मणिपुर हिंसा : देश में आतंकवाद और रूपान्तरण के षड्यंत्र का ही अंग

ऐसी हिंसा हम देश भर देख सकते हैं। यदि कश्मीर से लेकर केरल प्राँत तक घटने वाली हिंसक घटनाओं की समीक्षा करें तो स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जायेगी। गिनाने के लिये सबके कारण अलग हैं और स्थानीय दिखते हैं किंतु सभी क्षेत्रों से उन परिवारों को निशाना बनाया जाता है जो स्वयं को हिन्दु विचार के अनुरूप या उसके समीप बताते हैं। मणिपुर की इस हिंसा का लक्ष्य भी यही है। कितना साम्य है सभी हिंसक घटनाओं में। जुलूस का निकलना, बहुसंख्यकों पर हमला करना, उनके धर्म स्थलों को क्षतिग्रस्त करना और उनसे क्षेत्र खाली कराना।

The Narrative World    23-May-2023
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हिंसा के तीन सप्ताह बीत जाने के बाद भी मणिपुर में सामाजिक तनाव कम नहीं हुआ है। वहाँ यह हिंसा न तो पहली है और न अंतिम। अभी सशस्त्र बलों की उपस्थिति से हमलावर छिप गये हैं। स्थिति नियंत्रण में लग रही है पर हिंसक तत्व सक्रिय हैं। सशस्त्र बलों के कम होने के बाद वे फिर सक्रिय होंगे और अपने हिंसक अभियान में जुटेंगे। इसका कारण यह है कि यह हिंसा किसी भीड़ के अचानक हिंसक हो जाने की घटना नहीं है अपितु बहुसंख्यक को भगाने अथवा उन्हें रूपान्तरित करने के षड्यंत्र का अंग है जो मणिपुर में वर्षों से चल रहा है।


मणिपुर से हिंसा के जो समाचार मीडिया के माध्यम से आये उनमें कहा गया कि यह हिंसा आरक्षण के समर्थन और विरोध की प्रतक्रिया है। दिखने दिखाने में तो यही लगता है। पर इस हिंसा का वास्तविकता कुछ और है। मणिपुर में ऐसी हिंसा वर्षो से चल रही है। अकेले मणिपुर में ही क्यों ऐसी हिंसा देश भर में हो रही है और सीमा प्राँतो में अधिक। यह हिंसा भारत के विभिन्न भागों में चल रहे आतंकवाद और रूपान्तरण के षड्यंत्र का ही हिस्सा है, जो भारत विरोधी तत्वों द्वारा भारतीयों को ही बहकाकर की जा रही है।


ऐसी हिंसा हम देश भर देख सकते हैं। यदि कश्मीर से लेकर केरल प्राँत तक घटने वाली हिंसक घटनाओं की समीक्षा करें तो स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जायेगी। गिनाने के लिये सबके कारण अलग हैं और स्थानीय दिखते हैं किंतु सभी क्षेत्रों से उन परिवारों को निशाना बनाया जाता है जो स्वयं को हिन्दु विचार के अनुरूप या उसके समीप बताते हैं। मणिपुर की इस हिंसा का लक्ष्य भी यही है। कितना साम्य है सभी हिंसक घटनाओं में। जुलूस का निकलना, बहुसंख्यकों पर हमला करना, उनके धर्म स्थलों को क्षतिग्रस्त करना और उनसे क्षेत्र खाली कराना।


जब हमले होते हैं तो कुछ लोग अपनी जान बचाकर इधर उधर भाग जाते हैं और कुछ परिस्थतियों से समझौता करके रूपान्तरित हो जाते हैं। यही तो कश्मीर में हुआ है और यही सौ साल पहले केरल के मालाबार में हुआ था। अंतर इतना है कि कश्मीर में रूपान्तरण की धारा अलग है और मणिपुर की धारा अलग। कश्मीर में हिंसा, आतंकवाद और भयाक्रांत लोगों का रूपान्तरण करने का केन्द्र पाकिस्तान में है तो मणिपुर में हिंसा, तनाव, वैमनस्य और रूपान्तरण का वातावरण बनाने केलिये दो शक्तियाँ कार्य कर रहीं हैं।


