भारतीय चंद्र अभियान की सफलता के साथ पूरे देश में उमंग आना स्वाभिक है। निसंदेह यह अद्भुत सफलता है इसके साथ 23 अगस्त उत्साह और उत्सव की तिथि बन गई है। लेकिन इसके सतर्क रहने की आवश्यकता है। विशेषकर भारत के अंतरिक्ष अभियान और उससे जुड़े वैज्ञानिकों का अतिरिक्त सुरक्षा प्रबंध भी आवश्यक हो गया है। इसका कारण अतीत की वे घटनाएँ हैं जो भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौतों से जुड़ीं हैं।
यह समय भारत केलिए अपार आनंद का समय है। भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने जो कर दिखाया है वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर सफलता पूर्वक पहुँचना साधारण नहीं था। भारत की इस सफलता के केवल एक सप्ताह पूर्व ही रूस को असफलता हाथ लगी थी। रूस के अभियान की असफलता ऐसे समय हुई थी जब भारतीय चन्द्रयान चन्द्रमा की कक्षा में प्रविष्ट हो रहा था। फिर भी भारतीय वैज्ञानिक विचलित नहीं हुये। उनका आत्मविश्वास इतना प्रबल था कि रूसी चन्द्रयान की दुर्घटना के बाद भी वे अपनी सफलता के प्रति आश्वस्त थे।
भारतीय वैज्ञानिकों की इस प्रतिभा और मेधा का पूरे विश्व ने लोहा माना। और इसी बात ने पूरे भारत देश और विशेष कर अंतरिक्ष अभियान से जुड़े समस्त वैज्ञानिकों की विशेष सावधानी एवं सुरक्षा का विषय महत्वपूर्ण बना दिया है। इसका कारण अतीत में घटीं वे घटनाएँ हैं जिनमें भारतीय वैज्ञानिकों को अपने प्राण गवांना पड़े थे।
यूँ तो ऐसी लगभग पचास से अधिक घटनाएँ हैं। फिर भी ग्यारह ऐसी बड़ी घटनाएँ हैं जिनकी ओर पूरे देश का ध्यान गया और उनमें देश के वरिष्ठ वैज्ञानिकों के प्राण गये। यदि हम समस्त घटनाओं को एक साथ मिलाकर देखेंगे तो लगेगा कि वे साधारण घटनाएँ नहीं थीं, उनके पीछे कोई ऐसा कारक अवश्य होगा जो सामने न आ सका। इन सभी घटनाएँ भारत के अंतरिक्ष और परमाणु विस्तार कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों के साथ घटीं हैं। जो वर्ष 2008 से 2013 के बीच घटीं।
यद्धपि 2014 के बाद भारत की प्राथमिकता में आया अंतरिक्ष अनुसंधान और बरतीं गईं सावधानियों से इन पर अंकुश तो लगा है। पर आशंकाओं को विराम नहीं लगा है। अब भारत की इस अद्भुत सफलता से भारत की प्रगति से ईर्ष्या रखने वाले तत्व फिर षड्यंत्र कर सकते हैं। इस आशंका को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। देश के उन परमाणु वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत को भुलाया नहीं जा सकता जो इन दुर्घटनाओं का शिकार बने।
कर्नाटक के कैगा एटॉमिक पावर स्टेशन के 47 वर्षीय वैज्ञानिक लोकनाथन महालिंगम की गणना विश्व स्तरीय परमाणु वैज्ञानिकों में होती थी। वे 8 जून 2009 की प्रातः अपने घर से घूमने निकले और फिर कभी वापस नहीं लौटे। सबेरे टहलने निकलना उनकी नियमित दिनचर्या थी। लेकिन उस दिन न लौटे। पांच दिन बाद उनका शव नदी से बरामद हुआ। बताते हैं कि लोकनाथन देश की सबसे संवेदनशील परमाणु सूचनाएं रखते थे। उनकी मृत्यु का रहस्य कभी उजागर न हो सका।
दूसरे बड़े वैज्ञानिक भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में अनुसंधान कार्य कर रहे एम पद्मनाभन अय्यर थे। वे 23 फरवरी 2010 को मुंबई के ब्रीच कैंडी में उनके घर में मृत पाये गये। 48 वर्षीय श्री अय्यर पूर्ण स्वस्थ थे। पर अकस्मात उनकी मृत्यु क्यों हुई ? कैसे हुई इसका कोई सुराग अब तक न लगा। फोरेंसिक जांच में मृत्यु को संदिग्ध तो माना गया परकोई स्पष्ट कारण सामने न आ सका।
