निर्गुण जय जय ,सगुण अनामय ,निराकार साकार हरे, पार्वती पति हर हर शम्भू ,पाहि पाहि दातार हरे
परिवार एक सुसंगठित नीव जहाँ हर पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति व संस्कारो को प्रवाहित करती जाती है । व्रत त्योहार से अलंकृत परिवार एक अलग ही खुशबू आध्यात्मिक वातावरण से सराबोर किये रखता है। हर व्रत व त्योहार जहाँ पृथ्वी पर होने वाले वातावरणीय परिवर्तन पर आधारित हैं।
पतझड़ का मौसम नई सृष्टि की आगाज , पलाश के फूलों की सुगंध से सुगन्धित बयार ,एक नई चेतना व ऊर्जा के प्रवाह को प्रकटित करता है। वही पृथ्वी पर भी ऊर्जा परिवर्तन का एक ट्रांसिक्शन पीरियड जिसमे पृथ्वी पर ऊर्जा का संचार चरम पर होता हैं। ऐसा ही फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एक पर्व महाशिवरात्रि का भगवान शिव और माँ पार्वती के विवाह का दिन या शिव विवाह का पर्व हर्षोउल्लास से पूरे भारत मे मनाया जाता हैं। आखिर शिव विवाह इतना महत्वपूर्ण क्यों व वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसे समझना आवश्यक क्यों है।
इस बात पर ध्यान देना होगा कि आज भी छोटे ग्रामीण व जनजातीय अंचलों में शिवलिंग के प्रमाण मिलते हैं ,भले ही उनकी प्रतिकात्मकता को वर्तमान में नजरअंदाज किया जा सकता हैं परंतु सत्य है आदिदेव महादेव कैलाश से जंगल व कण कण में व्याप्त है यही कारण है कि हम सभी का मूल अस्तित्व एक ही है।
कैलाश वासी शिव औऱ उनकी भार्या माँ पार्वती एक शक्ति स्वरूपा मानी जाती हैं वही आगे चलकर एक सुगठित दिव्य आभा स्वरूपा उनके पुत्र श्री गणेश व कार्तिकेय सर्वप्रथम सर्वपूज्य विघ्नहर्ता श्री गणेश की महिमा अपरम्पार है।
“विवाह का अर्थ ही है ,जीवन के एक नए चरण की शुरुआत करना जहां पति हो या पत्नी एक दूसरे के प्रति स्नेह , मर्म , विश्वास ,नई विचारधारा ,नव निर्माण का जीवन मे नव संचार जहां ये शब्द समाहित ही जाते है वही से सृजन का शुभारंभ होने लगता हैं यही पर्व हमे महाशिवरात्रि पर देखने को मिलता हैं वैसे इस वर्ष 2023 के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य और चंद्र अधिक नजदीक रहते हैं। इस दिन को शीतल चन्द्रमा और रौद्र शिवरूपी सूर्य का मिलन माना जाता हैं। देवाधिदेव महादेव के विवाह को पृथ्वी पर प्रकृति सृजन के साथ सत्यापित करता हैं । एक सार्थक ऊर्जा से भरपूर शिव परिवार।”
हम देखते है कि फाल्गुन मास में होली का पदार्पण होने को हैं जहाँ गेंहू का पकना आमो के पेड़ में मोरो से अमिया का आना कई रंगों का जीवन मे प्रवेश करना शिव पुराण में आता है , क्योंकि सांसारिक जीवन अपार चुनोतियो को स्वीकारता और अपने अंतिम चरण मृत्यु की और जाता हैं। वही सांसारिक जीवन मे कर्मो की सार्थकता अंतिम चरण को निर्धारित करती हैं।
महाशिवरात्रि पर जप तप अराधना हमारे समक्ष दिव्य ऊर्जा का संचार करती हैं क्योंकि साधना व्यक्ति को सीधा बैठने से वर्टिब्रल कॉलम या रीढ़ की हड्डी को सुदृढ़ करती हैं वही ये चरितार्थ है शिवलिंग का पूजन एक एटॉमिक पावर को संचारित करती हैं ।
