महाशिवरात्रि ही महाकालरात्रि है । महाकालरात्रि अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का वह प्रथम पल जब समय का अंकुर फूटा था और सृष्टि का आरंभ हुआ था । मान्यता है कि समय और सृष्टि के अंकुरण का केन्द्र मध्यप्रदेश का यही उज्जैन है जहाँ महाकाल विराजे हैं। इसीलिए महाशिवरात्रि पर प्रतिवर्ष महाकाल परिसर विशेष सजावट होती है । जो अन्य शिवधामों से बहुत अलग है । महाकाल रात्रि पर महाकाल बाबा का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव से भरा है । वैदिक काल से विक्रमादित्य काल तक शिवरात्रि पर महाकाल बाबा की शोभा भव्यतम रही तो सल्तनत काल में गहन अंधकार भी । लेकिन अब समय करवट ले रहा है और महाकाल बाबा का केन्द्र स्थान महाकाल लोक ले रहा है जिसकी झलक इस शिवरात्रि पर विशिष्ठ होगी ।
महाशिवरात्रि फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है । इसे महाकाल रात्रि भी कहा गया है । तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ इस तिथि से जुड़ीं हैं। सबसे पहली घटना यह कि समय और सृष्टि का आरंभ इसी तिथि से हुआ था । काल अर्थात समय ।
महाकाल अर्थात समय का वह पल जो समय की श्रृंखला में श्रेष्ठतम है । समय श्रृंखला का श्रेष्ठतम पल समय के आरंभ क्षण को ही माना गया है । समय सृष्टि और प्रकाश इनका अंकुरण एक साथ हुआ था इसलिये संबोधन महाकाल है और आकार ज्योति का । इसलिये यहाँ विराजे भगवान शिव को महाकाल कहा गया । दूसरी कथा समुद्र मंथन की है । इसी तिथि को भगवान शिव ने हलाहल विष पान किया । वे नीलकंठ बने और विष प्रभाव से बचने के लिये उन्होंने रात्रि जागरण किया ।
यह तिथि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की द्वादशी थी । इसलिये भी यह महाशिव रात्रि है । और तीसरी कथा भगवान शिव के विवाह की है । वह भी इसी तिथि से जुड़ी है । एक समय था जब पूरे संसार में महाशावरात्रि का यह त्यौहार मनाया जाता था । पूजन के लिये ज्योतिर्लिंग आकार होता है । तब विश्व में कुल चौंसठ ज्योतिर्लिंग हुआ करते थे लेकिन समय की धारा में विश्व का स्वरूप बदल गया । ज्योतिर्लिंग अब केवल बारह ही शेष बचे हैं। इनमें महाकाल की नगरी उज्जैन कर्क रेखा के किनारे बसी है । कर्क रेखा यदि समय चक्र का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है तो उज्जैन इस कर्क रेखा का महत्वपूर्ण केन्द्र । इसीलिए जिन स्थानों पर समय ज्ञान की वेधशालाएँ बनी थी, उनमें उज्जैन की वेधशाला वैज्ञानिक अनुसंधान का भी केन्द्र थी । किन्तु विदेशी आक्रमणों और सल्तनत काल में सब छिन्न-भिन्न हो गया था ।
ग्यारहवीं शताब्दी से महाकाल मंदिर पर जो आक्रमण और लूट आरंभ हुई वह निरंतर रही । 1235 में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने तो महाकाल परिसर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को सुरक्षित बचाने के लिए पास में ही बने कुएं में छुपा दिया गया था। लगभग 500 वर्षों तक महाकाल परिसर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहा । श्रद्धालुओं द्वारा ध्वस्त मंदिर में ही पूजा आराधना की जाती रही । समय ने एक करवट ली और मराठा शक्ति का उदय हुआ । मराठा सेना नायक राणोजी सिंधिया ने महाकाल परिसर मुक्त कराया और 1732 में महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण कराया । पुनः ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई । राणो जी ने ही बंद सिंहस्थ आयोजन परंपरा को पुनः आरंभ कराया।
अब समय ने फिर अंगड़ाई ली है । मध्यप्रदेश सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने महाकाल परिसर को भव्यता और विस्तार देने में रुचि ली है । और अब यह संपूर्ण परिक्षेत्र "महाकाल लोक" का स्वरूप लेने जा रहा है । महाशिवरात्रि की तैयारी में यह पूरा महाकाल लोक सज संवर रहा है । अभी महाकाल लोक पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हुआ है फिर भी भव्य स्वरूप उभर आया है । इस वर्ष यह महाशिवरात्रि पर्व के लिये इस पूरे परिक्षेत्र को विशेष रूप से सजाया जा रहा है । मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के मन में महाकाल नगरी को भव्य स्वरूप देने का विचार 2016 में आयोजित सिंहस्थ तैयारियों के बीच आया । उन्होंने विशेष रुचि लेकर महाकाल नगरी और क्षेत्र का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व समझा । और इसे उसी अनुरूप स्वरूप देने की योजनाएँ बनीं।
