चेर्नोबिल घटना : कम्युनिस्ट सरकार की वजह से हुआ ऐसा हादसा जिसमें लाखों लोग मारे गए और करोड़ों आज भी प्रभावित हैं

24 Apr 2023 13:26:45


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रूसी दर्शनशास्त्री अलेक्जेंडर सिपको ने कम्युनिज्म की विचारधारा पर अपनी राय रखते हुए कहा था कि "मानव जाति के इतिहास में कोई भी समाज किसी झूठी कल्पना का इतना अधिक गुलाम नहीं हुआ होगा जितना हमारे लोग (रूसी नागरिक) 20 वीं सदी में थे। हमने सोचा था कि सोवियत यूनियन में कम्युनिज्म की स्थापना करना हमारे लोगों के लिए सबसे भलाई का काम था पर हम जानबूझकर हमारे खुद के ही आत्मविश्वास में अंधे हो गए थे।"


यह उन्होंने सोवियत के विखंडन के बाद कहा था। सोवियत संघ का विघटन 90 के दशक में हुआ। लेकिन इस विघटन के पीछे सबसे बड़ा जो कारण था वह था तत्कालीन सोवियत और वर्तमान में यूक्रेन के चेर्नोबिल के परमाणु संयंत्र में हुई विश्व की सबसे बड़ी परमाणु त्रासदी।


चेर्नोबिल में हुए परमाणु दुर्घटना को विश्व का सबसे बड़ा परमाणु हादसा माना जाता है। हालांकि इस घटना से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या कम हो सकती थी लेकिन जिस तरह से तत्कालीन सोवियत कम्युनिस्ट सरकार ने इस पूरे मामले को छुपाने की कोशिश की उसके बाद आधे यूरोप में कोहराम मच गया।

“26 अप्रैल 1986 को यूक्रेन के चेर्नोबिल शहर में यह परमाणु हादसा हुआ था। इस हादसे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हिरोशिमा और नागासाकी में हुए परमाणु हमले से 100 गुना अधिक रेडिएशन इस दुर्घटना से फैला था।”

 


तात्कालिक सोवियत कम्युनिस्ट सरकार की तरफ से आधिकारिक रूप से हादसे में 31 लोगों के मरने की बात कही गई थी लेकिन आज तक वास्तविक रूप से इस हादसे में कितने लोग मारे गए और कितने लोग प्रभावित हुए इसका आंकड़ा संदिग्ध है। विश्व भर के जानकार कहते हैं कि इस पूरी घटना से ढाई लाख से अधिक लोग मारे गए थे और करोड़ों लोग प्रभावित हुए।


कैसे हुई घटना ?


चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट में आधी रात को टेस्टिंग शुरू की गई और लगभग रात को 12:30 बजे वहां के ऑपरेटर कंप्यूटर कोरी प्रोग्राम करने में नाकाम रहे। इस वजह से रिएक्टर 30% पावर में चलता रहा जिसकी वजह से पैदा होने वाली बिजली में 1% की कमी आई।


इसके बाद पावर को दोबारा अपने मनचाहे स्तर पर लाने के लिए उसमें और प्रयास किया गया ताकि अपने हिसाब से उसे नियंत्रित किया जा सके।


लगभग रात 1:30 बजे तक शुरूआती टेस्ट में टरबाइन ट्रिप अचानक बंद हो गई और इसकी वजह से 8 में से 4 दोबारा सरकुलेशन शुरू करने वाले पंप बंद हो गए इसकी वजह से परमाणु प्रतिक्रिया तेज होने लगी और अनियंत्रित ढंग से भाप बनने लगी।


रात लगभग 1:30 बजे के आसपास ही जबरदस्त गर्मी की वजह से कोर टूटने लगे और इंधन की बंद बांधने वाले तंत्रों में दरार पड़ने लग गई। भाप के दबाव की वजह से रिएक्टर में जोरदार धमाका हुआ और रिएक्टर के ऊपर सीमेंट से बनाई गई शील्ड उड़ गई। इस बड़े सुराग से परमाणु विकिरण सीधे वायुमंडल में फैलने लगा।


मामले को कैसे दबाया गया ?