एक का उद्देश्य समाज में द्वैष फैलाकर तनाव फैलाकर अराजकता फैलाना है। ये हिंसक तत्व वन और पर्वतीय क्षेत्र में जाकर छिप जाते हैं। इनकी कार्य शैली ठीक वैसी है जो छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की होती है। माना जाता है कि इन हिंसक तत्वों को संचालित करने वाले सूत्र पड़ौसी देश चीन में कहीं हैं।


तो दूसरी शक्ति का उद्देश्य भय अथवा लालच से समाज का रूपान्तरण कराना है। समय आने पर ये तत्व मिशनरीज के पीछे छिप जाते हैं। इनका केन्द्र कहीं म्यांमार में अनुमानित है। इस शक्ति ने एक प्रकार से मणिपुर की नागा और कुकी समाज का रूपान्तरण करा लिया है। इन दोनों समाज के लोग अब ईसाई पंथ में रूपान्तरित हो सके हैं। और मणिपुर की लगभग 90% भूमि के यही स्वामी हैं।


जबकि मैतेई समाज की जनसंख्या चालीस प्रतिशत है पर उसका केवल दस प्रतिशत भूमि पर ही अधिकार है। पर अब हिंसक तत्व इनको इस भूमि से भी दूर करना चाहते हैं। मणिपुर में हिंसा और रूपान्तरण के लिये जिन दो शक्तियों में परस्पर तालमेल है, उनका परस्पर कोई वैचारिक साम्य नहीं है। पर भारत को अस्थिर करके अपने मत का विस्तार करने में दोनों एक जुट हैं। एक मणिपुर नहीं पूरे उत्तर पूर्व भारत में इन दोनों अंतर्धाराओं में जबरदस्त युति है।


मणिपुर में इन दोनों के निशाने पर सदैव मैतेई समाज रहता है। मैतेई समाज स्वयं को सनातन हिन्दु परंपरा का अंग मानता है, इसलिए सदैव यही समाज निशाने पर होता है। इस बार भी हमला इसी पर हुआ। ताजा हिंसा यद्यपि तीन मई से आरंभ मानी गई। जब एक जुलूस में एकत्र भीड़ ने बस्ती पर हमला बोला। पर इस हिंसा का सूत्रपात 27 अप्रैल से हो गया था। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेन्द्र सिंह 28 अप्रैल को चुराचांदपुर जाने वाले थे। उन्हें अपनी इस यात्रा में एक ओपन जिम का उद्घाटन करना था। इससे एक दिन पहले 27 अप्रैल को ही उसमें आग लगा दी गई। हिंसक समूह यही तक नहीं रुके।


उन्होंने मणिपुर जनजातीय समूहों को सक्रिय किया और मुख्यमंत्री की चुराचांदपुर यात्रा के दिन 12 घंटे के बंद का आह्वान भी किया था। इस आव्हान के बाद इंफाल, चुराचांदपुर और अन्य आसपास के क्षेत्रों में हिंसक घटनाएँ हुईं। इस पर नियंत्रण के लिये धारा 144 लागू कर दी गई और इंटरनेट सेवा को भी पांच दिन के लिए निलंबित कर दी गई। पर इस सावधानी से हिंसक तत्वों की तैयारी पर कोई प्रभाव पड़ा। उनका नेटवर्क बहुत सशक्त था। तीन मई को जुलूस की तैयारी हुई और हजारों लोग सड़कों पर आये उत्तेजक भाषण हुये और हिंसा आरंभ हो गई। यह हिंसा उस माँग के विरुद्ध है जिसमें मैतेई समाज द्वारा स्वयं को जनजातीय सूची करने शामिल करने के लिये की जा रही है।


यह समाज भी यहाँ का मूल निवासी है। सैंकड़ो हजारों साल के प्रमाण हैं। ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का तो व्यवस्थित इतिहास है। पर अंग्रेजों ने अपनी विभाजन नीति के अंतर्गत वन और पर्वतीय क्षेत्र में रहने कूका और नागा समाज को आदिवासी घोषित किया था और उनके रूपान्तरण के लिये मिशनरीज सक्रिय हो गईं थीं। चूँकि अंग्रेजों को इस क्षेत्र की वन संपदा पर अधिकार करना था। इसलिए उन्होंने इन दो समुदायों को वन और पर्वतीय क्षेत्र का स्वामी तो माना और यह अधिकार भी दिया कि वे घाटी क्षेत्र में बसने के अधिकारी हैं।


