भारत के कम्युनिस्टों की वृतियों को उजागर करती पुस्तक विषैला वामपंथ भाग 3

अन्याय आज नहीं हो रहा तो 300 साल पहले हुआ होगा,कहीं नहीं तो किसी के मन में किसी पूर्वाग्रह के रूप में छुपा होगा और यह कहानी ठीक-ठाक नहीं बिक रही हो तो उन्हीं के बीच से एक व्यक्ति एक ऐसा कांड कर देगा जिसे उनके मनपसंद अन्याय के नैरेटिव में फिट किया जा सके

The Narrative World    31-Jan-2023   
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पिछले भाग में कम्युनिज्म (वामपंथ) क्या है, अमेरिका एवं चीन में इसका क्या प्रभाव या यूँ कहें क्या दुष्प्रभाव रहा इसका वर्णन राजीव मिश्रा जी अपनी पुस्तक ‘विषैला वामपंथ’ में करते हैंI अब इस भाग में लेखक ने भारत में जो कम्युनिस्ट प्रवृत्तियां व्याप्त हैं उनके बारे में बताया हैं I भारत में व्याप्त कम्युनिस्ट की प्रवृत्ति बताते हुए सर्वप्रथम वे कहते हैं कि ‘वामपंथ पीड़ा का व्यवसाय है’I
 
उन्हीं के शब्दों में कहा जाए तो “कोई भी समीकरण हो, समाज में कहीं ना कहीं कोई ना कोई अन्याय हो ही रहा होगा और हर स्थिति में यह कोई ना कोई समीकरण निकाल कर एक अन्याय वर्ग और एक एक पीड़ित वर्ग ढूंढ ही रहते हैं और अगर कहीं अन्याय आज नहीं हो रहा तो 300 साल पहले हुआ होगा,कहीं नहीं तो किसी के मन में किसी पूर्वाग्रह के रूप में छुपा होगा और यह कहानी ठीक-ठाक नहीं बिक रही हो तो उन्हीं के बीच से एक व्यक्ति एक ऐसा कांड कर देगा जिसे उनके मनपसंद अन्याय के नैरेटिव में फिट किया जा सके, एक आध सवर्ण –पुरुष- बहुसंख्यक- अन्याय तो यह स्पॉन्सर कर सकते हैंI ”
 
दूसरी प्रवृत्ति जो वामपंथियों की राजीव जी ने बताई है वह है कि वामपंथी स्वयं अमीर परिवारों से होते हैं और उसके बावजूद समाज और राष्ट्र में गरीबी कितने वृहद स्तर पर व्याप्त है और गरीबों को अपनी गरीबी के विरुद्ध जाकर लड़ना चाहिए और सरकार से मुफ्तखोरी के लिए लड़ने को भड़काते हैंI वे बताते हैं कि वामपंथ और समाजवाद के जितने सितारे थे उन सभी के पृष्ठभूमि बड़े पैसे वाले खानदान की थी, किसी ने व्यक्तिगत संपत्ति कभी किसी गरीब को नहीं दी अभी तक, बस सरकार से ही मांग करते रहेI इसका उद्देश्य स्पष्ट है, समाज और राष्ट्र में सतत संघर्ष की अवस्था बनाए रखना I
 
यहाँ तक कि अमेरिकी इतिहास में जितने भी समाजवादी के राजनेता हुए, सभी पैसे वाले परिवारों के थे जैसे कि रुजवेल्ट राष्ट्रपतियों के परिवार से थेI अब इसी सन्दर्भ में यदि बात करें भारत की तो भारत में 1950 के दशक में समाजवाद अर्थव्यवस्था का पुरजोर समर्थन करने वाले हमारे भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू के पिता स्वयं एक प्रतिष्ठित वकील थे ,एक्टिविस्ट थे और उनके पिता अर्थात जवाहरलाल नेहरू के दादाजी गंगाधर नेहरू मुगलई दरबार में कोतवाल थे, इस प्रकार नेहरू स्वयं एक संपन्न परिवार से तालुकात रखते थे इसके बावजूद जीवन भर उन्होंने समाजवाद के नीति का समर्थन किया यह बात अलग है कि अपनी संपत्ति में से किसी भी प्रकार का हिस्सा उन्होंने समाज को देना उचित नहीं समझाI और इसी के साथ उन्होंने भारत के प्रत्येक क्षेत्र को साम्यवाद के पहलुओं की ओर मोड़ दिया इतिहास,आर्थिक नीति, विदेश नीति, साहित्य,पत्रकारिताI
 
“राजीव जी के शब्दों में बात करें तो “समाजवाद समानता उच्चतर मानवीय मूल्य यह सब भरे पेट के शगल हैं,सामान्य मेहनती आदमी समानता नहीं; सफलता खोजता है और अपनी उपलब्धि को अपने बच्चों तक पहुंचाने का और उन्हें जीवन में एक अच्छी शुरुआत देने का भी हक रखता हैI मेहनती आदमी से छीन कर निकम्मे को देने का वादा करके सत्ता पर कब्जा करने की मंशा का नाम है समाजवादI””
 
 
भारत के वामपंथ की एक और प्रवृत्ति जो राजीव जी अपने शब्दों में बहुत ही सटीक ढंग से वर्णन करते हैं कि “कोई मुस्लिम कितना भी कट्टर कम्युनिस्ट क्यों ना हो जाए, वह इस्लाम को नहीं छोड़ता उसके लिए काबे के बुत उठवाना इंकलाब है, अल्लाह का नाम ही सबसे बड़ी सत्ता है और कोई भी वामपंथी किसी भी कौम का क्यों ना हो कभी भी इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं बोलता क्रिटिकल थ्योरी वाले ‘रिलीजन’ को आवाम की अफीम कहते हैं कि किन्तु वे कभी इस्लाम के खिलाफ मुंह नहीं खोलते; चाहे कुछ भी हो जाए, उन्हें सऊदी अरब में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं दिखता तीन तलाक और इस्लाम में भी नारी सशक्तिकरण खोज ही लेते हैं, कभी सोचा है.... क्यों ?, क्योंकि किसी की तलवार और ढाल आपस में कभी नहीं लड़तेI”
 
इस के साथ ही भारत के कम्युनिस्टों की वर्तमान समय की सबसे प्रमुख प्रवृत्ति बताते हुए राजीव मिश्रा जी ने पॉलीटिकल करेक्टनेस जुमले का असल उपयोग बताया है जब भी आप तर्कसंगत या तथ्य पूर्ण बात करते हैं तो इन वामियों द्वारा आपकी बातों को सिरे से नकार दिया जाता है यह कहकर कि आप पॉलिटिकली करेक्ट नहीं हैI पॉलिटिकली करेक्ट होने के सिद्धांत इन्होंने ही निर्धारित किए हैं एवं अन्य लोगों को इन्हीं सिद्धांतों से चलने के लिए यह वामपंथियों की ही टोली बाध्य करती हैI राजीव मिश्रा जी अपनी पुस्तक में यह कहते हैं कि “नंगापन उच्चश्रृंखला नारीवाद के पीछे छुप गया, इस्लामिक आतंकवाद सेकुलरिज्म और सर्वधर्म के पीछे, चोरी और निकम्मा समानता की मांग के पीछे छुप गया, अनुशासनहीनता और आपराधिक मनोवृत्ति सामाजिक भेदभाव के विरोध के पीछे जाकर चुप गयाI इस प्रकार इन वामियों का पॉलीटिकल करेक्टनेस सभी प्रकार के अनैतिक और अनुचित बातों को एक मुकुट प्रदान करता हैI