भारत में जनजातीय विषय

यूँ तो जनजाति शब्द बड़ा व्यापक शब्द है। भारत के प्रसिद्ध मानवशास्त्री एवं इतिहासकार डॉ. मजूमदार के अनुसार एक जनजाति, परिवारों अथवा परिवारों के समूहों का संग्रह है, जिसका एक सामान्य नाम होता है और जिसके सदस्य एक ही भू क्षेत्र में निवास करते हैं, एक भाषा बोलते हैं और विवाह, वृति या व्यवसाय के प्रति कुछ निषेधों का पालन करते हैं, तथा उनमें परस्पर आदान प्रदान एवं दायित्वों की पारस्परिकता की एक सुनिश्चित व्यवस्था होती हो। हालाँकि आज यह शब्द केवल वनवासी समुदाय तक ही समेट दिया गया है।

The Narrative World    10-Jun-2023   
Total Views |

Representative Image
आमुक्त गगन में फैली जिसकी गूंज है
,

हाथों में धनुष और माथे में माटी जिसका रौब है,

मातृभूमि का सबसे प्यारा लाल, जो जल जंगल जमीन का रखवाला है,

आदि काल से बसा यहां, यही तो महान जनजातीय समाज हैं


भारत, हिन्दुस्तान, इंडिया जैसे अनेक नामों से जानी जाने वाली यह घरा अपनी विशिष्ट संस्कृति व सामाजिक व्यवस्था के लिए विश्व विख्यात है। यहविश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है जो आज भी फल-फूल रही है, और प्राचीन काल से ही इसे वैशिष्ट्य प्रदान करने में यहाँ के वनवासी समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।


बलिदान और साहस की गाथा से अटे पड़े पृष्ठों में कई पृष्ठ ऐसे भी हैं, जो सिकंदर की विश्व विजय की कामना को कामना ही रहने देने में या फिर निकट अतीत में ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेने में अद्भुत शौर्य का परिचय देने वाले इन वनवासी बंधुओं को समर्पित है।


यह वही समुदाय है, जिन्होंने राक्षस राज रावण के विरुद्ध श्रीराम के नेतृत्व में युद्ध लड़ा था। कुल मिलाकर समूचे भारतीय इतिहास को गढ़ने में आरण्यक समाज की महत्वपूर्ण भूमिका की अपेक्षा संभव ही नहीं है।


यूँ तो जनजाति शब्द बड़ा व्यापक शब्द है। भारत के प्रसिद्ध मानवशास्त्री एवं इतिहासकार डॉ. मजूमदार के अनुसार एक जनजाति, परिवारों अथवा परिवारों के समूहों का संग्रह है, जिसका एक सामान्य नाम होता है और जिसके सदस्य एक ही भू क्षेत्र में निवास करते हैं, एक भाषा बोलते हैं और विवाह, वृति या व्यवसाय के प्रति कुछ निषेधों का पालन करते हैं, तथा उनमें परस्पर आदान प्रदान एवं दायित्वों की पारस्परिकता की एक सुनिश्चित व्यवस्था होती हो। हालाँकि आज यह शब्द केवल वनवासी समुदाय तक ही समेट दिया गया है।


भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों को स्पष्टया परिभाषित नहीं करता है। संविधान के अनुच्छेद 366 (25) के अनुसार "अनुसूचित जनजातियों से ऐसी जनजातियाँ या जनजाति समुदाय अथवा ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के भाग या उनमें के यूथ अभिप्रेत हैं, जिन्हें संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 342 के अधीन अनुसूचित जनजाति समझा जाता है।"


वहीं संविधान के अनुच्छेद 342 (1) के अनुसार "राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात लोक अधिसूचना के द्वारा उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजातीय समुदायों के भागो या उनमें के युथों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जनजातियों समझा जाएगा।"


इस तरह क्योंकि राष्ट्रपति द्वारा जारी अधिसूचना में सम्मिलित लगभग सभी जनजातियां वनवासी समुदाय से संबंधित है, अतः वनवासी समुदाय को ही जनजाति समुदाय मान लिया गया।

