वैश्विक स्तर पर भुगतान के माध्यम के रूप में स्थापित हो रहा है भारतीय रुपया

भारत द्वारा भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेशी व्यापार में भुगतान माध्यम के रूप में स्वीकृति प्रदान करना भारत के लिए गेम चेंजर साबित होगा

The Narrative World    11-Mar-2023   
Total Views |

representative images 
 
भारत में कच्चा तेल, स्वर्ण एवं रक्षा उपकरण जैसे उत्पादों का आयात सबसे अधिक होता है। आज भारत द्वारा सबसे अधिक तेल का आयात रूस से किया जा रहा है जिसका भुगतान रुपए अथवा रूबल में हो रहा है। “आत्मनिर्भर भारत” की घोषणा के बाद से रक्षा उपकरणों को भारत में ही निर्मित किए जाने के प्रयास तेजी से चल रहे हैं जिसके चलते रक्षा उपकरणों का आयात बहुत कम हो जाने की सम्भावना है। इसी प्रकार भारत यूनाइटेड अरब अमीरात से 200 टन सोने का आयात कर रहा है जिसका भुगतान भी भारतीय रुपए में किया जा रहा है।
 
कुल मिलाकर अब भारत को आगे आने वाले समय में अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम होने लगेगी। साथ ही, वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कई देशों के बीच रुपए की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ती जा रही है। अब प्रबल सम्भावना बनती जा रही है कि भारतीय रुपया शीघ्र ही वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार किया जाने लगेगा। इस संदर्भ में सबसे पहिले स्वर्ण, इसके बाद स्टर्लिंग पाउंड एवं अब अमेरिकी डॉलर ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार किये जाते रहे हैं। परंतु, अब भारतीय रुपए ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अगला डॉलर बनने की ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं।
 
अभी तक विश्व के 34 देशों ने भारत के साथ अपना विदेशी व्यापार भारतीय रुपए अथवा उन देशों की अपनी मुद्रा में करने की इच्छा व्यक्त की है। जबकि 64 अन्य देश, जिसमें इटली एवं जर्मनी जैसे विकसित देश भी शामिल हैं, इस सम्बंध में अपनी सकारात्मक सोच को आगे बढ़ा रहे हैं एवं भारत से उनकी चर्चा भी चल रही है। कुछ देशों (रूस, मारिशस, मलेशिया, श्रीलंका, सिंगापुर, म्यांमार, इजराईल, आदि) ने तो अपने विदेशी व्यापार के लेनदेनों का निपटान भारतीय रुपए अथवा उनकी स्वयं की मुद्रा में करने के उद्देश्य से भारतीय बैंकों के साथ विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते भी खोल लिए हैं।
 
इसके पूर्व, विदेशी व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक ने जुलाई 2022 में भारतीय रुपए को विदेशी व्यापार में भुगतान के माध्यम के रूप में स्वीकार्यता प्रदान की थी। विशेष रूप से रूस एवं यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के बाद रूस और इसके पूर्व ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते तेल उत्पादक देशों से कच्चे तेल के आयात में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इसलिए इन देशों द्वारा कच्चे तेल के भुगतान के रूप में भारतीय रुपए को स्वीकार करने पर अपनी सहमति दे दी गई थी।
 
“अतः अब अन्य देश भारत के साथ विदेशी व्यापार के व्यवहारों का निपटान भारतीय रुपए अथवा इन देशों की मुद्राओं में कर सकेंगे। भारत द्वारा भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेशी व्यापार में भुगतान माध्यम के रूप में स्वीकृति प्रदान करना भारत के लिए गेम चेंजर साबित होगा एवं इससे हाल ही के समय में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर लगातार बढ़ रहे दबाव को न केवल कम किया जा सकेगा बल्कि व्यापार घाटे को भी नियंत्रण में रखा जा सकेगा एवं इससे आयातित मुद्रा स्फीति पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। साथ ही, भारतीय रुपए की भुगतान माध्यम के रूप में स्वीकार्यता, अंतरराष्ट्रीय बाजार में, और भी तेजी से बढ़ने लगेगी।”
 
 
 
भारत को क्यों लेना पड़ा अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने का निर्णय, इसके कारणों का वर्णन निम्न प्रकार है। विशेष रूप से कोरोना महामारी, रूस यूक्रेन युद्ध, विभिन्न देशों में मुद्रा स्फीति के तेजी से बढ़ने एवं इसे नियंत्रित करने के लिए विशेष रूप से अमेरिका द्वारा ब्याज दरों में लगातार की जा रही वृद्धि के चलते अमेरिकी डॉलर की कीमत अन्य देशों की मुद्रा की कीमत की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। एक अमेरिकी डॉलर आज 82-83 रुपए का हो गया है। इसका आश्य यह है कि भारत सहित अन्य देशों की मुद्रा की कीमत गिरती जा रही है। हालांकि भारतीय रुपए की तुलना में अन्य देशों की मुद्रा की कीमत ज्यादा तेजी से गिरी है। एक तो, कच्चे तेल की कीमतें बहुत तेज गति से बढ़ी हैं और यह लगभग 130 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच कर अब लगभग 80-90 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं।
 
