किससे चाहिये आजादी : सर्वसमावेशी हिंदुत्व से या रक्तरंजित कम्युनिज्म से ?

2016 में Victims of Communism Memorial Foundation (विक्टिम्स ऑफ कम्युनिज़्म मेमोरियल फाऊंडेशन) ने सम्पूर्ण विश्व से एकत्र किए गए दस्तावेजों, आंकड़ों और तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट शासकों द्वारा अबतक लगभग 16 करोड़ से अधिक नागरिकों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।

The Narrative World    14-May-2023
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कहते हैं किसी भी स्थान की प्रकृति को नष्ट करना हो तो वहां की नदियों में विष घोल दीजिये प्रकृति स्वत: समाप्त हो जायेगी और यदि किसी राष्ट्र की संस्कृति को समाप्त करना है तो वहां की शिक्षा व्यवस्था में, साहित्य में विष घोल दीजिये उस राष्ट्र के युवाओं का स्वाभिमान समाप्त हो जायेगा।


भारत वर्ष के प्राचीन गौरवशाली इतिहास में यही दूसरा प्रयोग कर अंग्रेजों ने भारतीय समाज के स्वत्व पर चोट करते हुये शनै-शनै एक ऐसा विष आधुनिक शिक्षा के नाम पर घोल दिया जिसमें वामपंथियों के द्वारा लिखे नहीं बल्कि मन से गढे गये ऐसे इतिहास को पढाया गया कि जितनी और जैसे जैसे अधिक शिक्षा यहां का युवा ग्रहण करता गया उतना ही अपने देश, समाज, संस्कृति को लेकर हीनभावना से भरता चला गया।


स्वाधीनता के पश्चात भी शिक्षा, साहित्य, शोध के विषय वही रहे जो एक निश्चित विचारधारा के लेखको, चिंतको,विचारकों व तथाकथित इतिहासकारों ने जैसा परोसना चाहे।


खैर इस विषय पर और अधिक न जाते हुये विगत कुछ वर्षों में समय-समय पर हो रहे आंदोलनों में हमारे शिक्षा के केन्द्रों में अध्ययनरत युवाओं का सम्मिलित होकर कुछ विशेष प्रकार के नारों का उद्घोष कर न केवल भारतीय मीडिया अपितु वैश्विक मीडिया के समक्ष वर्तमान समय में भारत, भारत के मूल आत्म तत्व सनातन विचार व जान बूझकर राष्ट्रवादी संगठनों को लक्ष्य कर एक बड़ा विमर्श खड़ा किया जा रहा है उनके उत्तर का एक प्रयास-


जे एन यू की तथाकथित छात्र टोली ने अभी जंतर-मंतर पर चल रहे पहलवानों के पक्ष में आकर "हमें चाहिए आजादीवाले नारों में उद्घोष किया कि हमें आजादी हिंदुओं से चाहिए, हमें आजादी मनुवाद से चाहिए, हमें आजादी ब्राह्मण वाद से चाहिए वाकि संघ, संगठन, नेता पार्टी जिस जिस का उल्लेख करना उनका नाम लेकर यह उस प्रदर्शन में सम्मिलित हुये और यह कोई पहला अवसर नहीं वामपंथ प्रेरित यह आजादी गैंग अनेको अवसरों पर ऐसे ही भारत विरोधी नारों के साथ खड़ा दिखाई देता है।

इन युवाओं को अपन सनातन व हिंदु विरोधी खड़े किये गये विमर्श कि हम हिंसक हैं, अपने ही समाज जनों पर अत्याचार करते रहे हैं और हम सबको बांटने का कार्य करते हैं तो सबसे पहले बात उस हिन्दू धर्म की जिसे आप हिंसक समझते/कहते हो।

हमारे पूर्वज हज़ारों वर्ष पूर्व हमें बता गए हैं, शिक्षित कर गए हैं कि...वसुधैव कुटुम्बकम् ही सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा है।

महोपनिषद्, अध्याय 4, का यह 71वां श्‍लोक हमारी भारतीय हिन्दू सभ्यता संस्कृति का जीवन मंत्र है।


अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् |

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ||


इसका अर्थ है कि... यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों का परिवार तो सम्पूर्ण धरती है।


इसी प्रकार हम हिन्दुओं की सभ्यता संस्कृति विचारधारा एवं जीवनशैली का परिचय देने वाला एक अन्य जीवनमंत्र है अथर्ववेद का यह श्लोक...

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।


अर्थात...

"सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"


हम हिन्दू इतने सभ्य, सुशिक्षित, शांतिप्रिय और उत्सवधर्मी हैं कि अपने किसी भी आराध्य देव, संत महंत महापुरुष की पुण्यतिथि पर मातम नहीं मनाते। खुद को जंजीरों और हथियारों से पीट पीटकर लहूलुहान नहीं करते। इसके बजाय उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना और शांतिपाठ करते हैं।


अब बात उस रक्त रंजित कम्युनिस्ट सभ्यता संस्कृति विचारधारा की, जिसे सम्पूर्ण विश्व नकार रहा है, उससे घृणा करता है और जिसकी गुलामी तुम जैसे मूर्ख/धूर्त निर्लज्जता पूर्वक करते हैं।


ध्यान रहे कि किसी संघी भाजपाई विचारक ने नहीं, किसी हिन्दू ने भी नहीं, संघ संचालित किसी शिशु मंदिर के विद्यार्थी रहे लेखक ने भी नहीं बल्कि अमेरिका की इंडियाना यूनिवर्सिटी, येल यूनिवर्सिटी तथा हवाई यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर रहे रूडोल्फ जोसेफ रम्मेल ने 1994 में अपनी पुस्तक (डेथ बाई गवर्नमेंट) में लिखा है कि 1900 से 1987 तक की समयावधि के मध्य कम्युनिस्ट शासकों ने पूरी दुनिया में लगभग 11 करोड़ उन निर्दोष निहत्थे नागरिकों को मौत के घाट उतारा था जो उन कम्युनिस्ट शासकों के विरोधी थे।


फ्रांसीसी इतिहासकार और फ्रांस के कैथोलिक इंस्टीट्यूट फ़ॉर हायर स्ट्डीज में प्रोफेसर तथा फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च में डायरेक्टर(रिसर्च) रहे स्टीफेन कुओर्टिस ने 1999 में अपनी पुस्तक "ब्लैक बुक ऑफ कम्युनिज़्म" में लिखा है कि पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट शासकों ने उनका विरोध करने वाले लगभग 10 करोड़ से अधिक निर्दोष निहत्थे नागरिकों को मौत के घाट उतारा है।


गवर्नमेंट डार्थमाऊथ कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर बेंजामिन वैलेंटिनों ने अपने शोधपत्र में लिखा है कि केवल चीन, कम्बोडिया और रूस में कम्युनिस्ट शासकों द्वारा अपने विरोधी रहे लगभग 7 करोड़ निशस्त्र निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतारा गया है।


यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ कैरोलिना में प्रोफेसर तथा रशियन एकेडमी ऑफ नेचुरल साइंसेज के सदस्य स्टीवन आर रॉसफ़ील्ड ने अपनी पुस्तक "रेड होलोकॉस्ट" में लिखते हैं कि कम्युनिस्ट शासकों द्वारा केवल अपने आंतरिक विरोधाभासों के कारण ही कम से कम 6 करोड़ लोगों को मौत के घाट उतरवा दिया गया तथा इसके अलावा करोड़ों अन्य निर्दोष नागरिकों को भी मौत के घाट उतारा गया।


2016 में Victims of Communism Memorial Foundation (विक्टिम्स ऑफ कम्युनिज़्म मेमोरियल फाऊंडेशन) ने सम्पूर्ण विश्व से एकत्र किए गए दस्तावेजों, आंकड़ों और तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा था कि पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट शासकों द्वारा अबतक लगभग 16 करोड़ से अधिक नागरिकों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।


यह उदाहरण केवल चुटकी भर हैं। पूरे उदाहरण लिखूंगी तो सैकड़ों पन्ने भर जाएंगे। लेकिन यह चुटकी भर उदाहरण ही इन दिग्भ्रमित युवाओं को यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि आप कितनी नराधम निकृष्ट हत्यारी राक्षसी कम्युनिस्ट सभ्यता संस्कृति के चरणदास हैं।


ऐसी सभ्यता के आप जैसे किसी घृणित पैराकारों से किसी भी प्रमाणपत्र को प्राप्त करने की कोई आवश्यकता हिन्दू धर्म को ना पहले कभी थी, ना है, ना ही कभी होगी। क्योंकि किसी संघी ने नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के गैर हिन्दू महामानवों, महान विचारकों ने हिन्दू धर्म के विषय में क्या कहा है, जरा यह भी जान लें।


