सम्राट अशोक के विजय अभियान के बीच कलिंग स्वाधीन था। ये बात अशोक को खटकती थी और इसलिए उसे अपने अधीन करने के लिए सम्राट ने उसके ऊपर चढ़ाई कर दी। भयानक युद्ध हुआ , लाखों लोग या तो मार दिए गए या दिव्यांग होकर अभिशप्त जीने को विवश हुए।
इसी अशोक के वंश में बृहद्रथ नाम का राजा हुआ। इसके शासन काल में देमित्रिय नाम का एक यवन आक्रांता पाटलिपुत्र की ओर चढ़ दौड़ा।
पाटलिपुत्र की जनता भयाक्रांत थी तभी कलिंग के सम्राट खारवेल अपनी सेना लेकर इधर आ गए और देमित्रिय को दूर पश्चिम तक खदेड़ दिया।
उसके बाद वो पाटलिपुत्र आए और बृहद्रथ पर हमला कर दिए। संक्षिप्त युद्ध में ही बृहद्रथ पराजित हुए।
खारवेल ने उन्हें लताड़ते हुए जुर्माना वसूल किया और विजय के उपलक्ष्य में प्रतीक रुप में जिन मूर्ति को वापस कलिंग ले गया जिसे मौर्य सम्राट ने कलिंग से लूटा था।
इतना कर खारवेल आपस लौट गए। प्रतीक रुप में ये बता दिया कि कलिंग युद्ध का बदला ले लिया गया है।
यहां महत्वपूर्ण बात ये है कि कलिंग और पाटलिपुत्र लड़ रहे थे, लेकिन जनता में एक दूसरे के लिए शत्रु भाव नहीं था।
लड़ने वाले सम्राटों में एक- दूसरे की उपासना पद्धति या आराध्य को लेकर घृणा नहीं थी, इसीलिए बिहार में अवतरित भगवान महावीर और बुद्ध का धर्म उड़ीसा में पल्लवित होता रहा और मगध के लोग भी पवित्र 7 नगरियों में एक पुरी की तीर्थ यात्राएं करते रहे।
राजा भले एक दूसरे के प्रति भयंकर वैर पालते रहे पर जनता को "भारत भाव" जीने से नहीं रोका गया जो गंगा स्नान और तीर्थ दर्शन के कारण एकबद्ध था।
कलिंग नरेशों ने बिहार में अवतरित महावीर के शिष्यों के लिए उदयगिरी और खंडगिरी की पहाड़ियां समर्पित कर दी थी।
है दुनिया में किसी के पास ऐसी विशेषता ? है किसी के पास वैविध्य को एकात्म में बदलने वाला यह गुण ?
है किसी के पास ऐसी सुंदर एकबद्धता जो किसी भी कृत्रिम अलगाव से आजतक तोड़ा नहीं जा सका है?
इसी "हिंदू भाव" को इसी "भारत भाव" को जीना सीखिए। विविधता में एकात्मता भाव अपने आप पुष्ट होने लगेगा।