अरनपुर माओवादी हमले पर बड़ा खुलासा - 10 जवान हुए थे बलिदान, नक्सलियों ने किया था नाबालिगों का उपयोग

सुरक्षा अधिकारियों को भी इस बात का अनुमान नहीं था कि माओवादी इस जगह पर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं। वहीं इस आतंकी हमले में बलिदान हुए सुरक्षाकर्मियों से जुड़ी जानकारियां जैसे-जैसे सामने आती गईं, वैसे ही सोशल मीडिया में माओवादियों के विरुद्ध आक्रोश बढ़ता गया, और माओवादियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की जाने लगी।

The Narrative World    20-Jun-2023   
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छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र
, जिसकी भूमि को माओवादी आतंकियों ने निर्दोष ग्रामीणों एवं सुरक्षाबलों के रक्त से लाल कर रखा है, वो हर पल कम्युनिस्ट आतंक के साएं में डूबा हुआ है। यह वही बस्तर की भूमि है जिसने वर्ष 2010 में देश का सबसे बड़ा माओवादी आतंकी हमला झेला था, जिसमें माँ भारती के 76 वीर सपूत बलिदान हो गए थे।


यह हमला सबसे बड़ा जरूर था, लेकिन ना ही पहला था और ना ही आखिरी। माओवादी आतंक तब से लेकर अब तक, कम जरूर हुआ है लेकिन समय-समय पर माओवादियों ने जिस प्रकार से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, उसने रूह को कंपा देने वाले मंजर दिखाएं हैं।


“ऐसी ही एक घटना हुई थी इस वर्ष के अप्रैल माह में, तारीख थी 26 और समय था सुबह के 11:00 बजे का। इस दिन सुरक्षाबल के जवान अपने अभियान के लिए निकले थे, इसी दौरान पहले से योजना बनाकर बैठे माओवादियों ने उनकी गाड़ी पर आईईडी विस्फोट कर हमला किया था।”


दंतेवाड़ा के अरनपुर क्षेत्र में हुए इस माओवादी आतंकी हमले में सुरक्षाबल के 10 जवान एवं 1 नागरिक वाहन चालक समेत कुल 11 लोगों की मौत हुई थी।


इस माओवादी आतंकी घटना के बाद एक बार पुनः सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर तरह-तरह की बहसें छिड़ गई, हालांकि समय बीतने के साथ ही इन चर्चाओं का भी वही हुआ जो पहले भी होता आया है, अंततः ये सभी चर्चाएं थम गईं।


पुलिस ने इस मामले की छानबीन तेजी से जारी रखी और इस घटना में शामिल लोगों को एक के बाद एक कर पकड़ा गया। लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि जिस स्थान पर इस हमले को माओवादियों ने अंजाम दिया था वह जिले के अरनपुर थाना एवं सीआरपीएफ कैंप से एक किलोमीटर से भी कम की दूरी पर स्थित था।


ऐसे में सुरक्षा अधिकारियों को भी इस बात का अनुमान नहीं था कि माओवादी इस जगह पर इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं। वहीं इस आतंकी हमले में बलिदान हुए सुरक्षाकर्मियों से जुड़ी जानकारियां जैसे-जैसे सामने आती गईं, वैसे ही सोशल मीडिया में माओवादियों के विरुद्ध आक्रोश बढ़ता गया, और माओवादियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की जाने लगी।


यदि वर्तमान समय की वस्तुस्थिति की बात करें तो अरनपुर में हुए इस माओवादी आतंकी हमले की जांच कर रहे डीएसपी कमलजीत पाटले ने एक मीडिया समूह से बात करते हुए इस बात की जानकारी दी कि इस मामले में अभी तक 28 लोगों को पुलिस ने धर दबोचा है।


वहीं इन गिरफ्तार लोगों में जो सबसे चौकाने वाली बात सामने आई है वह यह कि इनमें 4 आरोपी नाबालिग हैं। पुलिस के अनुसार आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है। हालांकि नाबालिगों का उपयोग ऐसे जघन्य आतंकी हमले में करने को लेकर भी कुछ जानकारियां सामने आई है।