जबकि मैतेई समाज को वन और पर्वतीय क्षेत्र में मकान जमीन क्रय करके बसने का अधिकार नहीं दिया। इसीलिये यह समाज सिमटता जा रहा है। और विवश होकर या तो अन्य प्रातों में जा रहा है अथवा रूपान्तरित हो रही है। 1961 की जनगणना में यह समाज साठ प्रतिशत से अधिक था जो अब घटकर चालीस प्रतिशत के आसपास रह गया। अपने सिमटते अस्तित्व से चिंतित इस समाज ने अपने तीन हजार वर्ष पुराने इतिहास को आधार बना कर ही इस समुदाय ने स्वयं अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की मांग उठाई।


मामला अदालत में भी दायर किया। इसके विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन आफ मणिपुर (एटीएसयूएम) सामने आया ताजा हिंसा के पीछे यही संगठन है। मई के प्रथम सप्ताह में हुई यह हिंसा रैली में अकस्मात भड़की हिंसा नहीं अपितु पहले से की गई तैयारी झलकती है।

यह हिंसा चुराचांदपुर के तोरबंग इलाके से कांगपोकपी होकर इंफाल तक पहुँची। मरने वालों की संख्या सत्तर तक पहुँची। जिनके घरों पर हमला हुआ और उन्हें क्षेत्र से भगाया गया उनकी संख्या लगभग डेढ़ हजार से अधिक है। यह आंकड़ा वह है जिन्हें सुरक्षा बलों ने बचाकर सुरक्षा दी। इनके अतिरिक्त उन सैकड़ों लोगों की गणना होना बाकी है जो हिंसा की आशंका से पहले ही अपने घर छोड़कर पलायन कर गये थे।


कुछ असम आ गये और कुछ यहाँ वहाँ भागे। हिंसा मंदिरों को निशाना बनाया गया। विश्व हिन्दु परिषद पीड़ितों की सेवा में सक्रिय हो गई है। परिषद ने इन क्षतिग्रस्त मंदिरों की संख्या चालीस बताई है। पर मंदिरों के बारे में अभी राज्य सरकार का आंकड़ा सामने नहीं आया है। हाँ मरने वालों और बेघर हुये लोगों के आँकड़े सुरक्षाबलों ने ही जारी किये हैं।


सुरक्षा बलों की सख्ती से फिलहाल हिंसा रुक गई है पर वे तत्व नहीं रकेंगे जो भारतीय किसी न किसी बहाने से समाज में वैमनस्य फैलाकर भारत में तनाव पैदा करना चाहते हैं। अपने मत का विस्तार करना चाहते हैं। अंग्रेज भले चले गये पर उनके षड्यंत्रों के विष बीज नष्ट न हुये उन विष बीजों के कारण ही मणिपुर में यह हिंसा हुई। यह अंग्रेजों का कूटनीतिक कानून और मिशनरीज की जमावट है कि मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समाज की जनसंख्या धीरे धीरे घट रही है और इनकी बस्तियाँ खाली हो रहीं हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे कश्मीर में हुआ।


मणिपुर में कुकी और नागा लगभग पूरी तरह रूपान्तरित हो चुके हैं और मैतेई समाज पर दबाव बनाया जा रहा है। वे या तो रूपान्तरित हों अथवा क्षेत्र खाली करें। यही बात चिंता जनक है पूरे सनातन समाज के लिये चिंता जनक है। चूँकि पूरे देश में यदि किसी को विभाजित करने का षड्यंत्र होता है तो केवल सनातन हिन्दु समाज पर। रूपान्तरण का या बस्ती खाली करने का मानसिक दबाब बनता है तो केवल सनातन हिन्दु समाज पर।


यह चित्र केवल मणिपुर का नहीं असम, बंगाल, केरल, तैलंगाना, झारखंड से भी ऐसे समाचार आते हैं। उत्तर और बिहार के कुछ विशेष जिलों के समाचार भी मीडिया में आये और उन आकड़ों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 1951 की जन गणना में सनातन हिन्दुओं की जनसँख्या 91% प्रतिशत से अधिक थी जो अब घटकर 80% के आसपास रह गई।


लेख

रमेश शर्मा