लोकतंत्र है साहब…….जागीर नहीं…..!

तो क्या वाक़ई देश में लोकतंत्र खतरे में है, जहां अब वर्तमान केंद्र सरकार इतनी प्रभावशाली हो चली है जो न्यायालय के निर्णयों को भी प्रभावित कर सके या फिर यह विशुद्ध रूप से एक परिवार के देश में विशेषाधिकार को स्थापित रखने का ही संघर्ष है

The Narrative World    28-Mar-2023   
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 (चित्र : सोशल मीडिया)
 
केरल के वायनाड से सांसद रहे राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने को लेकर देश में विपक्ष विशेषकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोला हुआ है, स्थिति ऐसी है कि कांग्रेसी सांसदों से लेकर जिन राज्यों में भी कांग्रेस की सरकारें हैं वहां भी पार्टी अपने डी-फैक्टो नेता को लेकर सड़को पर है, कांग्रेसी नेताओं का तर्क यह है कि भले ही राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने का आदेश न्यायालय ने दिया हो लेकिन यह सब कुछ केंद्र सरकार का ही किया धरा है जिसको लेकर कांग्रेस आर पार के मूड में दिखाई दे रही।
 
राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के इस पूरे मामले को लेकर पार्टी की बेचैनी को ऐसे समझे कि इन विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई करने प्रियंका वाड्रा सामने आईं जिन्होंने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए दावा किया कि यह उनके बलिदानी पिता का अपमान है, उन्होंने आरोप लगाया कि राहुल गांधी एवं उनके परिवार को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता लगातार अमर्यादित टिप्पणी करते रहे हैं, लेकिन कार्यवाई उनके भाई पर ही कि गई है, वहीं सोमवार को इस मामले से संबंधित विकास में लोकसभा हाउसिंग कमेटी द्वारा राहुल को सरकारी आवास खाली करने को दिए गए नोटिस के बाद कांग्रेसी नेता इसे भाजपा के बड़े षड़यंत्र के रूप में परिभाषित करने में लगे हैं।
 
भाजपा की बात करें तो कांग्रेस के इन विरोध प्रदर्शनों से इतर भाजपा भी इस पूरे मुद्दे पर आक्रामक ही दिखाई दे रही है, पार्टी राहुल गांधी के इस पूरे मामले को ओबीसी के अपमान से जोड़ रही है, इसके अतिरिक्त पार्टी मजबूती से यह कहती आई है कि देश के कानून के समक्ष राहुल गांधी कोई अपवाद नहीं और संसद सदस्यता रद्द करने का निर्णय न्यायालय की ओर से आया है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए।
 
पार्टी का एक मजबूत तर्क यह भी है कि आखिर कांग्रेसी प्रवक्ता पवन खेड़ा द्वारा की गई अमर्यादित टिप्पणी के मामले में एक घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट पहुंची पार्टी राहुल के मामले में कोर्ट जाने से क्यों बच रही है ? सोमवार को दबी जुबान से कुछेक पार्टी नेताओं द्वारा यह भी दावा किया गया कि आखिर राहुल गांधी को चुनावों से दूर करके सबसे अधिक लाभ किसे मिलने वाला है
जबकि मोदी के प्रतिद्वंद्वी के रूप में राहुल का रहना अब तक भाजपा को लाभ ही पहुंचाते आया है।
 
चुनावी आंकड़ो की बात करें तो दबी जुबान से भाजपा नेताओं द्वारा किये जा रहे इन दावों में वास्तविकता भी दिखाई देती है, बहरहाल राहुल की सदस्यता रद्द होने के बाद यदि शिर्ष न्यायालयों से भी उन्हें राहत नहीं मिलती है तो इस स्थिति में इसका प्रत्यक्ष लाभ किसे मिलेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है वर्तमान में इतना अवश्य है कि इस पूरे मामले ने संसद की डेडलॉक वाली स्थिति को फिर से संजीवनी दे दी है जो मोटे तौर पर राहुल गांधी के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दिए गए आपत्तिजनक बयान के विवाद से निरंतर बनी हुई है, जिसको लेकर जहां एक ओर भाजपा इसे देश विरोधी कृत्य से जोड़ रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस इसे लोकतंत्र पर गंभीर खतरा बताते हुए सड़को पर उतरी हुई है।
 