एक निजी मीडिया समूह की रिपोर्ट के अनुसार घटना से पहले रेकी और घटना वाले दिन सुरक्षाकर्मियों की गाड़ी को धीमा करने के लिए 'चंदे की नाकेबंदी' में नाबालिगों को माओवादियों ने शामिल किया था।


रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि माओवादी आतंकी संगठन सीपीआई (माओवादी) की दरभा डिवीजन कक इकाई ने रेकी की योजनाओं को अंजाम दिया था। दंतेवाड़ा से अरनपुर के बीच 54 किलोमीटर की सड़क पर प्रत्येक 5 किलोमीटर में सीआरपीएफ का कैम्प स्थापित है।


इसीलिए माओवादियों ने सुरक्षाबलों के प्रत्येक मूवमेंट की रेकी की और संभवतः इसमें उन्होंने 2 महीने से अधिक का समय लिया। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि माओवादियों ने लगभग 2 माह पूर्व इस हमले की योजना बनाई थी, जिसके बाद इसे 26 अप्रैल को अंजाम दिया गया।


इस आतंकी हमले की घटना को पूरी तरह से जमीन पर उतारने के लिए माओवादियों ने अरनपुर पुलिस थाना के पीछे 4 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित पहाड़ी से लगे अचेली एवं पेड़का गांव में अपनी बैठकें और सभाएं ली। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान खूंखार माओवादी आतंकी राजे की उपस्थिति में पूरी योजना बनाई गया और उसी ने गांव में रुककर मिलिशिया सदस्यों की पूरी टीम को तैयार किया।


इस हमले से पहले माओवादियों की योजना को कुछ ऐसे भी समझा जा सकता है कि हमले से लगभग 4-6 दिन पूर्व माओवादी आतंकियों ने सड़क के किनारे ड्रिल कर 60 से 80 किलो विस्फोटक 4 फीट नीचे प्लांट किया।


इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए माओवादी संगठन में विस्फोटक बनाने और तकनीकी मामलों को जानने वाले आतंकी मोड़ा को जिम्मेदारी दी गई। मोड़ा ने ही मिलिशिया सदस्यों के साथ मिलकर विस्फोट की पूरी प्रक्रिया को जमीन पर उतारा।


जांच में यह भी पाया गया था कि माओवादियों को सुरंग बनाने में अधिक परिश्रम भी नहीं करना पड़ा क्योंकि सड़क पर केबल बिछाने के लिए पहले से ही गढ्ढा मौजूद था। इस पूरे आतंकी हमले की जांच में यह जानकारी सामने आई थी कि जिस वायर को बरामद किया गया था, वह तकरीबन 100 मीटर लंबा था।


हालांकि अभी फोरेंसिक रिपोर्ट नहीं आई है, इसीलिए इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकी है कि हमले के लिए किस विस्फोटक का उपयोग किया गया था। वहीं स्थानीय ग्रामीणों के बीच से चुने गए मिलिशिया सदस्यों एवं माओवादी आतंकी संगठन के फ्रंटल संगठन 'बाल संगम' के नाबालिग बच्चों का उपयोग माओवादियों ने घटना के दिन सुरक्षाबलों की गाड़ी को धीमा करने के लिए किया।


चंदे के लिए सामान्यतः ग्रामीण सड़क की नाकेबंदी करते हैं, लेकिन उस दिन केवल 700 मीटर के दायरे में ही 4 बार सुरक्षाबलों की गाड़ी को नाकेबंदी कर रोका गया, ताकि जब बारूदी सुरंग के ऊपर से गाड़ी गुजरने के वक्त उसकी रफ्तार धीमी रहे।


इस पूरी घटना की जांच को लेकर दंतेवाड़ा जिला पुलिस अधीक्षक गौरव राय का कहना है कि अभी गांव में जनमिलिशिया समिति और अन्य सहयोगी समूह के 28 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस घटना में शामिल खूंखार माओवादियों को पकड़ने का प्रयास किया जा रहा है।


वहीं इस घटना के बाद पुलिस मुख्यालय द्वारा यह आदेश जारी किया गया है कि दंतेवाड़ा समेत प्रदेश के सभी माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में 'रोड ओपनिंग पार्टी' के बिना सुरक्षाकर्मियों की टीम मूवमेंट नहीं करेगी।