड़े भागों में विभाजित पाया I पहले भाग में लेखक वामपंथ विचारधारा के परिवर्तित प्रारूपों को बताते हैं ,कि किस प्रकार वामपंथी आज ना ही लाल सलाम बोलते दिखाई देंगे ना ही स्वयं को कम्युनिस्ट कहते हुए दिखाई पड़ते हैं I
 
आज वामपंथ आधुनिकता, उदारवाद, प्रोग्रेस्सिवेनेस एवं पोलिटिकल करेक्टनेस के नाम पर चलता है I यह तो सर्वविदित है कि कम्युनिज्म दुर्भाग्यवश प्रत्येक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है जैसे शिक्षा, फिल्म इंडस्ट्री, पत्रकारिता,कॉर्पोरेट और यहाँ तक कि कानून भीI सरकार चाहे कोई भी हो, चाहे राष्ट्रहित विचार का पालन करने वाली ही क्यों न हो, सरकार के प्रतिनिधित्वकर्ताओं को कम्युनिस्टों द्वारा बनाई गई भाषा शैली के सीमित दायरे में रहकर ही अपने बयान देने पड़ते हैं, यह कम्युनिस्ट तंत्र की शक्ति है I
 
इसी बारे में राजीव मिश्रा जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि “शासन उसका नहीं होता जो कुर्सी पर बैठा है अपितु उसका है जिसकी बात वह कुर्सी पर बैठा आदमी सुनता हैI” दूसरा भाग अमेरिका में उदय हुए वामपंथ और समूचे राष्ट्र पर उसके दुष्प्रभाव व परिणामों की बात करता है वहीं तीसरा भाग चीन के सन्दर्भ में वही वर्णन करता है जो पिछले भाग में अमेरिका के बारे में किया गया था, साथ ही इस भाग में चीन की समाजवादी आर्थिक नीतियाँ (जो कि विनाशकारी सिद्ध हुईं) का भी वर्णन प्राप्त होता है I चौथा एवं अंतिम भाग में राजीव जी भारत में व्याप्त कम्युनिस्टों की वृत्ति एवं हथकंडों के बारे में वर्णन करता है जिसने आज राष्ट्र और समाज की व्यवस्था की नींव हिला कर समाज में अराजकता का प्रसार किया है I
 
“प्रारंभ में लेखक बताते हैं कि आज का वामपंथी आखिर किस शब्दावली का उपयोग कर अपनी फौज में नव युवाओं की नियुक्ति या रिक्रूटमेंट करता है, इस बात को राजीव मिश्रा जी ने बहुत ही सटीक ढंग से अपनी इस पुस्तक में कहा है, वे कहते हैं कि “वामपंथ सिंड्रोमिक है, अगर आपको एक लक्षण दिखाई देता है; तो आप दूसरा खोज सकते हैंI अगर एक व्यक्ति आपको जनवाद, शोषण, पूंजी पतियों के षड़यंत्र जैसे शब्द बोलता सुनाई पड़ता है तो समझ ले सतह कुरेदने पर और कुछ बातें मिलेंगीI  नारी के अधिकार,अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, युद्ध की विभीषिका,अमन की आशा जैसे नारे मिलेंगेI सीरिया के बच्चों का रोना धोना मिलेगा, ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंता मिलेगी, मदर टेरेसा की मूर्ति मिलेगी, समलैंगिकता का समर्थन मिलेगा, मोदी और ट्रंप का विरोध मिलेगा, भीतर छुपी हुई हिंदू धर्म के प्रति गहरी घृणा मिलेगी,राष्ट्र द्रोहियों और जिहादियों के लिए सहानुभूति मिलेगीI”
 
 
ऊपर केक की आइसिंग की तरह पर्यावरण की चिंता,पशुओं के प्रति करुणा कमजोर, और शोषितों के अधिकारों की लड़ाई, बच्चों की सुरक्षा की चिंता, समस्याएं ही समस्याएं दिखेंगी I समाधान की बात करते ही उन्हें आपके समाधान में फासिज्म की गंध आने लगेगीI वे आगे कहते हैं पूर्ण विकसित लेफ्टिस्ट सिंड्रोम और हिंदू धर्म में आपको तथाकथित दलित ही मिलेंगे, अब उनके साथ और जाट हित और पटेल हित चिंतक भी मिल गए हैंI
 
