माओवादी आतंकी संगठन का स्थापना सप्ताह - क्या है इस कम्युनिस्ट आतंकी पार्टी का इतिहास ?

वर्ष 2004, तारीख 21 सितंबर, जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), पीपल्स वॉर ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का विलय किया गया और इस विलय से एक कम्युनिस्ट आतंकी संगठन की स्थापना की गई, जिसे नाम दिया गया भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)।

The Narrative World    21-Sep-2023   
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वर्ष
2004, तारीख 21 सितंबर, जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी), पीपल्स वॉर ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का विलय किया गया और इस विलय से एक कम्युनिस्ट आतंकी संगठन की स्थापना की गई, जिसे नाम दिया गया, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)


यही वो दौर था जब माओवादी आतंक का विस्तार जंगलों से निकलकर शहरों की ओर और अधिक तेज़ी से आया। यहीं से माओवादियों के द्वारा अपने शहरी मायाजाल की व्यापक रूपरेखा तैयार की गई।


21 सितंबर से एक सप्ताह तक माओवादी अपने प्रभावित क्षेत्रों में 'नक्सल स्थापना सप्ताह' मनाते हैं, इस वर्ष भी माओवादी अपना स्थापना सप्ताह मना रहे हैं। दरअसल नक्सलवाद-माओवाद की शुरुआत 2004 से नहीं हुई थी, यह तो उससे दशकों पहले से ही अपने आतंक को फैलाने में लगा हुआ था।


निर्दोष ग्रामीणों की हत्याएं, सैन्य बलों के बलिदान, अरबों रुपये की संपत्तियों का नुकसान और जनजातियों के जीवन को नर्क बनाने के पीछे इसी माओवादी हिंसा का हाथ रहा है। इस माओवादी हिंसा को समझने के लिए हमे इसके पूरे इतिहास को समझना होगा।


इस पूरे माओवादी आतंक की कहानी शुरू होती है 1960 के दशक से, जब पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से लगभग 25 किलोमीटर दूर नक्सलबाड़ी नामक क्षेत्र में कानू सान्याल नामक व्यक्ति ने पहले बंगाल कांग्रेस के सदस्य ईश्वर तिर्की के घर पर हमला किया और फिर एक जमींदार नगेन राय चौधरी की कानू सान्याल के आदेश पर हत्या की गई।


इस हत्या को जंगल संथाल नामक व्यक्ति ने अंजाम दिया था, जिसे बाद में माओवादी आतंकी संगठन में सर कलम करने वाला कहा जाता था।


इस आतंकी वारदात के बाद जब प्रदेश सरकार ने हत्या की जांच शुरू करवाई तो जांच करने पहुंची पुलिस बल पर भी हमला किया गया, जिसमें एक इंस्पेक्टर की हत्या की गई। यह घटना 24 मई, 1967 को घटित हुई थी।


इसके ठीक अगले दिन 25 मई को पुलिस दल एक बार फिर जांच करने पहुंचा जिसके बाद उन पर दोबारा हमला किया गया। पुलिस ने इस बार जवाबी कार्यवाई की, जिसमें 9 माओवादी आतंकी महिलाओं की मौत हुई।


इस घटना के बाद माओवादियों ने सांत्वना की आड़ में ग्रामीणों को एकत्रित करना आरंभ किया। स्थानीय जनजातियों को मोहरा बनाया गया, उन्हें तथाकथित क्रांति की झूठी उम्मीदें दिखाई गईं और फिर शुरू हुआ हिंसक घटनाओं का सिलसिला।


धीरे-धीरे यह हिंसक संघर्ष बंगाल से निकलकर बिहार और उत्तर प्रदेश होते हुए मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र पहुंचा। इसके अलावा केरल में अजित जैसे माओवादी विचार के लोगों ने पुलिस पर हमला कर अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया।


इन्हीं छोटी-बड़ी माओवादी आतंकी गतिविधियों अपना दायरा बढ़ाने का कार्य किया जिसमें उन्हें चीन और पाकिस्तान से परस्पर सहयोग मिलता रहा।