2018 में मंत्रीमंडल ने इस परियोजना को स्वीकृति दी थी। बीच में कोरोना महामारी के चलते कुछ रुकावट तो आई । लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का संकल्प यथावत रहा । 2020 में महाकाल लोक निर्माण कार्य ने पुनः गति पकड़ी और मात्र दो वर्ष में प्रथम चरण पूरा हो गया । जिसे 11 अक्टूबर 2022 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उज्जैन आकर लोकार्पित किया । प्रथम चरण को पूरा होने में कुल 316 करोड़ की लागत आई जबकि संपूर्ण महाकाल लोक कारीडोर परियोजना पर 856 करोड रुपए की लागत आने की संभावना है। श्री महाकाल लोक में जो सुविधाएं विकसित की गई हैं, उनसे श्रृद्धालुओं को सुविधा होगी ही साथ ही पर्यटकों का आकर्षण भी बढ़ेगा।
“महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर आने वाले श्रृद्धालुओं को महाकाल बाबा के दर्शन में भारी असुविधा होती थी । अब नये स्वरूप में 20 हजार तीर्थ यात्रियों की क्षमता वाला स्वागत संकुल क्षेत्र में बनाई गई है । नंदी द्वार और पिनाकी द्वार, रुद्र सागर तट एवं सप्तर्षि, 54 फीट ऊंचा पंचमुखी शिव स्तंभ निर्माण कार्य किये जा रहे है । एक ही समय में 6 हजार लोगों की क्षमता के उद्देश्य से मान सरोवर का विकास किया जा रहा है । इसके साथ महाकालेश्वर मंदिर एवं रामघाट से जोड़ने वाले प्राचीन पैदल मार्ग और महाकाल द्वार का संरक्षण, रुद्रसागर झील को शिप्रा नदी के जल से जोड़ने आदि के विकास विस्तार कार्य हो रहे हैं ।”
श्री महाकाल लोक कारीडोर लगभग 920 मीटर लंबा है जो देश में सबसे लंबा कारीडोर माना जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने सिंहस्थ की तैयारियों में जो समस्याएँ समझीं थीं, उनके समाधान को ध्यान में रखकर महाकाल लोक का निर्माण किया जा रहा है । श्री महाकाल लोक कारीडोर को कुछ इस प्रकार से डिजाइन किया जा रहा है कि एक लाख लोग लगभग एक घंटे में ही बाबा महाकाल के दर्शन कर सकें । इसकी झलक इस महाशिवरात्रि पर देखी जा सकती है ।
श्रृद्धालुओं की सुविधा के साथ पर्यटकों के आकर्षण और पर्यावरण संतुलन पर भी जोर दिया जा रहा है इसके लिये 18 हजार पौधे लगाए जा रहे हैं, जिन्हें आंध्र प्रदेश समेत विभिन्न राज्यों से मंगाया गया है। इनमें रुद्राक्ष, बेलपत्र जैसे पौधे हैं। महाकालरात्रि का वैज्ञानिक महत्व भी है । इस रात उत्तरी गोलार्द्ध कुछ इस प्रकार अवस्थित होता है। मानों सौरमंडल की आंतरिक ऊर्जा संचारित हो रही हो । मनुष्य की ऊर्जा का केन्द्र नाभि होता है । ऊर्जा जब ऊपर की ओर उठती हो तब सकारात्मक, निर्माणात्मक और आध्यात्मिक विचार उठते हैं और जब ऊर्जा नाभि से मूलाधार की ओर संवाहित होती है तब स्वार्थ वासना आदि नकारात्मक विचार आते हैं। यह स्वाभाविक स्थिति उत्तरी गोलार्ध से उठने वाली ऊर्जा तरंगो के कारण होता है ।
इसलिए इस रात्रि को जागरण और साधना की परंपरा बनी। ताकि मनुष्य साधना के शिखर तक पहुंच सके । यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में सहायता करती है। इसलिए शिवरात्रि पर व्यक्ति को ऊर्जा कुंज के साथ सीधे बैठ कर भगवान शिव की पेजा आराधना करने का निर्देश है। यह एक प्रकार से यौगिक क्रिया भी है जिससे रीड की हड्डी मजबूत होती है और व्यक्ति एक सुपर नेचर पावर का आभास होता है और मन प्रफुल्लित होता है । सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है । महाकाल लोक का निर्माण जितना भौतिक स्वरूप ले रहा उतना आंतरिक ऊर्जा स्त्रोत भी ग्रहण करेगा और इन सब की झलक इस वर्ष महाकालरात्रि को महाकाल नगरी में दिखेगी ।