समस्त देश अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की खरीद का सामान्यतः अमेरिकी डॉलर में ही भुगतान करते हैं जिसके कारण अमेरिकी डॉलर की मांग भी बढ़ी है और जिसके चलते अमेरिकी डॉलर की कीमत में भी वृद्धि दर्ज हुई है। दूसरे, अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में मुद्रा स्फीति की दर 8 प्रतिशत के पार (ब्रिटेन में 10 प्रतिशत से अधिक एवं अमेरिका में 9.1 प्रतिशत) पहुंच गई थी जो कि इन देशों में पिछले 40-50 वर्षों में सबसे अधिक महंगाई की दर है। महंगाई पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से इन देशों द्वारा ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की जा रही है, जिसके कारण इन देशों द्वारा जारी किए जाने वाले बांडस पर प्रतिफल बहुत आकर्षित हो रहे है एवं विदेशी निवेशक विकासशील देशों के शेयर बाजार से अपना निवेश निकालकर अमेरिकी बांडस में अपना निवेश बढ़ाते जा रहे हैं। जिन विकासशील देशों से डॉलर का निवेश निकाला जा रहा है उन देशों के विदेशी मुद्रा के भंडार कम होते जा रहे हैं जिससे उनकी अपनी मुद्रा पर दबाव आ रहा है और डॉलर की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है।
 
विश्व की 6 बड़ी सबसे बड़ी मुद्राओं की कीमत की तुलना में अमेरिकी डॉलर की कीमत लगभग 18 प्रतिशत तक बढ़ गई है। अमेरिकी डॉलर का विश्व में एक रिजर्व मुद्रा के रूप में उपयोग हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेशी व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है अतः इन व्यवहारों का भुगतान करने के लिए सभी देशों को अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होती है। साथ ही, अमेरिकी संस्थानों का अन्य देशों के पूंजी बाजार में जो निवेश था वह निवेश भी अमेरिकी संस्थानों द्वारा निकाला जा रहा है और निवेश की इस राशि को अमेरिकी बांड्ज में लगाया जा रहा है। लगभग दो साल पहिले तक अमेरिकी बांड्ज पर ब्याज दर केवल 25 बेसिस पाइंटस थी जो आज बढ़कर 325 बेसिस पाइंटस से अधिक हो गई है।
 
वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर का लगातार इस प्रकार मजबूत होते जाना एवं अन्य देशों की मुद्रा की कीमत गिरते जाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि, जैसे यदि भारत का ही उदाहरण लें, भारतीय रुपए की कीमत लगातार अमेरिकी डॉलर की तुलना में गिरते जाने के मायने यह है कि भारत द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं का महंगा होते जाना एवं भारत द्वारा अधिक अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया जाना।
 
इसके परिणाम स्वरूप भारत में भी मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि हो रही है एवं इसे आयातित महंगाई भी कहा जाता है। इस प्रकार भारत सहित विश्व के अन्य देशों की विदेशी व्यापार करने पर अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता बढ़ गई है। हालांकि विश्व के समस्त देश वैश्विक स्तर पर विदेशी व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा, जैसे अमेरिकी डॉलर, यूरो एवं पाउंड का इस्तेमाल करते रहे हैं, परंतु, अमेरिकी डॉलर अभी भी विदेशी व्यापार के लिए सबसे प्रभावी मुद्रा बना हुआ है और इसीलिए पूरी दुनिया में अमेरिका की बादशाहत भी है।
 
भारतीय रुपए की कीमत भी अमेरिकी डॉलर की तुलना में पिछले एक वर्ष के दौरान लगभग 9 प्रतिशत नीचे आ चुकी है। अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में लगातार हो रही ब्याज दरों में वृद्धि के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत से पिछले 18 माह के दौरान लगभग 230,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि निकाली है। दूसरे, भारत पूरे विश्व में कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक देशों में शामिल है। भारत अपनी तेल खपत का लगभग 80 प्रतिशत से अधिक भाग आयात करता है। हाल ही के समय में भारत में आर्थिक गतिविधियों में आई तेजी के चलते कच्चे तेल की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है।
 
अतः भारत को कच्चे तेल की कीमत चुकाने के लिए अमेरिकी डॉलर की जरूरत हुई है और इसकी मांग बढ़ने से अमेरिकी डॉलर की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही है। केवल भारतीय रुपया ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी देशों की मुद्राओं की कीमत में कमी दृष्टिगोचर है। बल्कि अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत भारतीय रुपए की तुलना में और अधिक तेजी से गिरी है। इस दृष्टि से भारतीय रुपए की कीमत अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में (अमेरिकी डॉलर को छोड़कर) बढ़ रही है। अभी हाल ही के समय में यूरो की कीमत गिरते गिरते अब अमेरिकी डॉलर की कीमत तक नीचे आ गई है। इसका मुख्य कारण भी निवेशकों द्वारा यूरोजोन से निवेश बाहर निकाल कर अमेरिका की ओर मोड़ते जाना है।
 
वर्ष 2021 में एक यूरो की कीमत लगभग 90 रुपए थी जो अब लगभग 87 रुपए तक नीचे आ गई है। इस प्रकार यूरो की तुलना में रुपए की कीमत में सुधार हुआ है। इसी प्रकार, एक जापानी येन की कीमत वर्ष 2021 में 0.70 रुपए थी जो आज 0.61 रुपए हो गई है तथा एक पाउंड स्टर्लिंग की कीमत वर्ष 2021 में 101 रुपए थी जो अब घटकर 98 रुपए हो गई है एवं एक फ्रेंच फ़्रैंक की कीमत वर्ष 2021 में 13.60 रुपए थी जो अब घटकर 13.2 रुपए हो गई है। इस प्रकार उक्त चारों मुख्य मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी है परंतु केवल अमेरिकी डॉलर की तुलना में उक्त वर्णित कारणों के चलते घटी है।
 

प्रहलाद सबनानी

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक, एसबीआई