चेर्नोबिल मिनी सीरीज : कम्युनिस्ट सोवियत की पोल खोलती हुई एक ऐसी कहानी, जिसे देखा जाना चाहिए

10 Jun 2023 17:57:52

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आज के समय में फिल्मों से अधिक टीवी सीरीज और ऑनलाइन सीरीज देखें जा रहें हैं
. दुनियाभर में टीवी सीरीज की धूम तो पहले से ही थी लेकिन भारत में पिछले कुछ वर्षों में इसमें अधिकता आई है.


ऑनलाइन स्ट्रीमिंग सर्विस जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन प्राइम, हॉटस्टार, ज़ी5 जैसे बड़ी कंपनियों ने अपने बेहतर कंटेंट रिलीज किए हैं जिन्हें लोगों ने खासकर युवावर्ग ने काफी पसंद किया है.


इसी सूची में एक मिनी सीरीज की चर्चा दुनियाभर में हुई है. विदेशों के साथ साथ भारत में भी इस मिनी सीरीज की चर्चा जोरों-शोरो से हुई थी. जियो सिनेमा पर प्रसारित होने वाली इस मिनी सीरीज का नाम है "चेर्नोबिल".


दरअसल 1986 के दशक में तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा यूक्रेन के चेर्नोबैल शहर में हुए परमाणु हादसे पर इस मिनी सीरीज को बनाया गया है. भारत में यह जियो सिनेमा पर उपलब्ध है.


बेहद उम्दा डायरेक्शन, अच्छी कहानी और शानदार म्यूजिक के साथ बनी यह मिनी सीरीज जरूर देखी जानी चाहिए.


क्या हुआ था चेर्नोबिल में ?


26 अप्रैल 1986 को यूक्रेन के चेर्नोबिल शहर में हुए परमाणु हादसे पर यह सीरीज बनी है. यह हादसा कितना खतरनाक था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हिरोशिमा-नागासाकी में हुए परमाणु हमले से 100 गुणा अधिक रेडियेशन फैला था.


तत्कालीन सोवियत कम्युनिस्ट सरकार की तरफ से आधिकारिक रूप से हादसे में 31 लोगों के मरने की बात कही गई थी. लेकिन वास्तविक रूप से इस हादसे में कुल कितने लोग मारे गए इसका आँकड़ा आज तक संदिग्ध स्थिति में ही है.

“कुछ रिपोर्ट के अनुसार मौतों का आँकड़ा 31-54 था. वहीं कुछ रिपोर्ट में 4000 से लेकर 2,50,000 लोगों के मरने की बात भी सामने आई है. ”


इस हादसे के प्रभाव को कम करने के लिए तत्कालीन समय में 30 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे, जो आज के समय के हिसाब से लगभग 68 बिलियन डॉलर के बराबर थे.


यह हादसा इतना भयंकर था कि 26 अप्रैल को न्यूक्लियर ब्लास्ट होने बाद 28 अप्रैल को चेर्नोबिल से 1000 किमी दूर स्वीडन के फोर्समार्क पॉवर प्लांट में रेडिएशन की मात्रा काफी बढ़ चुकी थी.


स्वीडन के अधिकारियों ने तत्कालीन सोवियत कम्युनिस्ट सरकार से जब इसके इस बारे में बात की तो सोवियत सरकार ने अपने देश में किसी भी तरह की दुर्घटना होने से इंकार कर दिया था.


इसका असर आज भी ऐसा है कि चेर्नोबिल के क्षेत्र में आज भी इतना रेडिएशन है कि वहाँ जाना किसी का भी प्रतिबंधित है.


चेर्नोबिल में इतना बड़ा परमाणु हादसा होने के बाद कम्युनिस्ट सरकार ने 2 दिन बाद तक भी शहर को खाली नहीं कराया था, बल्कि शहर को सीज कर दिया था. कुछ तस्वीरों के बाहर आने से आस-पास के 30 किमी के दायरे को खाली कराया गया.


दूसरे सीरीज या फ़िल्म से कैसे अलग है "चेर्नोबिल"


चेर्नोबिल की कहानी वास्तविक घटना पर आधारित एक मिनी सीरीज है. आज तक फिल्मों, साहित्य, टीवी सीरीज पर लगातार वामपंथ समर्थित कंटेंट देखने को मिलते थे.


लेकिन यह पहली बार है कि किसी वामपंथी शासन की पूरी पोल खोलते हुए और दुनिया को सच्चाई बताते हुए सिनेमा जगत से कोई कहानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन पाई है.


लोगों की राय क्या है इस सीरीज पर


चेर्नोबिल सीरीज पूरे विश्व में धूम मचा चुकी है. भारत में भी इस सीरीज को काफी पसंद किया गया है. लेकिन इसके विपरीत रूस के कम्युनिस्ट पार्टी ने इस मिनी सीरीज का विरोध किया था.


इसका मुख्य कारण यह था कि तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने चेर्नोबैल में हुए हादसे के बाद कभी सच दुनिया तक नहीं पहुँचने दिया. लाखों लोगों की मौत के बाद भी कम्युनिस्ट विचारधारा वाले लोगों ने अपने साहित्य, कला के क्षेत्र में इस बात का जिक्र भी नहीं किया.


“1986 में चेर्नोबिल हादसे के दौरान सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव रहे मिखाईल गोर्बाचेव ने इस सीरीज पर अपने विचार रखें थे. उन्होंने कहा था कि "चेर्नोबिल में हुआ हादसा ही सोवियत के विघटन की असली वजह है. यह न्यूक्लियर हादसा एक टूटी हुई और विकृत प्रणाली का परिणाम था जो अब और ज्यादा दिन नहीं चल सकती थी. चेर्नोबैल और उसका पतन एक ऐसे सिस्टम का उत्पाद था जो झूठ की विचारधारा के बुनियाद पर खड़ा था. कम्युनिस्ट सिस्टम, कम्युनिस्ट विचारधारा हमेशा अपने आप को लोगों की जान से आगे रखती है."”

 


रशियन दर्शनशास्त्री अलेक्जेंडर सिपको ने भी इस विषय पर एक गंभीर बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि "मानव जाति के इतिहास में कोई भी समाज किसी झूठी कल्पना का इतना ज्यादा ग़ुलाम नहीं हुआ होगा जितना हमारे लोग (रशियन) 20वीं सदी में थे. हमने सोचा कि सोवियत यूनियन में कम्युनिज्म की स्थापना करना हमारे लोगों के लिए सबसे भलाई का काम था, पर हम जानबूझकर हमारे खुद के ही आत्मविनाश में संलग्न थे."


चेर्नोबिल एक ऐसी कहानी है जिसे दुनिया के हर व्यक्ति तक पहुँचानी चाहिए. एक ऐसी घटना है जिसे छुपाने के लिए कम्युनिस्ट सरकार ने अपने सभी दांव-पेंच लगा दिए. ऐसा हादसा जिसके चलते लाखों जाने चली गईं और आने वाले समय में इससे प्रभावित लोग भी मारे जाएंगे. एक ऐसी विचारधारा जिसने दुनिया के एक हिस्से में आम लोगों की जिंदगियों को अपने सनक की बलि चढ़ा दिया.

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