हिटलर को तानाशाह बनाने में कम्युनिस्ट शक्तियों का हाथ था

जो हिटलर अपने शुरुआती दौर में बिल्कुल भी लोकप्रिय नहीं था उसने सोशल डेमोक्रेट और कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच हुए मतों के विभाजन का फायदा उठाया और जर्मनी में मजबूत होता गया। वर्ष 1933 में हिटलर की नाजी पार्टी के सत्ता में आने का यही सबसे बड़ा कारण था।

The Narrative World    25-May-2023   
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भारत सहित दुनियाभर में कहीं भी तानाशाही की बात की जाती है तो हर बार हिटलर के नाम का उल्लेख किया जाता है। वैश्विक मीडिया
, भारतीय मीडिया और तमाम लेखकों, साहित्यकारों एवं पत्रकारों के द्वारा तानाशाह को प्रतिबिंबित करने के लिए भी हिटलर शब्द का उपयोग किया जाता है।


भारत में भी विपक्षी दलों द्वारा सत्तापक्ष को तानाशाह दिखाने के लिए हिटलरशाही जैसे टाइटल दिए जाते हैं। खासकर ऐसे शब्दों का जिक्र भारत सहित पूरे विश्व में वामपंथी धड़ा अधिकांश करता है।


हालांकि दुनिया भर में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस बात को जानते हैं कि हिटलर की तानाशाही को बढ़ाने या हम कहें कि हिटलर को तानाशाह बनाने में वामपंथी विचारधारा और वामपंथी पार्टियों ने भरपूर सहयोग किया था।


दरअसल तत्कालीन रूस में वर्ष 1917 में तथाकथित क्रांति के बाद सोवियत संघ के रूप में कम्युनिस्ट सत्ता की स्थापना को देखते हुए 30 दिसंबर, 1918 में जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई थी।


इसके कुछ समय के बाद सोवियत संघ के मॉस्को में कॉमिन्टर्न का गठन किया गया। इसका उद्देश्य दुनियाभर में उनके समान विचार अर्थात वामपंथी विचार वालों की सरकारें बनाना था।


इसी उद्देश्य को देखते हुए सोवियत की कम्युनिस्ट सत्ता ने दुनियाभर की कम्युनिस्ट शक्तियों और विचारकों के लिए रणनीति बनाने के निर्देश दिए जिसमें जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी।


जर्मनी को लेकर यह रणनीति बनी कि वहां की सोशल डेमोक्रेटिक दलों के विरुद्ध संघर्ष किया जाएगा और उन्हें पूरी तरह खत्म किया जाएगा।


आज जो वामपंथी फासीवादी शब्द का उपयोग करते हैं इसकी उत्पत्ति भी इसी रणनीति के तहत की गई।


दरअसल जर्मनी की वामपंथी पार्टी को जब निर्देश दिए गए तो यह भी तय किया गया कि वहां की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टियों को बदनाम करने के लिए 'सोशल फासिस्ट' जैसे शब्दों का उपयोग किया जाएगा।


लेकिन इन्हीं वामपंथी दलों के द्वारा जिस तरह से जर्मनी के चुनाव में मतों का बंटवारा किया गया उसका फायदा हिटलर की नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (नाज़ी पार्टी) को मिला।


जो हिटलर अपने शुरुआती दौर में बिल्कुल भी लोकप्रिय नहीं था उसने सोशल डेमोक्रेट और कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच हुए मतों के विभाजन का फायदा उठाया और जर्मनी में मजबूत होता गया। वर्ष 1933 में हिटलर की नाजी पार्टी के सत्ता में आने का यही सबसे बड़ा कारण था।


दरअसल वर्ष 1933 में हुए चुनावों में सोशल डेमोक्रेट को 18.3% मतदान प्राप्त हुए वहीं कम्युनिस्ट पार्टी को 12.3% वोट मिले। इसके इतर अकेले हिटलर के नाजी पार्टी को 43.9% वोट मिले और को पूरे देश पर हिटलर का कब्जा हो गया।


द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से पहले ही जर्मनी के नाजी शासक हिटलर और सोवियत संघ के कम्युनिस्ट शासक स्टालिन के बीच एक समझौता हुआ था। दोनों के बीच हुए अनाक्रमण की इस संधि के बाद हिटलर अत्यधिक मजबूत बनकर उभरा।

दोनों देशों के बीच 23 अगस्त 1939 में हुए इस समझौते में पोलैंड को आपस में बांटने की बात हुई। इसके तहत लात्विया, लिथुआनिया और एस्तोनिया को सोवियत को देने की बात की गई। इस समझौते को नाजी-सोवियत संधि भी कहा जाता है।