तो क्या वाक़ई देश में लोकतंत्र खतरे में है, जहां अब वर्तमान केंद्र सरकार इतनी प्रभावशाली हो चली है जो न्यायालय के निर्णयों को भी प्रभावित कर सके या फिर यह विशुद्ध रूप से एक परिवार के देश में विशेषाधिकार को स्थापित रखने का ही संघर्ष है जिसको लेकर कांग्रेस पार्टी सहित पूरा नेहरू-गांधी परिवार सड़को पर है? या फिर इस पूरे मामले को लेकर अब जो दबी जुबान से तीसरी बात यानी राहुल गांधी के चुनाव ना लड़ने से विपक्ष को मिलने वाले लाभ की संभावनाओं से जुड़ी है उसमें भी कुछ तथ्य हैं ?
 
दरअसल बीते कुछ वर्षों में कांग्रेस जोर शोर से यह प्रचार करने में जुटी है कि देश में लोकतंत्र खतरे में है, इस क्रम में अभी हाल ही में ब्रिटेन स्थित कैंब्रिज में राहुल गांधी ने यह भी दावा किया कि भारत के भीतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है और देश से लोकतांत्रिक व्यवस्था को मिटा दिया गया है जबकि अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे देश इसे देखते रहे। राहुल ने यह दावा तब किया है जब बीते महीने ही समाप्त हुई अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वे वीर सावरकर से लेकर भाजपा एवं उसके मातृ संगठन संघ पर जमकर बरसते रहे, यहां तक कि इस यात्रा के शुरुवाती चरण में ही कांग्रेस ने संघ गणवेश की जलती हुई फ़ोटो भी ट्वीट की जिसे उकसावे वाला कृत्य कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, बावजूद इसके उनपर या किसी भी अन्य कांग्रेसी कार्यकर्ता पर कोई भी वैधानिक कार्यवाई अथवा प्राथमिकी दर्ज हुई हो ऐसा बिल्कुल भी नहीं।
 
वर्तमान प्रकरण में भी जिसको लेकर उन्हें दो वर्ष की सजा सुनाई गई है वह भी किसी पार्टी विशेष के बजाए एक जाति विशेष ये विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी से संबंधित है जो भारतीय गणराज्य में स्थापित वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार ही हुई है, यहां तक कि न्यायालय ने अपने निर्णय के बाद भी राहुल गांधी को त्वरित रूप से जमानत देते हुए शिर्ष न्यायालयों में अपील करने के लिए उन्हें एक महीने की समय सीमा भी दी है, बावजूद इसके कांग्रेस इसे भाजपा एवं वर्तमान केंद्र सरकार की कथित तानाशाही से जोड़ने पर आमादा है, जहां तक बात संसद सदस्यता रद्द करने एवं सरकारी आवास खाली करने संबंधित नोटिस की है तो यह स्पष्ट है कि दंड दिए जाने ये बाद सदस्यता रद्द होना एवं आवास खाली करने सम्बंधित नोटिस विधि सम्मत है, बावजूद इसके कांग्रेसी नेता इसे लक्षित कर की हुई कार्यवाई बताते हुए सड़को पर हैं।
 
इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस एवं नेहरू-गांधी परिवार यह प्रमाणित करने में लगा है कि इस निर्णय के माध्यम से सरकार राहुल गांधी के विरुद्ध लक्षित कार्यवाई में जुटी है, इस दौरान कांग्रेसी नेताओं द्वारा पार्टी के सर्वेसर्वा राहुल गांधी के बचाव में अलग अलग दलीलें भी दी जा रही हैं, इस क्रम में कुछेक ने तो नेहरू- गांधी परिवार को विशेष दृष्टि से देखे जाने की भी वकालत कर दी है, जबकि राहुल के बचाव में उतरी परिवार की सदस्या प्रियंका वाड्रा इसे बलिदानी परिवार के अपमान से जोड़ती दिखाई दी, कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रियंका ने दावा किया कि उनके बलिदानी परिवार पर ओछी टिप्पणी की जाती रही है बावजूद इसके भाजपा नेताओं पर कोई कार्यवाई क्यों नहीं होती ? हालांकि राजनीतिक सहानभूति बटोरने के इस पूरे प्रपंच एवं परिवार विशेष को मिलने वाली विशेष सुविधाओं की दशकों से चली आ रही राजनीतिक परंपराओं से इतर होकर देखें तो प्रियंका एवं कांग्रेसी नेताओं के इन तर्कों में गंभीरता नहीं दिखती।
 
