देश भर में ईसाई मिशनरियों की अनैतिक गतिविधियों एवं अवैध मतांतरण के कारण विभिन्न राज्यों में जनजातीय समाज के भीतर आक्रोश दिखाई दे रहा है।
एक तरफ जहां मतांतरण के कारण बढ़ रही सामाजिक विद्वेष की भावना के चलते साम्प्रदायिक तनाव एवं हिंसा की स्थितियां निर्मित हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर जनजातीय समाज से धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने लोग अब घर वापसी कर रहे हैं।
इसी क्रम में झारखंड के लोहरदगा से एक बड़ा मामला सामने आया है, जहां एक ही परिवार के एक दर्जन से अधिक लोगों ने सनातन संस्कृति में वापसी की है।
जिले के सेन्हा प्रखंड के भीतर स्थित मैनाटोली गांव में एक ही परिवार के 13 मतांतरित सदस्यों ने ईसाई धर्म को छोड़ दिया है।
मिली जानकारी के अनुसार 11 वर्ष पूर्व 2012 में इन लोगों को प्रलोभन देकर एवं बहला-फुसलाकर ईसाई बनाया गया था, लेकिन अब इस परिवार ने घर वापसी कर ली है।
जिन जनजातीय परिवारों ने घर वापसी की है, उनमें से कुछ लोगों के नामों का परिवर्तन ईसाइयों ने करवा दिया था, जो अब पुनः अपने पूर्व के नाम को धारण कर चुके हैं।
ईसाई मिशनरियों के षड्यंत्र का शिकार बने इन पीड़ित जनजातियों में से एक सुखराम उरांव ने बताया कि धर्म परिवर्तन के बाद उसका नाम प्रेमदान खलखो रख दिया गया था, लेकिन अब उसने दोबारा अपने पुराने और असली नाम को ही अपना लिया है।
समाज के द्वारा जागरूक करने के बाद समाज के समक्ष ही इस परिवार ने ईसाई धर्म छोड़ कर अपने मूल धर्म में लौटने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद पूरे विधि-विधान और रीति-रिवाज के साथ उनकी घर वापसी कराई गई।
सरना समाज से जुड़े एक व्यक्ति का कहना है कि जिस गांव में परिवार रहता है, उसी गांव के पाहन-पुजार (पुरोहित) द्वारा जनजातीय रीति-रिवाज के माध्यम से 13 लोगों को पुनः अपने मूल धर्म में शामिल कराया गया है, जो एक ही परिवार से जुड़े हुए हैं।
घर वापसी करने वाले सुखराम उरांव का कहना है कि मिशनरियों के षड्यंत्र के कारण वो लोग बहकावे में ईसाई बन गए थे।
सुखराम ने बताया कि उनका परिवार हमेशा बीमार रहता था, और लोग उनके परिवार से दूरी बनाकर चलते थे।
इस दौरान रोग से मुक्त करने का प्रपंच रच उन्हें ईसाई बनाया गया था, लेकिन ईसाई बनने के बाद ना ही उन्हें कोई लाभ मिला और ना ही उनकी स्थिति में कोई सुधार आया।
अपनी मूल संस्कृति में लौटने वाले इन जनजातीय ग्रामीणों का कहना है कि मत परिवर्तन करने बाद ईसाइयों के द्वारा उनपर कई तरह के दबाव बनाए जाते थे।
ईसाई समूह उन्हें किसी सामाजिक या जनजातीय समाज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होने देते थे, साथ ही उन्हें देवी-देवताओं को पूजा करने से भी मना किया जाता था।
मिशनरियों की साजिश का शिकार बने इन सभी जनजातीय ग्रामीणों ने एकमत होकर कहा कि अपना मूल धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, और अब किसी के भी बहकावे में आकर अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे।
ग्रामीणों ने उन समूहों से भी आह्वान किया, जो ईसाई बन चुके हैं, कि अपनी मूल संस्कृति ही अच्छी है और यहां स्वतंत्रता है, अतः वो लोग भी घर वापसी कर लें।
सरना समाज का भी कहना है कि उनका समाज अब व्यापक स्तर पर मतांतरण करने वाले लोगों का पुरजोर विरोध कर रहा है, साथ ही ईसाई बन चुके लोगों की घर वापसी भी कराई जा रही है।
चाईबासा में भी 14 जनजाति नागरिकों ने छोड़ा ईसाई धर्म
लोहरदगा के अलावा चाईबासा में भी 14 जनजाति नागरिकों ने ईसाई धर्म छोड़ कर अपने मूल धर्म में वापसी की है।
बीते मंगलवार (31 जनवरी, 2023) को पश्चिमी सिंहभूम जिले के 14 जनजातीय नागरिकों ने ईसाई मत को त्याग दिया है।
इस दौरान हो जनजाति युवा समाज ने अग्रणी भूमिका निभाते हुए पूरे रीति-रिवाज से इन जनजातियों के घर वापसी के लिए व्यवस्था की थी।
समाज के लोगों ने यह भी कहा है कि जिन्होंने ईसाइयत छोड़ कर घर वापसी की है, उनके लिए समाज हरसंभव मदद करेगा।
जनजातीय समाज का कहना है कि युवा महासभा की ओर से ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है, ताकि वो ईसाइयों के द्वारा किए जा रहे धर्मान्तरण के कुचक्र में ना फंसे।
इसके अलावा ग्रामीणों को यह भी जानकारी दी जा रही है कि जनजातीय समाज को बचाने के लिए भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाज एवं पूजा-पाठ आवश्यक है।