उत्तर पूर्व और मध्य भारत के बाद अब ईसाई मिशनरियों के निशाने पर पंजाब

मध्य भारत में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने के बाद अब ईसाई मिशनरियों ने पंजाब का रुख किया है। लेकिन इन सब के बीच एक परिवर्तन यह दिख रहा है कि ईसाई मिशनरियों ने जिस तरह से मध्य भारत या उत्तरपूर्व के राज्यों में अपने गतिविधियों को अंजाम दिया था वह बेहद धीमा और लगभग छिपा हुआ था।

The Narrative World    26-May-2023   
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जब ब्रिटिश ईसाई समूह ने भारत में अपनी सत्ता स्थापित की तो उसका मूल उद्देश्य ना सिर्फ भारत की व्यवस्था पर कब्जा कर उसे बदलना था बल्कि यहां ईसाई धर्म का प्रचार करना भी था। यही कारण है कि जब ब्रिटिश ईसाइयों ने भारत में शासन करना शुरू किया तो उन्होंने सबसे पहले जनजाति क्षेत्रों में ईसाई धर्म का प्रचार करना शुरू किया और व्यापक स्तर पर धर्मांतरण का कार्य किया।


इस कार्य के लिए ब्रिटिश ईसाइयों ने सबसे पहले उत्तरपूर्वी राज्यों को अपने षड्यंत्र का हिस्सा बनाया। ब्रिटिश ईसाइयों के द्वारा किए गए इस घृणित कार्य का परिणाम यह रहा कि वर्तमान समय में उत्तरपूर्व के अधिकांश राज्यों में हिंदु समुदाय अल्पसंख्यक बन चुका है।


ब्रिटिश ईसाइयों के द्वारा किए गए इन अवैध मतांतरण की गतिविधियों के बाद क्षेत्र में ना सिर्फ हिंदुओं की संख्या में गिरावट हुई बल्कि स्थानीय परंपराओं, सभ्यताओं और रीति-रिवाजों का भी पतन हुआ।


भारत की स्वतंत्रता के बाद ब्रिटिश ईसाइयों ने तो भारत छोड़ दिया लेकिन तब तक यूरोपीय चर्च का एक बड़ा जाल भारत में फैल चुका था। अपने इस चर्च के जाल का उपयोग करते हुए ईसाई समूहों ने स्वतंत्रता के बाद भी मतांतरण की गतिविधियों को जारी रखा।


उत्तर पूर्व के राज्यों के बाद उन्होंने दक्षिण और मध्य भारत के जनजाति क्षेत्रों को अपना मुख्य निशाना बनाया। इन क्षेत्रों में बीते 7 दशकों में व्यापक स्तर पर मतांतरण का खेल हुआ।


मतांतरण के कारण मध्य भारत की विभिन्न जनजातियों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को क्षति पहुँची। इस दौरान ईसाइयों ने जनजातियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति के लोगों को भी भ्रमित कर उन्हें अपना शिकार बनाया।


झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और तमिलनाडु के जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में ईसाई मिशनरी तंत्र ने अपनी पैठ बनाई और कभी स्वास्थ्य की सहायता के नाम पर तो कभी आर्थिक सहायता के नाम पर लोगों का मतांतरण कराया।


इस दौरान कई ऐसी रिपोर्ट भी सामने आई कि ईसाई मिशनरियों के द्वारा पैसे का, नौकरी का या अन्य प्रकार का प्रलोभन देकर भी मतांतरण कराया जा रहा है।


मध्य भारत में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने के बाद अब ईसाई मिशनरियों ने पंजाब का रुख किया है। लेकिन इन सब के बीच एक परिवर्तन यह दिख रहा है कि ईसाई मिशनरियों ने जिस तरह से मध्य भारत या उत्तरपूर्व के राज्यों में अपने गतिविधियों को अंजाम दिया था वह बेहद धीमा और लगभग छिपा हुआ था।


लेकिन जिस प्रकार से पंजाब में ईसाई मिशनरियां लगी हुई हैं उससे स्पष्ट दिखाई देता है कि वह बेहद आक्रामक रूप से आगे बढ़ रहीं हैं और उन्हें अब खुद को छिपाने की भी आवश्यकता नहीं रही।


पंजाब में मुख्य रूप से ईसाई मिशनरियों के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में और दलित समाज के भीतर अपनी पैठ बनाई जा रही है। सिखों को अपना निशाना बनाने के पीछे ईसाई मिशनरियों का एक बड़ा षड्यंत्र है।


