ब्रह्माण्ड के प्रथम अभियंता और वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा

अपराजितपृच्छा में अपराजित के गूढ़ प्रश्नों के विश्वकर्मा द्वारा दिये उत्तर और समाधान के साढ़े सात हजार श्लोक संकलित किए गए थे परंतु अब केवल 239 सूत्र ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ से भी पता चलता है कि विश्वकर्मा के तीन अन्य पुत्र क्रमश: जय, विजय और सिद्धार्थ भी थे, जो उच्चकोटि के वास्तुविद् थे।

The Narrative World    17-Sep-2023   
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सनातन धर्म शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के पाँच अवतार वर्णित हैं। ब्रह्मा के पुत्र अंगीरा ऋषि की सुपुत्री भुवना ब्रम्हवादिनी के सुपुत्र भगवान् विश्वकर्मा के रुप में सर्वश्रुत हैं। भगवान् विश्वकर्मा देवों के आदि अभियंता हैं।


सनातन धर्म में प्रचलित एक और अवतार कथा में भगवान् विश्वकर्मा ब्रह्मा के सातवें पुत्र के रूप में पूज्य हैं। भगवान् विश्वकर्मा को सृष्टि के निर्माण की रूपरेखा व आकार देने वाले शिल्पकार और ब्रह्मांड के प्रथम अभियंता व यंत्रों के देवता के रुप में माना जाता है। विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को देवताओं के वर्धकी अर्थात् काष्ठशिल्पी होने का वर्णन मिलता है।


भगवान् विश्वकर्मा के अवतरण का एक प्रसंग और मिलता है कि जब सृष्टि के आरंभ में सर्वप्रथम भगवान विष्णु क्षीरसागर में जब शेष-शैया पर प्रकट हुए तो उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा दृश्यमान हुए। ब्रह्मा के पुत्र धर्म तथा धर्म से पुत्र वास्तुदेव उत्पन्न हुए।


उन्हीं वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा का अवतरण हुआ। पिता की ही भाँति पुत्र विश्वकर्मा वास्तुकला के अद्भुत एवं अद्वितीय आचार्य, आदि अभियंता आदि विशेषणों से विभूषित हैं।


वस्तुतः हिन्दू धर्म ग्रन्थों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों या अवतारों का वर्णन है। प्रथम - विराट विश्वकर्मा- इन्हें सृष्टि को रुप और आकार देने वाला कहा गया है। द्वितीय - धर्मवंशी विश्वकर्मा - ये महान् शिल्पज्ञ, विज्ञान-विधाता प्रभात के पुत्र हैं। तृतीय - अंगिरा वंशी विश्वकर्मा- विज्ञान व्याख्याता वसु के पुत्र। चतुर्थ - सुधन्वा विश्वकर्मा - महान् शिल्पाचार्य ऋषि अथवी के पुत्र हैं। पंचम - भृगुवंशी विश्वकर्मा- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानी शुक्राचार्य के पौत्र के रूप में शिरोधार्य हैं।


भगवान् विश्वकर्मा के पांच पुत्र क्रमश: मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ बताए गए हैं। मनु लौह-कर्म के अधिष्ठाता थे। मय कुशल काष्ठ शिल्पी थे।त्वष्टा और उनके वंशज कांसा व तांबा धातु के अन्वेषक थे। शिल्पी और उनके वंशज मूर्तिकला के जनक हैं। दैवज्ञ और उनके वंशज सोने-चांदी का काम करने वाले स्वर्णकार के रुप में प्रतिष्ठित हैं।


वैदिक देवता विश्वकर्मा ही जगत् के सूत्रधार कहलाते हैं- "दैवौ सौ सूत्रधार: जगदखिल हित ध्यायते सर्व सत्वै।" विश्वकर्माप्रकाश , जिसे वास्तुतंत्र भी कहा जाता है, इसमें मानव एवं देववास्तु विद्या को गणित के अनेक सूत्रों के साथ बताया गया है।

अपराजितपृच्छा में अपराजित के गूढ़ प्रश्नों के विश्वकर्मा द्वारा दिये उत्तर और समाधान के साढ़े सात हजार श्लोक संकलित किए गए थे परंतु अब केवल 239 सूत्र ही उपलब्ध हैं। इस ग्रंथ से भी पता चलता है कि विश्वकर्मा के तीन अन्य पुत्र क्रमश: जय, विजय और सिद्धार्थ भी थे, जो उच्चकोटि के वास्तुविद् थे।


भगवान् विश्वकर्मा आध्यात्मिक और भौतिक शक्ति के जानकार हैं। देवीय स्थिति, पंचतत्व , दस दिशायें, विद्युत चुंबकीय बल, गुरुत्व बल, सौर ऊर्जा, ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति के ज्ञाता हैं। सतयुग में स्वर्ग लोक इन्द्रलोक, भगवान् शिव के त्रिशूल का निर्माण,भगवान् विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण, यमराज के कालदंड का निर्माण और भूलोक का निर्माण, त्रेतायुग में पुष्पक विमान और लंका का निर्माण, इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि भगवान् विश्वकर्मा ने ही बताया था कि लंका का वास्तु बिगाड़ना होगा तभी नाश होगा इसलिए हनुमान जी ने लंका दहन किया।द्वापर में द्वारिका हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ और सुदामापुरी, इस युग में जगन्नाथ मंदिर और मूर्तियां तथा विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय "तक्षशिला" विश्वविद्यालय का निर्माण किया था। भगवान् विश्वकर्मा ने महर्षि दधीचि की अस्थियों से विभिन्न शस्त्रों के साथ माँ दुर्गा के भी सभी शस्त्रों का निर्माण किया था।


भगवान् विश्वकर्मा के अवतरण दिवस को श्रमिक दिवस, अभियंता दिवस, वास्तु दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। भाद्रपद कन्या संक्रांति तदनुसार 17 सितंबर को प्रतिवर्ष शिल्पकारों बुनकरों, अभियंताओं वास्तुकारों सहित सभी वर्गों के लोग भगवान् विश्वकर्मा की पूजा अर्चना करते हैं। कल -कारखानों तथा हर प्रकार उद्योगों में भगवान् विश्वकर्मा के साथ उपकरणों की भी विधिवत् पूजा होती है।एतदर्थ भगवान् विश्वकर्मा को हिन्दू धर्म में निर्माण और सृजन के देवता के साथ ब्रम्हांड के प्रथम अभियंता तथा वास्तुकार के रुप में शिरोधार्य किया गया है।


लेख


डॉ.आनंद सिंह राणा

विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग

श्रीजानकीरमण महाविद्यालय जबलपुर