पिछले वर्ष हम सभी ने कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार, नरसंहार पर एक फिल्म देखी थी - द कश्मीर फाइल्स.
कश्मीर फाइल्स में जो कुछ दिखाया गया वैसा ही आज देश के उन राज्यों, गाँव, इलाकों में हो रहा है जहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं या संख्या में कम हैं।
लेकिन "द केरला स्टोरी" इससे भी आगे की फिल्म है और इस फिल्म को केवल केरल के परिप्रेक्ष्य में ही देखना एक भूल होगी, इस फिल्म में जो कुछ भी दिखाया गया है, वैसा केवल केरल में ही नहीं पूरे देश में किया जा रहा है। ऐसी घटनाएँ हम रोज़ ही सबसे अधिक सोशल मीडिया पर देख रहे हैं, टीवी चैनलों और अख़बारों में ऐसी खबरें अक्सर दबा दी जाती हैं क्योंकि इसमें अपराधी कोई मज़हबी होता है।
यह फिल्म हर हिंदू, सिख, ईसाई और तमाम नॉन मुस्लिम्स को देखनी चाहिए, ये फिल्म मन मस्तिष्क को झकझोर देनेवाली फिल्म है।
उनका पूरा का पूरा समाज बिना किसी जाति भेद के इस लव जिहाद में लगा है। बच्चे, जवान, बुज़ुर्ग, लड़के, लड़कियाँ, महिला पुरुष सबके सब शामिल हैं। पूरी दुनिया को इस्लामिक बनाना उनका लक्ष्य है, ये अलग बात है कि जिन देशों में वो अधिक संख्या में हैं वहाँ भी वो खुश नहीं हैं, अभी ताज़ा घटना सूडान की हम सभी देख रहे हैं।
ये महज एक फिल्म नहीं, ये इस मज़हब की वो कड़वी सच्चाई है जिसे फिल्म के निर्माता विपुल अमृतलाल शाह और निर्देशक सुदीप्त्तो सेन ने बहुत ही साहस और प्रभावी ढंग से बताया है।
इस मजहब को "अमन का मज़हब" बताकर इसे महान बताने वाले, इसकी शान में कसीदे गढ़ने वाले अनेक हिंदू और मज़हबी इस फिल्म को काल्पनिक, झूठ साबित करने में जुट गए हैं। दैनिक भास्कर की दो तथाकथित महिला पत्रकार दो दिन पहले ही इस फिल्म को लेकर गलत तथ्यों के साथ लेख लिख चुकी हैं।
लेकिन ये फिल्म शुरुआत में ही बताती है कि "यह फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है, बस पात्रों के नाम बदल दिये गए हैं" फिल्म के अंत में कुछ पीड़ित बच्चियों के माता पिताओं की बाइट्स भी दिखाई गई हैं।
यह फिल्म सबसे बड़ा संदेश यही देती है कि हिंदू माता पिता अपने बच्चों की पढ़ाई, शादी ब्याह, जन्मदिन, कपड़े, गाड़ी और उनकी पसंद पर तो खूब जमकर पैसा खर्च करते हैं, लेकिन उनको धर्म और संस्कारों की शिक्षा या तो बिलकुल नहीं देते या केवल मंदिर जाने तक ही सीमित रहते हैं, जबकि हमारी सनातन परंपरा, धर्म, शिक्षा, संस्कार, पर्व संसार में सबसे श्रेष्ठ हैं।
यह फ़िल्म बताती है कि कैसे केरल में भारत को तोड़ने का ऐसा षड्यंत्र रचा जा रहा, जो ना सिर्फ़ हिंदु समाज के लिए बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा ख़तरा है।
इस फ़िल्म में एक कथन है जिसमें एक युवती अपने कम्युनिस्ट पिता से कहती है कि "आपने भी हमें आयतित विचारधारा के बारे में ही बताया, कभी आपने हमें अपने धर्म-संस्कृति और पुराणों के बारें में नहीं बताया," यह कथन बताता है कि समाज के भीतर यदि हिंदुओ को शिकार बनाया जा रहा है, तो उसके पीछे कैसे कारक कार्य करते हैं।
यह फिल्म हर हिंदू युवक, युवती, माता पिता, हर हिंदू को देखनी चाहिए, क्योंकि यह फ़िल्म उस पवित्र भूमि को जिहाद की प्रयोगशाला बनाए जाने की कहानी बताती है, जिसे हम "ईश्वर की अपनी भूमि" कहते हैं।
लेख
हर्षल खैरनार