इस्लामिक जिहादियों और ईसाई मिशनरियों के बीच पिसता भारत का हिंदु समाज

हाल ही में इतने मामले सामने दिखेंगे कि आपको इसमें एक खास समूह की नीयत साफ नजर आ जाएगी। दिल्ली में हुआ हिंदु विरोधी दंगा हो या बैंगलुरू में जिहादियों आतंक, कश्मीर में पत्थरबाजी हो या कोरोना के दौरान मुस्लिम मोहल्लों में स्वास्थ्यकर्मियों के साथ की गई मारपीट, हिजाब का मामला हो या सीएए का, हर बार दिखा है कि कैसे एक वर्ग ने भारत के बहुसंख्यक समाज को, देश के संविधान को, लोकतंत्र को और न्याय व्यवस्था को नीचा दिखाने और उन पर दबाव बनाने का प्रयास किया है।

The Narrative World    24-May-2023   
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कभी यह ख़बर आती है कि कुछ इस्लामिक जिहादियों ने एक हिंदु युवक का जबरन मतांतरण कराकर उसका खतना करवा दिया है। इस घटना को लेकर यह भी ख़बर आती है कि आरोपियों ने हिंदु युवक की एक पिस्तौल के साथ तस्वीर ले ली थी और उसे कहा था कि यदि उसने किसी को सच बताया तो उसे आतंकवादी करार दिया जाएगा।


इसके बाद उत्तरप्रदेश से एक खबर आती है कि चर्च से जुड़ी दो ईसाई ननों ने एक महिला के घर में घुसकर ईसाई मत अपनाने के लिए दबाव बनाया और साथ ही हिंदु देवी-देवताओं की तस्वीरों का अपमान किया।


यह ऐसी खबरें हैं जिसे मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया गया है या पुलिस में शिकायत दर्ज की है। लेकिन कई ऐसी घटनाएँ हैं जो इस्लामिक जिहादियों और ईसाई मिशनरियों द्वारा किए गए होंगे जो रिपोर्ट भी नहीं हो पाए।


ऐसी घटनाएं आम तौर पर ना सिर्फ घटित हो रही हैं बल्कि दिन--दिन बढ़ती ही जा रही है। स्थितियां ऐसी हो चुकी है कि हिंदु समाज को छिन्न-भिन्न करने के लिए इस्लामिक जिहादी और ईसाई मिशनरियां जी जान से लगी हैं और इसमें उनका साथ देशविरोधी तत्व एवं वामपंथी शक्तियां कर रही हैं, वहीं हिंदु समाज छद्म धर्मनिरपेक्षता के अंधकार में जी रहा है।


ऐसा नहीं है कि इस्लामिक जिहादियों और ईसाई मिशनरियों की ये गतिविधियां हाल-फिलहाल में शुरू हुई है, दरअसल भारत की स्वाधीनता के पूर्व से ही यह आतंक जारी है। इस्लाम ने तो भारत में अपने पैर ही आक्रमण और आतंक के साथ रखे थे, जिसमें उसकी मंशा केवल और केवल भारत की समृद्धि एवं ऐश्वर्य को लूटना था।


धीरे-धीरे इस्लाम ने भारत के विभिन्न हिस्सों पर अपना कब्जा किया और धन-दौलत को लूटने के साथ-साथ यहां शासन भी स्थापित कर दिया। अपने शासनकाल में इस्लामिक जिहादी शासकों ने भारत की संस्कृति, परंपरा, मर्यादा, सभ्यता, कलाकृतियां, स्थापत्यकला, ज्ञान-विज्ञान और समाज को खंडित करने का कार्य किया।


जिहादी ताकतों के कारण भारत की भाषाई और बोली परंपरा ना सिर्फ दूषित हुईं बल्कि उनका ऐसा पतन हुआ कि आज भी उसके प्रभाव देखें जा सकते हैं। जिहादियों ने भारतीय जनमानस पर आघात करते हुए उनके आस्था स्थलियों को खंडित किया, ज्ञान-विज्ञान के भंडार रहे विशाल विश्वविद्यालयों को आग लगा दिया, और तो और भारतीय स्थापत्यकला के नायाब नमूनों को तोड़कर मजहबी हवस की निशानियों को जगह दी गई।


वहीं दूसरी ओर ईसाई समूहों का भारत आगमन व्यापार के माध्यम से हुआ, जिनकी उपस्थिति भारत में धीरे-धीरे मकड़जाल की तरह बढ़ती गई और उन्होंने भारतीयों को ही आपस में लड़ाकर अपना शासन स्थापित किया। एक तरफ जहां इस्लामिक जिहादी खुलकर भारतीय संस्कृति, मंदिर, परंपराओं को तोड़ने में माहिर थे, तो वहीं दूसरी ओर ईसाई सत्ता ने भारत की नींव को ही खत्म करने का कार्य किया।


भारत की गुरुकुल पद्धति हो या पारंपरिक शिक्षा प्रणाली, वित्तीय प्रबंधन हो या कानून व्यवस्था, सामाजिक संरचना हो या आस्था से जुड़े मुद्दे, ईसाइयों ने सनातनियों की प्रत्येक इकाई के जड़ों पर ना सिर्फ हमला किया बल्कि उसे खत्म भी कर दिया।

आज हम जिस शिक्षा पद्धति, कानून-न्याय प्रणाली, प्रशासन व्यवस्था या आधुनिक लोकतंत्र को देखते हैं, वह इन्हीं ईसाइयों का बिछाया हुआ जाल है, जिसमें हम आज तक फंसे हुए हैं।