इस घटना को आत्म हत्या माना गया। जबकि वे इतने हँसमुख स्वभाव के थे कि आत्महत्या कर ही नहीं सकते थे। उनकी आत्महत्या करने के प्रचारित तर्क पर किसी को विश्वास न हुआ । जांच चली और 2012 में आत्म हत्या मानकर ही मामले की फाइल बंद कर दी गई।
भारत के दो बड़े वैज्ञानिक केके जोशी और अभीश शिवम भी एक बड़ी संदिग्ध दुर्घटना के शिकार हुये। ये वैज्ञानिक द्वय भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत के संचालन से संबंधित थे और किसी महत्वपूर्ण संवेदनशील प्रोजेक्ट्स से जुड़े हुए थे। अक्टूबर 2013 में विशाखापत्तनम नौसैनिक यार्ड के पास पेंडुरुती में उनका शव रेलवे लाइन पर पड़ा मिला। दोनों के शव बुरी तरह क्षतिग्रस्त थे। पुलिस जाँच में यह तथ्य भी सामने आया कि जो समय इनकी मृत्यु के लिये अनुमानित किया गया, उस समय वहां से कोई ट्रेन नहीं गुजरी थी।
केके जोशी 34 वर्ष के और अभीश शिवम 33 वर्ष के थे। दोनों युवा और प्रतिभावान थे। पुलिस की जांच में इनकी मौत का कोई सुराग नहीं लग सका। आश्चर्यजनक यह भी है कि इतने महत्वपूर्ण कार्य से जुड़े इन दोनों युवा वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत की जांच कभी किसी बड़ी एजेंसी से नहीं कराई गई। अंततः रेल दुर्घटना मानक कर यह फाइल भी बंद हो गई।
ऐसी ही एक हैरान देने वाली दुर्घटना के शिकार दो वैज्ञानिक वैज्ञानिक उमंग सिंह और पार्थ प्रतिम हुये । वे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के रेडिएशन एंड फोटोकेमिस्ट्री लैब से जुड़े थे। दोनों के प्राण एक रहस्यमय अग्निकाँड में गये । जांच में आग लगने का कोई स्पष्ट कारण सामने न आ सका। इस अग्नि दुर्घटना और इसके शिकार हुये दोनों वैज्ञानिकों की मौत को भी संदिग्ध ही माना गया।
वैज्ञानिक उमंग मुंबई के रहने वाले थे, और पार्थ बंगाल के। इस लैब में कुल 5 वैज्ञानिक काम करते थे । उस दिन अन्य तीन अन्य वैज्ञानिक अवकाश पर थे। लैब में ये दोनों ही थे। उमंग और पार्थ परमाणु रिएक्टरों से जुड़े एक अति संवेदनशील विषय पर शोध कर रहे थे। आग कुछ ऐसी थी कि लैब का फायर कंट्रोल सिस्टम काम न कर सका और आग बुझाने में फायर ब्रिगेड को आने में 45 मिनट लगे थे । तब तक दोनों वैज्ञानिकों के शव पूरी तरह राख बन चुके थे।
एक वैज्ञानिक मोहम्मद मुस्तफा की कथित आत्म हत्या पर भी रहस्य का परदा कभी न उठ सका। वे कलपक्कम के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च में साइंटिफिक असिस्टेंट थे। उनका शव उनके सरकारी आवास में मिला । चौबीस वर्षीय मोहम्मद मुस्तफा तमिलनाडु के कांचीपुरम के रहने वाले थे।
पुलिस रिपोर्ट के अनुसार किसी धारदार हथियार से उनके हाथ की नस काटी गई थी। एक डेथ नोट तो मिला, पर उसमें आत्महत्या के कारणों का कोई खुलासा नहीं था।
ऐसी ही संदिग्ध मृत्यु का शिकार हुईं सत्ताइस वर्षीय महिला युवा वैज्ञानिक तीतस पाल हुईं। वे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम करतीं थीं। 3 मार्च 2010 को उनका शव ट्रांबे कैंपस में चौदहवीं मंजिल पर स्थित फ्लैट के वेंटिलेटर पर लटकता हुआ पाया गया। प्रथम दृष्टया यह मामला भी आत्महत्या का माना गया । तीतस पाल उसी दिन अपने घर से मुंबई पहुंची थी और सुबह समय पर अपने ऑफिस भी। वे ऑफिस में सामान्य रहीं। लेकिन फ्लेट पर लौटी तो प्राणांत। इस घटना को आत्महत्या मानकर जाँच शुरु हुई। अंततः आत्महत्या मानकर ही फाइल बंद हो गई।
