माता कौशल्या की जन्मभूमि छत्तीसगढ़ के वनवासी समाज के कण-कण में बसे हैं प्रभु श्रीराम

भगवान राम वनवास के समय में अपनों से मिलने के लिए दूरांचल गिरी कंदराओं तक पहुंचे और पहुंच कर धर्म का मार्ग दिखाए। उसी क्रम में भगवान राम, भाई लक्ष्मण, सीता माता का जशपुर के वनांचल क्षेत्रों में शुभागमन हुआ था। उसी बीच जशपुर के मध्य में स्थित देवगुड़ी मंदिर प्रांगण में आये थे।

The Narrative World    30-Mar-2023   
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हमारे जनजाति बाहुल्य छत्तीसगढ़ प्रदेश में माता कौशल्या का जन्म हुआ था जिसके कारण इस क्षेत्र को कौशल प्रदेश भी कहते हैं। माता कौशल्या हमारे प्रदेश की थीं, इसलिए भगवान राम हमारे भांजे हुए, जिसके कारण यहां के लोग अपने भांजा-भांजी का बहुत सम्मान और आदर करते हैं, उनका चरणस्पर्श भी करते हैं।


भांजा-भांजी का अपने घर में आना 'अहो भाग्य' समझते हैं। आने के साथ उनका पैर धोया जाता है। कहीं-कहीं तो पैर धोये हुए पानी को चरणामृत समझ कर उसे सांकेतिक रूप से ग्रहण भी किया जाता है। अपने भांजा-भांजी के प्रति लोगों की बहुत श्रद्धा है।


भगवान राम वनवास के समय में अपनों से मिलने के लिए दूरांचल गिरी कंदराओं तक पहुंचे और पहुंच कर धर्म का मार्ग दिखाए। उसी क्रम में भगवान राम, भाई लक्ष्मण, सीता माता का जशपुर के वनांचल क्षेत्रों में शुभागमन हुआ था। उसी बीच जशपुर के मध्य में स्थित देवगुड़ी मंदिर प्रांगण में आये थे।


इस दौरान सीता माता के द्वारा जशपुर वासी मातृशक्ति माताएं-बहनों को बांस के द्वारा जीवनोपयोगी सामग्री बनाने के लिए शिक्षा दी गई। उसके बाद प्रभु राम, लक्ष्मण सीता माता उत्तर दिशा की ओर प्रस्थान किये।


चलते चलते एक स्थान का मनोरम दृश्य देखकर उनका मन रम गया उसी स्थान को आज मनोरा के नाम से जाना जाता है। वहां से और आगे बढ़ें राम, लक्ष्मण, सीता रंगते-रेंगते जा रहे हैं इसलिए एक गांव का नाम रेंगले पड़ा।


उसी गांव में एक चट्टान के नीचे रात्रि विश्राम किए, उसी चट्टान पर लक्ष्मण जी द्वारा कुछ लिखा गया जिसके कारण उस स्थान को लिखा पत्थर कहा जाता है। लिखा- पत्थर वर्तमान में वनवासी भाई बंधुओं के लिए बहुत बड़ा श्रद्धा का केन्द्र है। वहां पर रामनवमी, शिवरात्रि के अवसर पर हजारों की संख्या में लोग एकत्रित होते हैं।


लिखा- पत्थर से राम, लक्ष्मण, सीता माता पश्चिम दिशा की ओर गये, वहां घाट के नीचे एक गांव में बारिश का मौसम था। वहां के सभी लोग सर्दी, खांसी, बुखार से पीड़ित थे। यह देखकर सीता माता ने सभी को तुलसी के बीज लगाने के लिए सलाह दी, उसी समय से उस स्थान का नाम बगीचा पड़ा।


इसके पश्चात् भगवान राम, लक्ष्मण सीता माता रायगढ़ की ओर बढ़ने लगे तो वहां के लोगों से रहा नहीं गया और अपने आराध्य को जाते हुए देखकर सभी लोगो ने ओ राम, ओ राम, कहां जा रहे हो राम, कहने लगे। उसी समय से ओ राम से उराव हो गया, ऐसी समाज में मान्यता है। अतः उरांव शब्द की उत्पत्ति वहीं से हुई।


वनांचल क्षेत्र में भगवान राम जहां-जहां गये, वहां सरना स्थान में ही शरण लिये, (अर्थात् विश्राम किये) इसलिए लोग उस स्थान को सरना कहते हैं और समस्त ग्रामवासी सभी प्रकार के सामूहिक पूजा उस स्थान पर करते हैं।


भगवान राम और वनवासी समाज का अटूट सम्बंध है, इसलिए वनवासी बंधु-भगिनी सोते उठते सीता राम बोलते हैं। नाम के आगे भी राम लिखते हैं और नाम के पीछे भी राम लिखते हैं।


अपने उपनाम में भी भगत लिखते हैं और कुछ जनजाति समाज के लोग तो शरीर के हर अंग में गोदना से राम लिखवाते हैं। ऐसे राम के परम भक्त है कावासी।


भगवान राम अयोध्या से निकले थे राजा राम बनकर और वनवास से वापस हुए भगवान राम बनकर, यह उपाधि गिरी कन्द्राओं में रहने वाले हमारे वनवासी भाई बहनों ने दी है।


Note- यह सारी बाते स्वर्गीय जगदेवराम जी उरांव अपनी बोल चाल की भाषा में बोलते थे। उसी को संकलित करने का मैंने प्रयास किया है। इस में कुछ बातें क्षेत्रीय आधार पर सुनी सुनाई बातें को मैंने जोड़ा है, जो तथ्यात्मकता से परे भी हो सकता है। इसमें जो भी त्रुटि होगी वह मेरी व्यक्तिगत त्रुटि है।


लेख


महेश्वर राम, जशपुर नगर