लगभग साढ़े तीन दशक पहले हुए इस घटना को तत्कालीन सोवियत की कम्युनिस्ट सरकार ने दबाने की बहुत कोशिश की। उनके इस करतूत की वजह से पूरे यूरोप के क्षेत्रों में हवा के माध्यम से रेडियो एक्टिव पार्टिकल्स फैलने लगे। और ऐसे समय में भी वहां की पूरी कम्युनिस्ट मीडिया इस मामले को दबा कर बैठी हुई थी।


रूस से सटे यूरोपीय देश हंगरी जो कि तत्कालीन समय में एक कम्युनिस्ट सत्ता के केंद्र में था वहां की स्टेट मीडिया ने भी इस पूरे मामले को दबाए रखा।


जिस दिन यह हादसा हुआ था वह शनिवार का दिन था और अगले दिन रविवार था जिसकी वजह से पड़ोसी देश हंगरी में समाचार पत्र नहीं छपे और ना ही टेलीविजन एवं रेडियो के माध्यम से इस घटना की जानकारी दी गई।


इसके बाद 29 अप्रैल को इस पूरे बड़ी दुर्घटना को एक सामान्य खबर की तरह पेश किया गया और 30 अप्रैल को दी गई जानकारी में मीडिया ने बताया कि 2 लोग इस घटना में मारे गए हैं। लेकिन 30 अप्रैल तक भी इसकी सच्चाई किसी को नहीं बताई गई।

“पूरे सप्ताह बीत जाने के बाद 4 मई को पहले पन्ने पर यह खबर प्रकाशित हुई जिसमें बताया गया की आपातकाल जैसी स्थितियां बन चुकी है। सोवियत कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा मशीनरी की वजह से 10 दिन लग गए आम जनता को यह समझने में कि कितनी बड़ी मुसीबत आ चुकी है।”

 


इस समय तक लगभग डेढ़ लाख स्क्वायर किलोमीटर का हिस्सा जिसमें बेलारूस, रूस और यूक्रेन का बड़ा हिस्सा शामिल था वह पूरी तरह से रेडिएशन के प्रभाव में आ चुका था।


इस पूरी घटना से 80 लाख लोग प्रभावित हुए। लगभग 3.50 लाख लोगों को अपने घर को छोड़कर जाना पड़ा जो कभी लौट कर वापस नहीं आ सके। पूरी घटना के 37 वर्षों के बाद आज भी 50 लाख से अधिक लोग ऐसे हैं जो इन तीनों देशों में रहते हैं और इस रेडियो एक्टिव रेडिएशन से प्रभावित हुए हैं।


इस रेडिएशन की वजह से लोगों को मानसिक बीमारी के साथ-साथ आंखों की बीमारी और थायराइड, कैंसर जैसी बीमारियां होने लगी।


स्वीडन जोकि चेर्नोबिल से लगभग 1000 किलोमीटर दूर है वहां जब रेडिएशन का प्रभाव फैलने लगा और उसने तत्कालीन सोवियत कम्युनिस्ट सरकार से इस मामले पर जानकारी लेने की कोशिश की तो सोवियत सरकार ने अपने देश में किसी भी तरह की दुर्घटना होने से इंकार कर दिया।


इस पूरे रेडिएशन का असर आज भी ऐसा है कि चेर्नोबिल के क्षेत्र में किसी का भी जाना प्रतिबंधित है। इतना बड़ा परमाणु हादसा होने के बावजूद कम्युनिस्ट सरकार ने 2 दिन बाद तक भी शहर को खाली नहीं कराया था बल्कि शहर सीज़ कर दिया था।


1986 में हुए चेर्नोबिल परमाणु हादसे के दौरान सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव मिखाइल गोर्बाचेव थे। उन्होंने कुछ वर्ष पहले चेर्नोबिल परमाणु हादसे पर बने एक मिनीसीरीज पर कहा था कि चेर्नोबिल में हुआ हादसा ही सोवियत के विघटन की असली वजह है। उन्होंने कहा यह न्यूक्लियर हादसा एक टूटी हुई और विकृत प्रणाली का परिणाम था जो अब और ज्यादा दिन नहीं चल सकती थी।


उनका कहना था कि चेर्नोबिल और उसका पतन एक ऐसे सिस्टम का उत्पात था जो झूठ की विचारधारा के बुनियाद पर खड़ा था। कम्युनिस्ट सिस्टम कम्युनिस्ट विचारधारा हमेशा अपने आपको लोगों की जान से आगे रखती है।


चेर्नोबिल एक ऐसी कहानी है जिसे दुनिया के हर व्यक्ति तक पहुंचानी चाहिए। एक ऐसी घटना है जिसे छुपाने के लिए कम्युनिस्ट सरकार ने अपने सभी दांव पेंच लगा दिए। ऐसा हादसा जिसके चलते लाखों जाने चले गई और वर्षों तक इससे प्रभावित लोग मारे जा रहे हैं। एक ऐसी विचारधारा जिसे दुनिया के एक हिस्से में आम लोगों की जिंदगियों को अपनी सनक की बलि चढ़ा दिया।

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