ऐसी ही संदिग्ध आत्म हत्या भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम कर चुकीं वैज्ञानिक उमाराव की थी। वे 30 अप्रैल 2011 को अपने घर में मृत पाई गई थीं। पुलिस जांच में बताया गया कि वो बीमार थीं और बीमारी के कारण डिप्रेशन में आ गईं थीं। जबकि उनके परिवार, पड़ोसियों और साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना था कि उमा राव में डिप्रेशन के कोई लक्षण नहीं थे। वे बहुत हँसमुख थीं । अंततः इस प्रकरण की जांच भी आत्महत्या मानकर बंद कर दी गई।
संदिग्ध आत्महत्या का एक प्रकरण कोलकाता के साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स की सीनियर रिसर्चर डालिया नायक का भी है। यह अगस्त 2009 की घटना है । पैंतीस वर्षीय वैज्ञानिक डालिया नायक की आत्म हत्या आज भी रहस्यमय बनी हुई है। उनके परिवारजनों और उनके साथी वैज्ञानिकों के अनुसार डालिया नायक के पास आत्म हत्या का कोई कारण था। उनके साथ काम करने वाले महिला स्टाॅफ ने घटना की सीबीआई जांच की मांग भी की थी। लेकिन न हो सकी और प्रकरण बंद हो गया।
वैज्ञानिक तिरुमला प्रसाद की भी यही कहानी है। वे इंदौर के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में साइंटिस्ट थे। उन्होंने अप्रैल 2010 में आत्म हत्या कर ली। पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने अपने एक वरिष्ठ पर मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया था। संबंधित वरिष्ठ के विरुद्ध प्रकरण भी दर्ज हुआ, लेकिन कुछ दिन बाद मामला ठंडा हो गया। तिरुमला प्रसाद महत्वपूर्ण न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। इसका उत्तर कभी किसी को न मिला कि प्रताड़ना क्यों थी और किस तरह की थी?
2009 में कैगा न्यूक्लियर प्लांट में पीने के पानी के कूलर में ट्रिटियम नाम का रेडियोएक्टिव पदार्थ पाया गया था। जांच में यह बात सामने आई कि किसी अंदरूनी आदमी ने ही इसे मिलाया था ताकि यहां से पानी पीने वालों की मौत हो सके। यदि यह षड्यंत्र सफल हो जाता तो रिएक्टर के कई कर्मचारी और वैज्ञानिक न बचते। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर भी न मिल सका कि वाटर कूलर में यह विषाक्त पदार्थ कैसे आया।
इन में से कुछ घटनाओं में फिंगर प्रिंट तक नहीं मिले। और न कोई ऐसे सुराग मिले जिससे पुलिस को अपनी जाँच में दिशा मिलती। इसलिए भले आरंभ में पुलिस ने इन घटनाओं को संदिग्ध माना किन्तु बाद में कुछ को दुर्घटना और कुछ को आत्महत्या मानकर कर प्रकरणों पर विराम लगा दिया।
हो सकता है इन घटनाओं में पुलिस का अंतिम निष्कर्ष ही सही हो पर परमाणु कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों और उनके सहयोगियों के इस प्रकार दुर्घटनाओं का शिकार होना अथवा आत्महत्या करना आश्चर्यजनक तो है ही और अनेक प्रश्न पैदा करता है। इन प्रश्नों और भारत की प्रगति से ईर्ष्या करने वाले तत्वों द्वारा भारत को अशांत करने की कारगुजारियों को ध्यान में रखकर अब अतिरिक्त सतर्कता, सावधानी और सुरक्षा प्रबंध आवश्यक हो गये हैं।
लेख
रमेश शर्मा