टीसीओसी : माओवादियों की वो रणनीति जिसके चलते बीते 10 वर्षों में 225 से अधिक जवान हो चुके बलिदान

वर्ष 2013 का झीरम हमला (30 से अधिक मृत्यु), 2014 का टाहकावाड़ा हमला (15 जवान बलिदान), 2015 में दरभा हमला (5 जवान बलिदान), 2017 में सुकमा के कसालपाड़ में हमला (14 जवान बलिदान), 2020 का मिनपा हमला (17 जवान बलिदान), 2021 में नारायणपुर के कोहकामेटा में हमला (5 जवान बलिदान) जैसे बड़े हमले भी टीसीओसी के दौरान माओवादियों ने किए हैं।

The Narrative World    28-Apr-2023   
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माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में देखा जाता है कि माओवादी आतंकी गर्मी की शुरुआत होते ही अपनी गतिविधियों को तेज कर देते हैं। इस दौरान माओवादी सुरक्षाबलों पर हमले करना, किसी बड़ी माओवादी आतंकी वारदात को अंजाम देना या बड़े विस्फोटों को अंजाम देने जैसे घटनाओं में शामिल रहते हैं।


गर्मी के मौसम में माओवादियों के द्वारा अपनाई जाने वाली इस रणनीति को कहा जाता है टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (TCOC).


हाल ही में दंतेवाड़ा में हुए माओवादी आतंकी हमले से पूरा देश स्तब्ध है। इस आतंकी हमले में सुरक्षाबल के 10 जवान और एक निजी वाहन के चालक की मृत्यु हुई है। इस घटना के बाद एक बार फिर माओवादियों के द्वारा किए गए तमाम आतंकी हमलों के ज़ख़्म ताजा हो गए हैं।


दरअसल पूर्व में कई माओवादियों ने गिरफ्तारी के बाद इस बात का खुलासा किया है कि माओवादी टीसीओसी अभियान के तहत बड़े हमले की योजना बनाते हैं और इसके लिए माओवादियों के द्वारा भारी मात्रा में विस्फोटक भी एकत्रित किया जाता है।


यदि हम आँकड़ों की बात करें तो बीते 10 वर्षों में माओवादियों के इस टीसीओसी काल के दौरान 225 से अधिक जवान बलिदान हो चुके हैं। अप्रैल 2010 को ताड़मेटला में हुआ माओवादी आतंकी हमला भी टीसीओसी का हिस्सा था। इसमें सुरक्षाबल के 76 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। यह अब तक सबसे बड़ा माओवादी आतंकी हमला है।


इसके अलावा 2017 में बुर्कापाल, 2018 में पलोड़ी, 2017 में भेज्जी जैसे स्थानों में भी बड़े माओवादी हमले हुए हैं जिसमें जवनाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

“इसके अलावा वर्ष 2013 का झीरम हमला (30 से अधिक मृत्यु), 2014 का टाहकावाड़ा हमला (15 जवान बलिदान), 2015 में दरभा हमला (5 जवान बलिदान), 2017 में सुकमा के कसालपाड़ में हमला (14 जवान बलिदान), 2020 का मिनपा हमला (17 जवान बलिदान), 2021 में नारायणपुर के कोहकामेटा में हमला (5 जवान बलिदान) जैसे बड़े हमले भी टीसीओसी के दौरान माओवादियों ने किए हैं।”

 


सुरक्षा जानकारों के अनुसार टीसीओसी के दौरान माओवादियों की रणनीति बिल्कुल ही अलग होती है। इस दौरान माओवादी अपना जाल फैलाकर सुरक्षाबलों को फंसाने का प्रयास करते हैं।


कई बार अपने ही लोगों से झूठी सूचनाएं सुरक्षाबलों तक पहुँचाते हैं। इसके बाद सुरक्षाबलों के द्वारा संबंधित क्षेत्र में गश्ती अभियान चलाए जाने के दौरान माओवादियों के द्वारा उन्हें निशाना बनाया जाता है।


इस मामले पर एक सेवानिवृत्त बीएसएफ कमांडेंट का कहना है कि फरवरी माह के बाद मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है और पतझड़ के कारण वन्य क्षेत्रों में भी बदलाव देखे जाते हैं।


उनका कहना है कि जंगल घने नहीं होते, पेड़ों पर पत्तों की संख्या नगण्य रहती है इसी कारण दूर ऊँचाई पर बैठे माओवादी सुरक्षाबल के जवानों के मूवमेंट को आसानी से देख पाते हैं। यही कारण है कि माओवादियों के लिए इस दौरान अपनी किसी भी आतंकी योजना को अंजाम देना आसान हो जाता है।


माओवादियों से लोहा लेने वाले सुरक्षाबल के जवानों को इस बात का स्पष्ट ध्यान रहता है कि टीसीओसी के दौरान माओवादी पूरी तरह से सक्रिय रहते हैं। इस दौरान माओवादी रणनीतियां बनाकर अपनी सारी ऊर्जा हमले में लगा देते हैं।


अपने इस अभियान के दौरान माओवादी पतझड़ के बाद नए लड़ाकों को अपने संगठन से जोड़ने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा नए लड़ाकों को ट्रेनिंग देने का काम और रियल टाइम प्रैक्टिस एवं एम्बुश के बारे में जानकारी देते हैं।


टीसीओसी के दौरान माओवादियों के द्वारा अपने संगठन के विस्तार की योजनाएं भी बनाई जाती है। इसी समय माओवादी व्यापारियों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों, सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों से वसूली कर साल भर के लिए अपना फंड इकट्ठा करते हैं।


माओवाद विषयों के जानकारों का कहना है कि माओवादी जनवरी से लेकर मई माह तक काफी आक्रामक हो जाते हैं।


टीसीओसी अभियान के तहत माओवादी अधिक से अधिक बस्तर में तैनात सुरक्षाबल के जवानों को नुकसान पहुंचाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हो जाते हैं।


खासकर यह भी दिखा गया है कि इस दौरान माओवादियों के बड़े आतंकी नेताओं के द्वारा इन माओवादी आतंकी हमलों को अंजाम दिया जाता है।


कुछ सरेंडर माओवादियों से मिली जानकारी के अनुसार माओवादी समय-समय पर अपने इस अभियान का नाम भी बदलते रहते हैं लेकिन अभियान का स्वरूप वैसा ही रहता है।