जब कोरोना वायरस ने पहली बार दस्तक दी थी, तभी चीन के एक चिकित्सक के पूरी दुनिया को आगाह करने का प्रयास किया था।
इसके लिए उस डॉक्टर ने पहले तो अपने साथियों और उसके बाद अन्य लोगों को इसकी जानकारी दी थी।
लेकिन चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने उस डॉक्टर पर ही कार्रवाई करते हुए इस पूरे मामले को दबा दिया था। इसके बाद अचानक ही उस डॉक्टर की रहस्यमय मृत्यु हो गई थी।
वह डॉक्टर उसी वुहान शहर के एक अस्पताल का डॉक्टर था जहां से कोरोना महामारी पूरी दुनिया में फैली थी। डॉक्टर का नाम था ली वेंलियांग।
खैर यह तो एक डॉक्टर और एक व्यक्ति की कहानी थी, चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने तो इस महामारी से जुड़े तमाम जानकारियों को छिपाने के लिए अनेकों जिंदगियों को तबाह कर दिया।
दुनियाभर के विशेषज्ञों ने इस बात की ओर संकेत दिया कि यह महामारी या तो चीन के द्वारा फैलाई गई है या चीन के किसी रिसर्च लैब से लीक हुई है।
चीन ने शुरुआत से ही महामारी से संबंधित किसी भी डाटा का खुलासा नहीं किया साथ ही दुनिया के किसी भी देश एवं किसी भी वैश्विक संगठन के द्वारा मांगी गई जानकारियों को पूरी सत्यता के साथ नहीं दिया।
चीन के द्वारा की गई इन हरकतों के कारण वैक्सीन बनने में देरी हुई और हजारों बेगुनाह मारे गए।
अब इस महामारी को आए साढ़े तीन वर्ष बीत चुके हैं, और इन सब के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोनावायरस महामारी से संबंधित डेटा का खुलासा नहीं करने पर चीन को कड़ी फटकार लगाई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीते शुक्रवार को चीनी कम्युनिस्ट अधिकारियों से स्पष्ट रूप से कहा कि 3 वर्ष पहले के डाटा का खुलासा आखिर उन्होंने क्यों नहीं किया है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन जानकारियों के बारे में भी चीनी कम्युनिस्ट अधिकारियों से पूछा कि जिन जानकारियों को पहले सार्वजनिक किया गया था और बाद में चीन ने उसे हटा दिया।
दरअसल चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने अपनी असलियत उजागर होने के डर से कोरोनावायरस की उत्पत्ति को लेकर चल रहे हैं साइंटिफिक रिसर्च को पूरी तरह से रोक दिया है।
अब इस मामले को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सवाल खड़ा किया है कि आखिर चीन ने इस वैज्ञानिक अनुसंधान को क्यों रोका है।
चीन को लेकर आरोपों की झड़ी लगाते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेद्रोस ने स्पष्ट रूप से कहा कि कोरोनावायरस से जुड़े तमाम आंकड़ों को 3 साल पहले ही सभी के साथ साझा किया जाना चाहिए था और उसे किया भी जा सकता था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने आगे यह भी कहा कि जो सबूत अभी तक नहीं मिल पाए हैं उन्हें अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ तुरंत साझा करने की आवश्यकता है।
दरअसल हाल ही में कोरोनावायरस पर रिसर्च कर रहे हैं विशेषज्ञों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम में जांच में यह पाया था कि यह महामारी चीन में अवैध रूप से बिकने वाली रैकून कुत्तों से शुरू हुई थी।
बाद में इस महामारी ने विकराल रूप लेते हुए वुहान शहर के सीफूड बाजार से आम लोगों को संक्रमित किया।
अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों किस टीम ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले चाइनीस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के द्वारा जारी की गई रिपोर्ट और वायरस से संबंधित डेटाबेस का गहन अध्ययन कर विश्लेषण किया था।