चीन और भारतीय माओवादियों का कनेक्शन भी पुराना है। दरअसल इन्हें माओवादी इसीलिए कहा जाता है क्योंकि ये आतंकी चीनी कम्युनिस्ट तानाशाह माओ ज़ेडोंग के अनुयायी हैं।


दरअसल कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य चारु मजूमदार और नक्सलबाड़ी से माओवादी हिंसा की शुरुआत करने वाले क़ानू सान्याल की मुलाकात जेल में हुई थी।


इसके बाद 1965 में मजूमदार ने माओ ज़ेडोंग को अपना आदर्श मानते हुए भारत सरकार के विरुद्ध जंग छेड़ने की बात की थी। यही क़ानू सान्याल और चारु मजूमदार बाद में माओवादियों के नेतृत्वकर्ता बने, और इन्होंने ने ही तथाकथित सशस्त्र विद्रोह की नींव रखी।


1968 में माओवादी आतंकी नेतृत्वकर्ताओं ने चीन का दौरा किया और वहीं से भारत को अस्थिर करने, गृहयुद्ध छेड़ने और राष्ट्र को खंडित करने की योजना बनाई गई।


इसके बाद 1969 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का गठन किया गया, जिसमें सशस्त्र विद्रोह की बात की गई। इसके बाद नए संगठन बनते गए।


रेड स्टार सीपीआई एमएल, पीसीसी, सीपीआई एमएल न्यू डेमोक्रेसी के नाम से संगठन बने। वहीं सीपीआईएमएल पीपल्स वॉर ग्रुप आंध्र एवं दंडकारण्य क्षेत्र में सक्रिय रहा, साथ ही माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर पहले बिहार एवं तत्पश्चात बंगाल में सक्रिय हुआ।


इसके बाद वर्ष 2004 के 21 सितंबर को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर, सीपीआईएमएल और पीपल्स वॉर ग्रुप के विलय के साथ वर्तमान में सक्रिय माओवादी आतंकी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन किया गया।


विश्व का 6वां सबसे खतरनाक आतंकी संगठन


भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) भारत में एक प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन है। इसके सभी फ्रंटल संगठन भी प्रतिबंधित हैं, इनके विरुद्ध विभिन्न मामलों में अपराध दर्ज है।


अमेरिका स्थित एक शोध केंद्र एवं अमेरिकी विदेश विभाग जारी एक रिपोर्ट में माओवादी संगठन को विश्व का छठवां सर्वाधिक खतरनाक आतंकी संगठन कहा गया था।


वर्ष 2019 में सामने आई इस अमेरिकी रिपोर्ट में कुछ आंकड़ें दिए गए गए थे जिसके अनुसार वर्ष 2018 में माओवादी आतंकियों ने 176 आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था, जो भारत में हुए कुल हिंसक घटनाओं का 26 प्रतिशत था। अमेरिकी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी इस रिपोर्ट में शीर्ष के 6 संगठनों में 4 इस्लामिक एवं दो कम्युनिस्ट विचार के संगठन शामिल थे।


जनजातियों का करते हैं शोषण, महिलाओं से करते हैं दुराचार


वर्ष 2004 में जब माओवादी आतंकियों ने सीपीआई (माओवादी) गठन किया, तब उन्होंने ग्रामीणों, वंचितों, दलितों, किसानों, जनजातियों को लेकर तमाम तरह के दावे किए।


माओवादियों ने अपनी हिंसा को सही ठहराने के लिए जनजाति ग्रामीणों को अपनी ढाल बनाया और खुद को उनका मसीहा कहने लगे। लेकिन सच्चाई यही है कि जनजातियों का यदि किसी ने सर्वाधिक शोषण किया है तो वह माओवादी-नक्सली ही हैं।


जबरन जनजाति बच्चों को उठाकर ले जाना, उन्हें अपने संगठन में शामिल करना, उनके घरों से राशन लेना, ग्रामीणों को धमकाकर रखना, जनजाति बच्चों के विद्यालयों को नुकसान पहुंचाना और तो और यदि किसी ने मुख्यधारा से जुड़ने का प्रयास किया तो उसकी हत्या तक कर देना।