“ इसे ऐसे समझे कि यह पूरा प्रकरण किसी राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप से ना जुड़ा होकर राहुल द्वारा किसी एक समुदाय विशेष के ऊपर लगाए गए निराधार आरोपों से जुड़ा है यह भी कि यह छुपी बात नहीं कि बीते 20 वर्षों में कांग्रेसी नेताओं द्वारा प्रधानमंत्री मोदी, उनके परिवार उनकी पहचान को लेकर अमर्यादित टिप्पणी करने के दर्जनों उदाहरण हैं, यहां तक कि इनमें से कई टिप्पणियां तो सीधे नेहरू-गांधी परिवार एवं उनके करीबियों द्वारा की गई है इसलिए प्रियंका एवं दूसरे कांग्रेसी नेताओं के इस दावे की वास्तविकता मोटे तौर पर खोखली ही है कि यह कार्यवाई राजनीतिक विद्वेष से प्रेरित है।”
 
 
 
जहां तक बात इस प्रकरण को लेकर कांग्रेस के संसद से लेकर सड़क तक किये जाने प्रदर्शनों की है तो इसमे संशय नहीं कि यह सब कुछ बहुत हद तक एक परिवार विशेष के भारतीय राजनीति में दशकों से स्थापित विशेषाधिकार से ही संबंधित दिखाई देता है, यही कारण है कि दशकों तक देश की सत्ता पर काबिज रहे परिवार के समर्थकों को भारतीय गणराज्य, जहां कानून की दृष्टि में प्रत्येक नागरिक को समान दृष्टिकोण से देखा गया है के विधि सम्मत प्रावधानों द्वारा राहुल गांधी के विरुद्ध हुई यह कार्यवाई रास नहीं आ रही।
 
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस को यह समझने की आवश्यकता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम पर एक परिवार विशेष को दी जाने वाली विशेष सहूलियत किसी बीते जमाने की बात होगी नये भारत में इसके लिए कोई स्थान शेष नहीं, उसके समर्थकों को यह समझना चाहिए कि बदलता भारत सामान्य जनमानस की आकांक्षाओं को समर्पित है, यह लोकतंत्र के वास्तविक मूल्यों को समर्पित है, सबसे ज्यादा उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि नया भारत अपने नेतृत्वकर्ता का चयन किसी परिवार विशेष की राजनीतिक विरासत से इतर अपने नेता की नीयत एवं नए भारत को समर्पित उसके विज़न के आधार पर करता है।
 
आप आंकड़ो की दृष्टि से ही देखें आप पाएंगे कि पारिवारिक विरासत की मखमली चादर ओढ़कर सत्ता पर काबिज होने के दिन अब लद गए और नये भारत का उभार अब अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को समर्पित राष्ट्र के रूप में हो रहा है जहां परिवार कोई भी हो जनसाधारण की भावना लोकहित को समर्पित नेताओं के साथ ही जुड़ती दिखाई दे रही है, इसमें भी संशय नहीं कि यह परिवर्तन सहजता से नहीं आएगा, हां इतना अवश्य है कि विशेषाधिकार के मद के आदि हो चुके नेताओं को देर सवेर यह समझना ही होगा कि भारत लोकतंत्र है किसी परिवार विशेष की जागीर नहीं…….!
 
इसलिए विधि सम्मत की गई किसी भी कार्यवाई को राजनीतिक विद्वेष बताकर संसद से लेकर सड़क तक संग्राम से बेहतर तो यही है कि राहुल गांधी इस पूरे मामले में राजनीतिक परिपवक्ता दिखाएं और राजनीतिक तौर पर भी एक सामान्य नागरिक की तरह स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा करें, जहां तक बात इस प्रकरण कि है तो सड़क से संसद तक सहानभूति बटोरने की कवायद में जुटी कांग्रेस के लिए तो यही बेहतर है कि उसके नेता उस न्यायालय का ही रुख करे जिसने नेशनल हेराल्ड से लेकर पवन खेड़ा तक के मामले में उसके नेताओं को अब तक विधि सम्मत राहत दी है।