दिलचस्प बात यह है कि जब अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने इस डेटा का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट को सामने रखा तो उसके बाद चीन ने अपने ही डाटा को सार्वजनिक प्लेटफार्म से हटा दिया।
चीनी रिसर्च संस्था ने इस पूरे डाटा को वर्ष 2020 में वुहान के बाजार से लिया था, जिसके बाद पूरी रिपोर्ट सामने आई थी।
चीनी कम्युनिस्ट सरकार के द्वारा इस डाटा को हटाने के बाद एक बार फिर इस बात के संकेत गहरे होते जा रहे हैं कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने महामारी को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया बल्कि उसकी लापरवाही के कारण ही इस महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया।
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों किस समूह ने जब महामारी से जुड़े इस पूरे डाटा का विश्लेषण किया तब उन्हें इस बात के सबूत मिले हैं कि कोरोनावायरस फैलने के पीछे लोमड़ी जैसे एक जानवर, जिसे रैकून कुत्ता कहा जाता है, हो सकता है।
विशेषज्ञों को इस कुत्ते का डीएनए वुहान बाजार के उन्हीं स्थानों पर प्राप्त हुआ है जहां से कोरोनावायरस से संबंधित साक्ष्य प्राप्त हुए थे।
इन्हीं कारणों से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन को फटकार लगाते हुए कहा है कि आखिर उसने कोरोनावायरस से संबंधित डाटा को सार्वजनिक क्यों नहीं किया?
इसके अलावा जब अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की टीम ने चीन के द्वारा जारी किए गए डेटा का अध्ययन कर एक संभावित निष्कर्ष निकालने का प्रयास किया तब चीन में उस डाटा को ही सार्वजनिक प्लेटफार्म से हटा दिया।
इस घटनाक्रम को लेकर भी विश्व स्वास्थ संगठन में चीनी कम्युनिस्ट सरकार पर प्रश्नचिन्ह खड़े किए हैं।
अमेरिका के वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक खबर में यह कहा गया था कि ऊर्जा विभाग की रिपोर्ट के अनुसार चीन की प्रयोगशाला से इस वायरस की उत्पत्ति हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया था कि महामारी संभवतः एक चीनी प्रयोगशाला में दुर्घटना के माध्यम से फैली है।
अमेरिका के ऊर्जा विभाग ही नहीं इससे पूर्व अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने भी यह निष्कर्ष निकाला था कि इनके एक प्रयोगशाला में रिसाव के कारण ही कोरोनावायरस महामारी दुनिया भर में फैली थी।
अब इस मामले में एक कदम आगे बढ़ते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक बिल पर हस्ताक्षर करते हुए इस बात को स्वीकृति दी है कि अमेरिकी एजेंसियों के द्वारा महामारी की उत्पत्ति से संबंधित जितनी भी जानकारियां जुटाई गई है उन्हें अब सार्वजनिक किया जाएगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति का कहना है कि हमें यह समझने की आवश्यकता है कि महामारी की उत्पत्ति कैसे हुई थी ताकि भविष्य में आने वाली ऐसी किसी भी आपदा से हम खुद को बचा सकें।
दरअसल चीन ने लगातार महामारी की उत्पत्ति से संबंधित किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान का विरोध किया है या तो उस पर रुकावट डालने की कोशिश की है।
चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने पहले तो महामारी से जुड़े तमाम मामलों को छुपाने का प्रयास किया इसके बाद जिन लोगों ने इससे जुड़ी जानकारियों को सार्वजनिक करने की कोशिश की उन्हें चुप करा दिया गया और अंतरराष्ट्रीय स्वतंत्र जांचकर्ताओं को इस महामारी की उत्पत्ति की कभी जांच नहीं करने दी।
यह सभी घटनाक्रम इस बात की ओर इंगित करते हैं कि चीनी कम्युनिस्ट सरकार ने योजना बनाकर महामारी को पूरी दुनिया में फैलाने का कार्य किया है जिसके कारण दुनिया भर में करोड़ों परिवार तबाह हो गए।