खैर आगे इस पुस्तक में राजीव जी पहले अमेरिका के वामपंथ की बात करते हैं I लेखक ने अमेरिका में उदय हुए वामपंथ के बारे में गहन अध्ययन किया है, लेखक ने 5 से 6 अध्याय में बताया है कि अमेरिका में उदय हुए वामपंथ ने किस प्रकार वहां की अर्थव्यवस्था - सामाजिक व्यवस्था व संस्कृति सभी को पूर्णत नष्ट करके रख दियाI एक चैप्टर में वे बताते हैं अमेरिका में व्याप्त इसी भयंकर वामपंथी रोग को समाप्त करने का बीड़ा 1950 से 1956 के बीच में सीनेटर जोसेफ मैककार्थी ने उठाया था I इन्होने कम्युनिस्टों के विरुद्ध जंग छेड़ दी थी I मैककार्थी ने यूनिवर्सिटी, स्टेट डिपार्टमेंट, हॉलीवुड,मीडिया,जुडिशरी सभी क्षेत्रों में जितने भी कम्युनिस्ट लोग भरे थे, उनसे पूछताछ कर उन्हें जेल में डाल दिया I इससे कम्युनिस्टों की पूरी लॉबी बुरी तरह तमतमा गई एवं मैककार्थी को समाप्त करने की षड्यंत्र बनाने लगी हालांकि मैककार्थी अपने इस अभियान में सफल थेI
 
अमेरिका का पूरा वामपंथी तंत्र मैककार्थी से परेशान हो गया था, इसी बीच मैककार्थी की भेंट शाइन नाम के एक व्यक्ति से हुई जो होटल का मालिक थाI होटल हर एक कमरे में शाइन की स्वयं द्वारा लिखित पुस्तक रखी हुई थी जिसका नाम था ‘डेफिनेशन ऑफ कम्युनिज्म’I जब यह पुस्तिका मैककार्थी की दृष्टि में आई तो वे शाइन के इस प्रयास से बहुत प्रभावित हुए I
 
शाइन ने अनिवार्य सैनिक सेवा एक सामान्य सिपाही प्राइवेट सिपाही के रूप में ज्वाइन कि थी, पर अपनी कम्युनिस्ट विरोधी राजनीतिक विचारधारा और मैककार्थी से परिचय की वजह से शाइन संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगाI इसी बीच मैककार्थी ने शाइन को सेना में अफसर बनाने की सिफारिश कर दी,जिससे उसकी बौद्धिक क्षमता का पूरा प्रयोग किया जा सके, सेना के कुछ वामपंथी अधिकारी जो पहले से ही मैक्कार्थी की कम्युनिस्ट विरोधी नीतियों से चिढ़े हुए बैठे थे, वे मैककार्थी के इस प्रस्ताव पर तमतमा गएI बाद में मैककार्थी के विरोध में कांग्रेस में निंदा प्रस्ताव पास किया गया और एक झटके से ही उसका राजनीतिक कैरियर समाप्त कर दिया गया I
 
बाद में 48 वर्ष की आयु में घुटने में दर्द की शिकायत के साथ वह हॉस्पिटल में भर्ती हुए वह मृत्यु को प्राप्त हो गए I हालांकि उसकी मृत्यु सुनियोजित हत्या बताइ गई, अब यदि बात करें भारत की तो यहां भी कम्युनिस्ट के तथाकथित सिद्धांतों पर जो भारतीय राजनेता नहीं चले उनके साथ भी यही किया गया, मात्र उन्हें शारीरिक मृत्यु नहीं दी गई अपितु एक व्यक्तित्व के तौर पर उन्हें इतिहास के पन्नों से ही गायब कर दिया गयाI उदाहरण भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी, भाजपा के पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी एवं कांग्रेस के श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी इनकी मृत्यु प्राकृतिक मृत्यु ना होकर हत्या है, यह बात सभी को विदित है किंतु फिर भी इस पर प्रश्न उठाने की हिम्मत आज तक कोई नहीं कर पाया, कम्युनिस्टों के तंत्र की शक्ति का यही तो कमाल हैI
 
इसी संदर्भ में इस पुस्तक में यह लिखा गया है कि “एक बार केरल के वामपंथी मंत्री ने कम्युनिस्ट हत्यारों और गुंडों की तारीफ में यह कहा कि अपने शत्रु की हत्या का उनका तरीका बहुत सटीक है, बीमार कर लाश खुले में नहीं छोड़ते हैंI बल्कि इस जमीन के नीचे नमक के साथ काट देते हैं जिससे लाशों बिल्कुल गल जाए और कुछ भी ना बचे I”
 
कम्युनिस्ट प्रवृत्तियां अगले लेख भाग 2 में.......