वर्तमान में भारत में भील, गोड, आंध खरवार, बोडो, कोल, मुण्डा खड़िया कोली सहरिया, संथाल बिरहोर पारधी, असुर, नायक भिलाला मीना, टाकणकार, भूमिज, उरांव, लोहरा जैसी कुछ प्रमुख जनजातियाँ वास कर रही हैं। ये जनजातियाँ मुख्य रूप से मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, उड़ीसा, राजस्थान, झारखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में निवास करती है। साथ ही बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश में भी इनकी संख्या है।


2011 की जनगणना के अनुसार यद्यपि अनुसूचित जनजातियाँ भारत की जनसंख्या का 8.6% है। इनमें से अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं, वहीं शहरी क्षेत्रों में भी इनकी आबादी मौजूद है। यह सच्चाई है कि जनजाति समुदाय पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे उनके सामाजिक, आर्थिक और भागीदारी संकेतकों में विकास किया जा सके।


जनजातियों की कुल जनसंख्या का महज 59% भाग ही शिक्षित है, यानी आज भी 41% जनसंख्या अशिक्षित हैं। वहीं अधिक मातृ और बाल मृत्यु दर हो, या कृषि सम्पदा या पेय जल और बिजली तक सीमित पहुंच हो, जनजाति समुदाय मुख्यधारा से बहुत पिछड़े हुए हैं। जनजाति आबादी की 52% जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे है, और चौंका देने वाली बात यह है कि 54% जनजातियों की आर्थिक सम्पदा, जैसे संचार और परिवहन तक कोई पहुंच ही नहीं है। कुछ प्रमुख जनजातीय समस्याओं के अंतर्गत विषय अग्रलिखित हैं-


1. भूमि से अलग होना


2. अशिक्षा


3. बंधक मजदूर


4. सांस्कृतिक आक्रमण


5. निर्धनता


6. माओवाद/वामपंथी अतिवाद


7. नशे की लत


8. प्राकृतिक आपदाएं


देश में जनजातीय विषय हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहा है और इसमें निहित समस्याओं एवं उनके समाधान के लिए शासन भी खूब प्रयत्नशील रहा है। जनजातियों की आज भी सबसे बड़ी समस्या आर्थिक पिछड़ापन है। इसका समाधान करने के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के साथ ही स्वरोजगार की सुविधाओं को बढ़ाना जरूरी है।


जनजाति समुदाय आज भी अपनी दस्तकारी और विभिन्न प्रकार की कलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। स्थानीय स्तर पर यदि इनके द्वारा बनायी गयी वस्तुओं को खरीदकर उनके विक्रय की समुचित व्यवस्था की जाये तो जनजातियों की आर्थिक समस्याओं को काफी हद तक सुलझाया जा सकता है।


कुछ समय पूर्व जनजातीय समुदाय को महत्व देते हुए प्रधानमंत्री द्वारा 15 नवंबर को जनजाति समाज में ईश्वर तुल्य पूजे जाने वाले क्रांतिवीर भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा सशक्त जनजातीय समुदाय को सम्मान प्रदान करने तथा उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक श्रेष्ठ उदाहरण है।


बीते वक्त में भारत में जनजातीय समुदाय के जल, जंगल और जमीन के प्रति अपार प्यार और श्रद्धा को देखते हुए उनके लिए पेसा अधिनियम, 1996 लाया गया जो उनको कानूनी रूप से अपने क्षेत्र को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता हैं।


इसके अलावा शिक्षा, रोजगार, कृषि, तकनीकी इत्यादि क्षेत्रों में भारत माता के इन प्यारे बेटों को सम्मिलित करने का प्रयास अब भी जारी हैं ताकि हमारा देश दिन दूनी और रात चौगीनी तरक्की कर सके।


हमारे प्रधानमन्त्री का भी यही मंतव्य है कि सबके साथ से ही सबका विकास संभव हो सकता है और स्वर्ग से भी सुंदर भारत देश की परिकल्पना साकार हो सकती हैं। तब हम और फर्क से बोल पाएंगे - सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा

लेख

Representative Image
मंजीत सिंह ठाकुर
यंगइंकर
लेखक, स्तंभकार