क्योंकि शिवलिंग पर जल चढ़ाने से पृथ्वी के स्तर को ठंडा रखने में सहायक है यही कारण है समस्त शिवलिंग नदी स्रोत के समक्ष मिलते है पृथ्वी पर खरबो जीव निवास करते हैं औऱ जीवन हेतु जल अतिआवश्यक है शिवलिंग का होना औऱ पूजन पृथ्वी पर ताप को नियंत्रित रखता है। वही शिवलिंग की परिक्रमा नही की जाती बिल्कुल वैसे ही जैसे निष्कासित जल को लाँघा नही जाता
क्योंकि उस जल में सर्व निर्माल्य होता है। शिवलिंग पर चढ़ाई जाने वाली समस्त पूजन सामग्री भी इसी प्रतिरूप को ध्यान में रखते हुए चढ़ाई जाती हैं। बैल पत्र में रेडियो एक्टिव विकिरणों को रोकने में सहायक है ये सत्य है सूर्य से निकलने वाली रेडियो एक्टिव किरणों पृथ्वी वासियों के लिए हानिकारक है अतः शिवलिंग का पूजन व शिवरात्रि या महादेव का विवाह एक पॉजिटिव फैमिली कंस्ट्रक्शन की और इंगित करता हैं ।
एक राजशाही परिवेश में पली माँ पार्वती सभी ऐश्वर्यों को एक तरफ़ रख भोलेनाथ की ही स्नेहील बन उनकी शक्ति बनी ये बात सिखाती है सांसारिक जीवन सिर्फ भोगविलास नही वरन स्नेह व विश्वास पर टिका है अगर ये दो बाते जीवन मे गठित है तो बाकी की जीवन नैया अपने आप पार लग जाएगी ।
बाकी कर्मसाधना जीवन अंशों को सुगठित कर देगी।शिव जी का विषपान भी इस तथ्य को उदबोधित करता है कि सांसारिक जीवन मे विष की तरह बुराइयों को स्वीकार कर उन्हें अपने मे ग्रहण कर समाज मे फैलने से रोकना भी आवश्यक है।
सिर्फ शिवलिंग का पूजन जब इतनी सार्थक ऊर्जा को उत्सर्जित करता है तो निश्चित उसमें अधिक शक्ति का संचय होना (माँ पार्वती जी )व ऊर्जा में परिवर्तन होना तदनुसार नजर आता हैं ही है।
शिवशक्ति का साकार स्वरूप जिसे हमारे आज के परिप्रेक्ष्य में आध्यात्मिक व पारम्परिक रूप में समझना जरूरी है क्योंकि 21 वी सदी से निकलते हम भारत मे विवाह व विवाह से जुड़ी उन गूढ़ बातों को नजरअंदाज करते जा रहे है ।किस तरह हमारी परम्पराए दकियानूसी नही वरन जीवन जीने के हर सार्थक पहलू को सिखाती हैं।
जननिहि बहुरि मिलि चली उचित असीस सब काहूँ दईं |
फिरि फिरि बिलोकति मातु तन तब सखीं लै सिव पहिं गईं ॥
जाचक सकल संतोशी संकरु उमा सहित भवन चले।
सब अमर हरषे सुमन बरषि निसान नभ बाजे भले।
पार्वतीजी माता से मिलकर चलीं, किसी ने उन्हें योग्य आशीर्वाद दिए। पार्वतीजी अपनी माता की ओर देखती जाती थीं। और सखियाँ उन्हें शिवजी के पास ले गईं। महादेवजी सब याचकों को संतुष्ट कर पार्वती के साथ कैलास को चले। सब देवता प्रसन्न होकर फूलों की वर्षा करने लगे और आकाश में सुंदर नगाड़े बजाने लगे।
जिम्मेदारी हमारी
भगवान शिव-पार्वती के विवाह उत्सव से सकारात्मक ऊर्जा को तत्व में ग्रहण कर हमारी आध्यात्मिक विवाह वृत्ति को आत्मसात कर क्रियान्वित करे जिससे हमारी संस्कृति सभ्यता और आध्यात्म का सार्थक महत्व सदा बना रहे।
लेख - निवेदिता सक्सेना
ईमेल- niveditasaxena11819@gmail.com