यही माओवादियों की शैली रही है और माओवादियों ने इसी भय के वातारण के साथ जनजातियों का शोषण किया है। जनजाति समाज के विकास में जो सबसे बड़ी बाधा है, वह नक्सल संगठन ही है।


इसके अलावा महिला समानता की बात करने वाले माओवादी अपने संगठन के भीतर ही रहने वाली महिलाओं के साथ दुराचार करते हैं। कई महिला माओवादियों ने सरेंडर करने के बाद बताया है कि कैसे माओवादी आतंकियों के द्वारा उनका शारीरिक शोषण किया जाता था।


इसके अलावा यह भी बताया गया कि माओवादी आतंकी संगठन में बड़े माओवादी आतंकी नेताओं के द्वारा महिला कैडर के साथ दुष्कर्म की घटनाओं को भी अंजाम दिया गया है।


इनमें मुख्य रूप से तेलगु भाषी माओवादियों के द्वारा दंडकारण्य की जनजाति महिलाओं के साथ दुराचार एवं दुर्व्यवहार की जानकारी सामने आ चुकी है। माओवादी छोटी बच्चियों को जबरन उनके घरों से उठाकर ले जाते हैं, और फिर उन्हें अपनी जागीर समझकर उनके साथ दुराचार करते हैं।


माओवादियों का शहरी स्वरूप


2004 में नए संगठन के गठन का मुख्य उद्देश्य ही यही था कि माओवादी आतंकी अपने संगठन एवं अपने विचार का विस्तार शहरों की ओर करना चाहते थे। कर्मचारी वर्ग, मध्यम वर्ग, महिलाएं, अल्पसंख्यक, दलित समाज एवं किसानों और श्रमिकों को एकत्रित करना उनकी प्रमुख योजना थी।


इसके अलावा माओवादियों ने पत्रकार, लेखक, साहित्यकार जैसे बुद्धिजीवी वर्ग को भी अपने साथ लेने की योजना बनाई, जिसमें उन्होंने वामपंथी विचारधारा के लोगों को पहले चुना और उन्हें अपने हिंसक घटनाओं का बचाव करने की तकनीक सिखाई।


यही कारण है कि जब नक्सल-माओवादी आतंकी घटनाओं की बात होती थी तो इसपर कड़ी टिप्पणी करने के बजाय सुरक्षाबलों पर ही उकसावे एवं अन्य गतिविधियों के आरोप लगा दिए जाते थे।


माओवादियों के शहरी स्वरूप व्यापक स्तर पर उजागर वर्ष 2018 में हुआ जब भीमा कोरेगांव मामले को लेकर देशभर के विभिन्न स्थानों से शहरी माओवादियों की गिरफ्तारी की गई।


इन गिरफ्तारियों के बाद तो जैसे माओवादियों ने पूरे नेक्सस का ही खुलासा होने लगा और आम जनता तक इनकी सच्चाई सामने आने लगी।


वर्तमान में यह माओवादी आतंकी संगठन अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है, लेकिन बावजूद इसके कुछ स्थानों में माओवादियों की पकड़ अभी भी मजबूत है। माओवादी हिंसा भी लगातार देखने को मिलती है और माओवादियों का आतंक अभी भी खत्म नहीं हुआ है।


केंद्र सरकार ने माओवादियों के विरुद्ध सख्त रवैया तो अपनाया हुआ है लेकिन माओवादियों की पैठ ग्रामीण समाज में इतने भीतर तक घुसी हुई है कि इसे निकालना आसान नहीं है।


हालांकि प्रभावित क्षेत्रों में लगातार विकास कार्य किये जा रहे हैं, और ऐसी संभावना है कि माओवादी नक्सलबाड़ी से शुरू किए अपने सशस्त्र विद्रोह का 6 दशक पूरा नहीं देख पाएंगे।