दरअसल पंजाब में पूर्व में खालिस्तान जैसे अलगाववादी आंदोलन उठाए जा चुके हैं, ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि ईसाई मिशनरियों के द्वारा किया जा रहा मतांतरण का यह कार्य भविष्य में एक बार फिर खालिस्तान से जुड़े गतिविधियों को सामने ला सकता है।


इसमें कोई शक नहीं है कि ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के पीछे विदेशी शक्तियों का हाथ है जो भारत को स्थित एवं प्रगति के पथ पर नहीं देख सकते। ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी अनुचित नहीं होगा कि पंजाब जैसे सीमावर्ती एवं संवदेनशील राज्य को किसी बड़े षड्यंत्र के तहत ईसाई मिशनरियां आक्रामक रूप से अपने निशाने पर ले रही हैं।


इस मुद्दे पर अकाल तख्त ने भी कई बार सख्त बयान दिया है। अकाल तख्त ने स्पष्ट कहा है कि ईसाई मिशनरियां सीमावर्ती क्षेत्रों के गांवों में सिखों का ईसाई धर्म में मतांतरण करा रही हैं।


अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह का कहना है कि सीमा पर स्थित गांवों में ईसाई मिशनरियां सिख परिवारों को जबरन अपना निशाना बना रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए मिशनरियों द्वारा पैसे का प्रलोभन भी दिया जा रहा है।


दरअसल राजनीति और सामाजिक परिस्थितियों के कारण पंजाब में सिखों के भीतर भी मजहबी, वाल्मीकि और जाट सिखों में एक दूरियां पैदा हो चुकी हैं।


पंजाब की सियासत में भी जाट सिखों का वर्चस्व है। ऐसे में ईसाई मिशनरियों के द्वारा वाल्मीकि एवं मजहबी सिखों को कथित तौर पर सम्मानजनक जीवन, पैसे, शिक्षा एवं स्वास्थ्य का प्रलोभन देकर उनका मतांतरण कराया जा रहा है।


वर्तमान में पंजाब में ईसाई मिशनरियों की आक्रामकता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि गुरदासपुर के कई गांवों में मकानों की छत पर छोटे-छोटे चर्च स्थापित किए जा रहे हैं।


यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के आंकड़ों के अनुसार पंजाब के 12 हजार गांवों में से 8 हजार से अधिक गांवों में ईसाई धर्म की समितियां हैं।


सिर्फ इतना ही नहीं, अमृतसर और गुरदासपुर जिले में चार ईसाई समूह के लगभग 700 चर्च भी मौजूद हैं। इसमें आश्चर्यजनक बात यह है कि इनमें से 60-70 प्रतिशत चर्च पिछले 5 वर्षों में अस्तित्व में आये हैं।


इसके अलावा मिशनरियों द्वारा एक बड़ा षड्यंत्र यह भी है कि उन्होंने दलित सिखों का धर्म तो परिवर्तित कर दिया है लेकिन सरकारी दस्तावेजों में वो अभी भी दलित सिख ही हैं, यहां तक कि उनका नाम भी परिवर्तित नहीं किया गया है।


इसका मुख्य कारण यह है कि यदि ये लोग खुद को ईसाई कहेंगे तो अनुसूचित जाति के रूप में इन्हें मिलने वाले सभी लाभ एवं अधिकार समाप्त हो जाएंगे, जिसमें आरक्षण भी शामिल है।


यही कारण है कि ईसाई मिशनरियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक धर्म तो बदला जा रहा है लेकिन संवैधानिक अधिकारों के कारण आधिकारिक रूप से दस्तावेजों में उनकी पहचान को छिपाया जा रहा है।


ऐसा अनुमान है कि पंजाब में वर्तमान में जो आंकड़ें सिख समुदाय के पेश किए जाते हैं, वास्तविक संख्या उससे कहीं अधिक है।


धर्मांतरण के विषय पर अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने बीते वर्ष भाई तारू सिंह के बलिदान दिवस पर कहा था कि पंजाब में व्यापक स्तर पर मतांतरण हो रहा है और यह चिंता का कारण है। गांवों में रहने वाले आसान लक्ष्य हैं जिन्हें निशाना बनाया जा रहा है। वे छोटे से लालच में आकर अपना धर्म परिवर्तित कर लेते हैं।


उन्होंने भाई तारू सिंह के बलिदान को याद दिलाते हुए कहा था कि उन्होंने मुगल साम्राज्य के सामने अपने बाल कटवाने और धर्मान्तरण कराने से बेहतर अपना शीश कटाना समझा और बलिदान हो गए। जत्थेदार ने कहा कि वर्तमान में भाई तारू सिंह ही युवाओं के रोल मॉडल होने चाहिए।