लियो टॉल्स्टॉय (1828-1910): हिन्दू और हिन्दुत्व ही एक दिन पूरी दुनिया पर राज करेगा क्योंकि इसी में ज्ञान और बुद्धि का संयोजन है।'


अल्बर्ट आइंस्टीन (1879-1955): मैं समझता हूं कि हिंदुओं ने अपनी बुद्धि और जागरूकता के माध्यम से वह किया है जो यहूदी न कर सकें, हिन्दुत्व में ही वह शक्ति है जिससे शांति स्थापित हो सकती है।'


जोहान गीथ (1749-1832): 'हम सभी को अभी या बाद में हिन्दू धर्म स्वीकार करना ही होगा। यही असली धर्म है, मुझे कोई हिन्दू कहे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा। मैं इस सही बात को स्वीकार करती हूं।


हर्बर्ट वेल्स (1846-1946): हिन्दुत्व का प्रभावीकरण फिर होने तक अनगिणत पीढ़ियां अत्याचार सहेंगी। तभी एक दिन पूरी दुनिया इसकी ओर आकर्षित हो जाएगी और उसी दिन ही दिल शाद होंगे और उसी दिन दुनिया आबाद होगी सलाम हो उस दिन को।


हसटन स्मिथ (1919-2016): 'जो विश्वास हम पर है और हम से बेहतर कुछ भी दुनिया में है तो वो हिन्दुत्व है। अगर हम अपना दिल और दिमाग इसके लिए खोलें तो उसमें हमारी ही भलाई होगी।'


माइकल नोस्ट्रेडम (1503-1566): 'हिन्दुत्व ही यूरोप में शासक धर्म बन जाएगा बल्कि यूरोप का प्रसिद्ध शहर हिन्दू राजधानी बन जाएगा।'


बर्ट्रेंड रसेल (1872-1970): 'मैंने हिन्दुत्व को पढ़ा और जान लिया कि यह सारी दुनिया और सारी मानवता का धर्म बनने के लिए है, हिन्दुत्व पूरे यूरोप में फैल जाएगा और यूरोप में हिन्दुत्व के बड़े विचारक सामने आएंगे। एक दिन ऐसा आएगा कि हिन्दू ही दुनिया की वास्तविक उत्तेजना होगा।'


गोस्टा लोबोन (1841-1931): 'हिन्दू ही सुलह और सुधार की बात करता है। सुधार ही के विश्वास की सराहना में ईसाइयों को आमंत्रित करता हूँ।'


बर्नाड शॉ (1856-1950): 'सारी दुनिया एक दिन हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेगी, अगर यह वास्तविक नाम स्वीकार नहीं भी कर सकी तो रूपक नाम से ही स्वीकार कर लेगी। पश्चिम एक दिन हिन्दुत्व स्वीकार कर लेगा और हिन्दू ही दुनिया में पढ़े लिखे लोगों का धर्म होगा।'


10. फ्रांस के नोबल पुरस्कार विजेता दार्शनिक रोमां रोला ने विश्व में हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ठ माना है। उन्होंने लिखा, 'मैंने यूरोप और मध्य एशिया के सभी मतों का अध्ययन किया है, परंतु मुझे उन सब में हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ दिखाई देता है...मेरा विश्वास है कि इसके सामने एक दिन समस्त जगत को झुकना पड़ेगा।


पृथ्वी पर केवल एक स्थान है जहां के जीवित व्यक्तियों ने प्राचीन काल में अपने स्वप्नों को साकार किया, वह है भारत।- (प्रोफेट्स ऑफ द न्यू इंडिया, प्रील्यूड, पृ. 51)


यह कुछ तार्किक प्रमाण है उस सनातन हिंदु परंपरा की वैश्विक स्वीकारोक्ति के जिसने अपनी हिंसक प्रवृत्ति या तलवार की दम पर नहीं अपने विचार व व्यवहार के बल पर विश्व समाज को अपनी ओर आकर्षित किया है।


अत: एक शिक्षक होने के नाते यह सुझाव आप सभी युवाओं को देती हूं कि अपनी असीमित उर्जा का उपयोग राष्ट्र विरोधी, हिंदु विरोधी, सनातन परंपरा के विरोध में नारे गढने में नहीं अपने स्वत्व और स्वाभिमान को जाग्रत करते हुये सद्साहित्य को पढ़ने में लगाइये व राष्ट्र हित में परिणाम कारी कार्य कर दिखाइये।


लेख

डॉ पिंकेश लता रघुवंशी

सह-सचिव विद्या भारती मध्य भारत प्रान्त