'रामायण' की छवि धूमिल करती आदिपुरुष

17 Jun 2023 13:04:04

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'आदिपुरुष', इस शब्द की गंभीरता को यदि समझा जाता तो हो सकता हैं, श्रीराम का चित्रण और भी श्रेष्ठ किया जा सकता था। जब फिल्म निर्माता श्रीराम को पर्दे पर अपने स्वरूप में ना उतार पाएं तो बाकी सभी चरित्रों की तो कल्पना करना भी कठिन हैं।


जी हां यहां बात हो रही हैं, आदिपुरुष फिल्म की जिसके माध्यम से इसके निर्माताओं ने रामायण और रामचरितमानस को आधुनिक स्वरूप में गढ़ने का एक घोर असफल प्रयास किया हैं।


फिल्म की कहानी की बात करने की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि रामायण के सभी प्रमुख प्रसंग और घटनाएं किसी ना किसी रूप में सभी ने सुनी हैं और पढ़ी भी हैं। रामायण और महाभारत, भारत के दो ऐसे महान ग्रंथ हैं।


इनेक प्रसंगों पर हजारों नहीं लाखों चित्रण किए जा सकतें हैं, फिर भी उनकी महत्वता कम नहीं होंगी। किंतु वास्तविकता को किनारे रखते हुए नयें आख्यानों को गढ़ने का कुण्ठित प्रयास उचित नहीं हैं।


और यही सभी कुछ आदिपुरुष मूवी में किया गया हैं। भगवान श्रीराम की जो छवि श्री रामायण एवं श्री रामचरितमानस में उल्लेखित हैं। उससे विपरीत छवि आदिपुरुष में दिखाई गयी हैं। जिसे स्वीकार कर पाना कठिन ही नहीं असंभव हैं।


रामायण से प्रेरित होकर कहानी गढ़ना और रामायण को अपने अनुसार गढ़ने में अंतर हैं। जो अंतर फिल्म के लेखक नहीं कर पाएं हैं। रामायण के चरित्रों के नामों का परिवर्तन भी सही नहीं हैं।


ऐसा लगता मानों फिल्म के लेखक ने अपने अनुसार एक नयी राम कथा लिखने का प्रयास किया हैं। जो कि मूल रामायण से बिल्कुल मेल नहीं खाती हैं।


आदिपुरुष में सबसे बड़ी कमजोरी हैं फिल्म के 'संवाद' सामान्य दर्शकों की समझ में आने वाले संवाद फिल्म में होना आवश्यक हैं, किंतु सड़क पर बोले जाने वाले शब्दों को संवाद में लिखा जाना एक लेखक की अल्पबुद्धि का परिचय देता हैं।


फिल्म में संवाद के माध्यम से चरित्रों के संबंधों को भी परिवर्तित करने का प्रयास किया गया हैं। जो कि मूल रामायण से भिन्न दिखाई पड़ता हैं। लॉकडाउन के समय भारत में परिवारों ने साथ बैठकर दूरदर्शन पर रामायण धारावाहिक देखा था और उस धारावाहिक में किया गया रामायण का चित्रण सभी के अंतर्मन में घर कर गया।


ऐसे में क्रिएटिव स्वतंत्रता के नाम पर मूल रामायण की छवि धूमिल करने का प्रयास किसी के लिए भी अनुचित और अक्षम्य हैं।


बॉलीवुड ने एक बार फिर यह साबित किया हैं कि भारतीय संस्कृति, परम्परा और कथा कहानियों को, जो कि भारत का शाश्वत इतिहास है, उसे नष्ट करने एवं परिवर्तित करने में लगातार अपने प्रयास करता रहा हैं।


फिल्म से जुड़े लेखक और निर्माता-निर्देशक का कहना है कि वर्तमान युवाओं को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया गया हैं। तो समाज की ओर प्रश्न यह जाना चाहिए कि हमें युवाओं को अपनी संस्कृति और परम्पराओं से परिचित करवाना चाहिए या फिर उनके सामने वर्तमान को ध्यान में रखते हुए इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना चाहिए। युवाओं को सत्यता का बोध कराना सही है किंतु उसकी आड़ में कुछ भी करना सर्वथा अनुचित हैं।


लेख

सनी राजपूत

अधिवक्ता, उज्जैन

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