भारत और चीन के बीच आवश्यकता है रक्षा संतुलन की

01 Apr 2023 13:52:20

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चीन के साथ सारे विवादों को समानता पूर्ण व्यवहार द्वारा निपटाने के लिए हमें उसके साथ रणनीतिक व सामरिक सन्तुलन भी करना चाहिये। इसका अर्थ किसी युद्ध की तैयारी से नहीं लेना चाहिये।


हमारा उसके साथ सैन्य व शास्त्रास्त्र सन्तुलन समानुपात में होना चाहिये। समान शक्तियों में कदाचित ही युद्ध होता है सैन्य सन्तुलन ठीक होने पर हमारी सौदेबाजी की क्षमता बराबरी की रहेगी।


चीन की 14 देशों से सीमा लगती है। उसने जब जिस देश को कमजोर देखा तब ही उससे सीमा विवाद निपटाया है। इसलिये हमारे सैन्य बल व प्रहारक क्षमता का चीन के समतुल्य होना आवश्यक है।


हम अपनी सारी सामरिक व रणनीतिक तैयारी केवल पाकिस्तान को लक्षित करके करते रहे हैं। जबकि एक प्रकार से पाकिस्तान तो चीन का एक प्रॉक्सी युद्ध लड़ रहा है।


हम जैसे ही पाकिस्तान के साथ रक्षा सन्तुलन करते हैं, चीन थोड़े दिनों में ही उसको कोई नई व उन्नत टेक्नोलॉजी दे देता है और फिर असंतुलन हो जाता है, चीन ने 12 हजार किलोमीटर तक मार करने वाली इन्टर कॉन्टिनेन्टल बैलिस्टिक मिसाईल विकसित कर उन्हें तैनात कर रखा है।


हालाँकि हमने अब उपग्रह भेदी प्रक्षेपास्त्रों (मिसाइलों) का भी विकास कर लिया है। यदि कभी चीन के साथ सीमा विवाद होता है और चीनी मिसाईल हमला होने की सम्भावना होती है तो हम अपने उपग्रहों से ही उस आक्रमण को देखकर अपनी प्रति रक्षात्मक मिसाईल को कमाण्ड दे सकते हैं।


लेकिन उससे पहले उसने उपग्रह भेदी प्रक्षेपास्त्र से हमारे उपग्रहों पर निशाना साधा तो भी हम इस मोर्चे में भी उसको जवाब दे सकते हैं।


दूसरी ओर हम अगर आज अपनी मिसाईल टेक्नोलॉजी को लें तो हमारे पास अधिकतम 7000 किलोमीटर तक मार करने वाली अग्नि मिसाइल है और अधिक किलोमीटर तक प्रहार क्षमता वाला उसका अगला स्वरूप विकसित होने में कुछ और वर्ष लग सकते हैं।


चीन ऐसी एन्टीशिप मिसाईल का परीक्षण कर चुका है जो अमेरिका से भी उन्नत है। इसके साथ ही रक्षा के क्षेत्र में सैन्य बल की संख्या, तोपखाना व टैंकों की संख्या, युद्धक विमान, युद्धपोत आदि में उसकी संख्या भी बड़ी है।


रक्षा क्षेत्र में हम खर्च बढ़ा रहे हैं, लेकिन हमें और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। हम आर्थिक विस्तार के में व अपनी बढ़ती आवश्यकताओं के अनुपात में रक्षा पर व्यय कर इसे और आगे बढ़ा सकते हैं। हालाँकि चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद (कुल जी.डी.पी.) का बड़ा हिस्सा रक्षा पर व्यय कर रहा है।


तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो भारत का रक्षा पर व्यय लगभग 72.6 बिलियन डॉलर है। प्रकट रूप में चीन का रक्षा व्यय 225 बिलियन डॉलर का है। लेकिन विश्व की अधिकांश रक्षा पत्रिकाओं व सीआईए का आंकलन है कि चीन का वास्तविक रक्षा व्यय इससे कहीं अधिक है।

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