इस संधि का स्पष्ट अर्थ यह है कि सोवियत की कम्युनिस्ट सत्ता और पूरे विश्व के साम्यवादियों को निर्देश देने वाले स्टालिन ने हिटलर का समर्थन किया था, जिसके कारण दुनियाभर के वामपंथियों ने भी हिटलर को अपना समर्थन दिया।

इसके कुछ उदाहरण इस तरह से देखे जा सकते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव रहे पीसी जोशी ने कहा था कि चूँकि सोवियत संघ के साथ अनाक्रमण संधि को प्राथमिकता दी गई है, इसीलिए इसकी प्रतिक्रिया में ब्रिटेन आगबबूला हो गया है और उसने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी है।


इसके अलावा सोवियत और हिटलर के बीच हुई इस संधि में विश्व की दूसरी कम्युनिस्ट शक्तियों के समर्थन का उदाहरण इनसे भी दिखाई दे रहा था।


जब 1 सितंबर को जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया और 17 सितंबर 1940 को सोवियत ने भी पोलैंड पर हमला किया तब चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ जे़डोंग ने इस हमले को जायज ठहराया था और कहा था कि पोलैंड के लिए बेवजह सहानुभूति जताने में हमें अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। पोलैंड की सरकार सामंतों और बुर्जुआ वर्ग की फासीवादी सरकार है।


इन बातों का स्पष्ट अर्थ यह समझ आता है कि एक तरफ जहां भारत में पीसी जोशी जैसे कम्युनिस्ट नेता हिटलर को निर्दोष बताते हुए ब्रिटेन को दोषी बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर चीन में माओ जे़डोंग जैसे कम्युनिस्ट नेता रूस और जर्मनी के द्वारा पोलैंड पर किए गए हमले का समर्थन कर रहे थे।


इसके अलावा अरुण शौरी की किताब 'द ओनली फादरलैंड: कम्युनिस्ट, क्विट इंडिया एन्ड द सोवियत यूनियन' में इस बात का भी उल्लेख है कि सोवियत संघ की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने विश्व युद्ध शुरू होने के बाद जर्मनी के साथ एक और समझौता किया था। यह समझौता 27 सितंबर 1939 को हुआ था।


अरुण शौरी की पुस्तक में उल्लेख के अनुसार इस समझौते में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सत्ता की पुलिस ने हिटलर के खुफिया पुलिस का पूरा सहयोग किया था। इस दौरान रूस ने जर्मनी को कच्चे माल की भी आपूर्ति की थी।


अरुण शौरी की पुस्तक में इस बात का भी उल्लेख है कि सोवियत की कम्युनिस्ट सत्ता में जेलों में बंद हिटलर के विरोधी कम्युनिस्टों को स्टालिन की सरकार ने जर्मनी के हवाले कर दिया था।

सिर्फ इतना ही नहीं स्टालिन ने सोवियत में छुपे हिटलर के विरोधियों की चुन-चुनकर हत्या कराने में भी हिटलर की खुफिया पुलिस 'गेटास्पो' को पूरी छूट दी थी। इसके अलावा यह जानकारी भी सामने आई थी कि हिटलर और स्टालिन दोनों में एक समानता थी कि दोनों यहूदियों से नफरत करते थे।


लेकिन आखिर इन सब के पीछे क्या कारण है कि दुनिया भर के वामपंथी वर्तमान में हिटलर से इतनी नफरत करते हैं जबकि उनके सबसे बड़े पुरोधा पुरुष के द्वारा हिटलर का सहयोग किया गया?


दरअसल इसके पीछे हिटलर के द्वारा किए गए कुछ ऐसे कार्य हैं जो जानना आवश्यक है। वर्ष 1941 के जून माह तक इटली और जापान के साथ हिटलर ने संधि कर ली थी और यूरोप के अधिकांश हिस्से को जीत लिया था। इसके बाद भी हिटलर की दुनिया जीतने की लालसा बढ़ती चली गई।


इसी क्रम में उसने अब सोवियत पर ही आक्रमण करने की ठान ली। हिटलर ने सोवियत के साथ हुई संधि को तोड़ने की तैयारी कर ली। उसके बाद 22 जून 1941 को नाजी सेना ने सोवियत पर हमला कर दिया।


सोवियत पर हमला करने के बाद से दुनिया भर के कम्युनिस्ट हिटलर से नाराज हो गए और इसके बाद सोवियत में हिटलर से मुकाबला करने के लिए ब्रिटेन से हाथ मिला लिया।


इसके बाद जब सोवियत हिटलर के विरुद्ध और ब्रिटेन के पक्ष में हो गया तो दुनिया भर के वामपंथियों ने भी उस आदेश को माना और उसके बाद वह हिटलर की लड़ाई को साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई ना कर कर उसे एक तानाशाह कहने लगे, क्योंकि ब्रिटेन खुद एक साम्राज्यवादी शक्ति था और वामपंथियों को ब्रिटेन का समर्थन करना पड़ रहा था।