खैर, उपरोक्त बातें तो इतिहास की हैं, जानना यह आवश्यक है कि वर्तमान कैसा है और भविष्य कैसा होगा। दरसअल वर्तमान की स्थितियां भी भूतकाल से कुछ खास अलग नहीं है। आपने आए दिन उन घटनाओं का जिक्र सुना होगा कि 'किसी स्थान में लव जिहाद के बाद हिंदु युवती की लाश मिली', या 'जिहादी युवक ने पहचान बदलकर हिंदु युवती को प्रेमजाल में फंसाया', यह घटनाएं कोई काल्पनिक या किसी उपन्यास की घटनाएं नहीं है, यह वास्तविक घटनाएं हैं जो आमतौर पर समाज के बीच में घटित हो रही हैं।


कई ऐसे मामले भी हो सकते हैं जिन्हें रिपोर्ट भी नहीं किया गया, जो सामाजिक या पारिवारिक प्रतिष्ठा के दबाव में दब कर रह गई हो। आखिर ऐसे मामले देश के विभिन्न शहरों में एक पैटर्न में हो रहे हो तो यह केवल संयोग कैसे हो सकता है? दरअसल यह संयोग नहीं, प्रयोग है।


इसी प्रकार जिस स्थान पर जिहादियों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिलती है वहां अपने आप ही स्थितियां तनावपूर्ण हो जाती है, वह स्थान धीरे-धीरे संवेदनशील बन जाता है। ऐसे मुस्लिम मोहल्लों से कभी सिमी जैसे आतंकी संगठन के लोग निकलते थे, अब इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन पीएफआई के सदस्य ऐसे मोहल्लों में आराम से मिल जाएंगे।


पुराने मामलों को छोड़ भी दें तो हाल ही में इतने मामले सामने दिखेंगे कि आपको इसमें एक खास समूह की नीयत साफ नजर आ जाएगी। दिल्ली में हुआ हिंदु विरोधी दंगा हो या बैंगलुरू में जिहादियों आतंक, कश्मीर में पत्थरबाजी हो या कोरोना के दौरान मुस्लिम मोहल्लों में स्वास्थ्यकर्मियों के साथ की गई मारपीट, हिजाब का मामला हो या सीएए का, हर बार दिखा है कि कैसे एक वर्ग ने भारत के बहुसंख्यक समाज को, देश के संविधान को, लोकतंत्र को और न्याय व्यवस्था को नीचा दिखाने और उन पर दबाव बनाने का प्रयास किया है।


वहीं, यदि हम ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की बात करे तो एक बात नजर आती है कि एक तरफ जहां कट्टरपंथी इस्लामिक जिहादी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक खतरनाक तत्व हैं, तो असामाजिक गतिविधियों में लगी ईसाई मिशनरियां 'धीमा जहर' है।


उत्तर पूर्व क्षेत्र के विभिन्न राज्यों में ईसाई मिशनरियों के द्वारा स्थानीय जनजातियों का व्यापक तौर पर मतांतरण कराया गया है। स्थितियां ऐसी हैं कि इन क्षेत्रों की कुछ जनजातियां आज अपने अस्तित्व के लिए तरस रहीं हैं। जिन जनजातियों अपना धर्म, अपनी संस्कृति छोड़ने से इंकार किया उन्हें धर्मांतरित ईसाइयों ने खदेड़ कर राज्य से ही बाहर निकाल दिया, ब्रू-रियांग जनजाति इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।


इसके अलावा इन क्षेत्रों में चर्च समर्थित आतंकी संगठनों का उदय हुआ जिन्होंने ना सिर्फ अलगाववादी बीज बोए, बल्कि स्थानीय स्तर पर वनवासियों के लिए कार्य करने वाले हिंदु संतों की हत्याएं की। उत्तर पूर्वी राज्यों के अलावा ईसाई मिशनरियों ने मध्य भारत, पश्चिम भारत एवं पूर्वी भारत के भी विभिन्न राज्यों के जनजातियों में भी मतांतरण का गंदा खेल खेला।


दक्षिण के राज्यों में पैर पसार कर ईसाई मिशनरियों ने तमिलनाडु और केरल जैसे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी अपनी पैठ बना ली। वहीं अब यही ईसाई मिशनरी के लोग पंजाब जैसे संवेदनशील राज्य में, खासतौर पर सीमावर्ती क्षेत्र में, मतांतरण की गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, जो ना सिर्फ सांस्कृतिक एवं धार्मिक रूप से बल्कि आने वाले समय में सुरक्षा की दृष्टि से भी भारत के लिए खतरा हो सकता है।


यदि हम भारत में हिंदु समाज की स्थिति को देखें तो सतही तौर पर तो यही दिखता है कि भारत की बहुसंख्यक आबादी का ही वर्चस्व है और जिस तरह 'बहुसंख्यकवाद' के आरोप लगाए जाते हैं वो कहीं न कहीं सही भी हैं, लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है।


संविधान में जबरन शामिल किए गए 'पंथनिरपेक्ष' शब्द की कीमत जितनी हिंदुओं ने चुकाई है, उसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। भारत में हिंदु समाज एक तरफ इस्लामिक जिहादियों के आतंक, जिहाद और आक्रामकता का निशाना बन रहा है, वहीं दूसरी ओर ईसाई मिशनरियों के द्वारा किए जा रहा अवैध मतांतरण, चर्च का मकड़जाल और विदेशी षड्यंत्रों का मायाजाल भी झेल रहा है।


यदि जिहादियों और मिशनरियों की इन अवैध गतिविधियों को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में यह समस्या भारत और भारत में रहने वाले हिंदुओं के लिए इतनी विकराल बन जाएगी कि फिर इससे पार पाना लगभग असंभव हो चुका होगा।