श्रीकृष्ण का अद्भुत शत्रुबोध

कालयवन ने जब आक्रमण किया तो उसका वध करने के लिए उन्होंने अपनी सेना का बलिदान देना व्यर्थ समझा, कालयवन को अकेले युद्ध का निमंत्रण दिया और जब कालयवन ने उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया तो रणक्षेत्र से कन्हैया भागने लगे जिस कारण उन्हें "रणछोड़" की उपाधि भी मिली, लेकिन उनके लिए अपनी निंदाओ का देशकार्य के समक्ष कोई महत्व नहीं था।

The Narrative World    07-Sep-2023   
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जीवन के समर में चार बातों का ज्ञान अनिवार्य है, पहला आत्मबोध (स्वयं के बारे में जानकारी), दूसरा शत्रुबोध (शत्रु के बारे में सम्पूर्ण जानकारी), तीसरा युद्धस्थल का ज्ञान और चौथा व्यूह रचना अथवा योजना।


मधुसूदन श्रीकृष्ण, इन चारों विषयों के अद्भुत ज्ञाता थे किंतु उनके शत्रुबोध ने मुझे सबसे अधिक आकर्षित किया। वे अवतार होकर भी मनुष्य रूप में थे तो उन्होंने कितना अधिक अपने शत्रुओं के बारे में अध्ययन किया होगा? उनकी "Monitoring Team" कितनी सशक्त रही होगी? उन्होंने अधिकांश शत्रुओं को बिना लड़े पराजित किया, महाभारत के युद्ध में केवल सारथी की भूमिका में रहें, किंतु उन्हें रणक्षेत्र के अंदर और बाहर के प्रत्येक व्यक्ति का इतिहास और वर्तमान पता था और कौरव सेना के प्रत्येक सेनापति के वध में उनके "शत्रुबोध" की भूमिका रहीं।


भीम भैया, जीवनपर्यंत जरासंध से मल्लयुद्ध करतें रहते, फिर भी वे जरासंध का वध नहीं कर पाते थे, क्योंकि उन्हें जरांसध के जन्म से जुड़ी कथा नहीं पता थी। श्रीकृष्ण को पता थी, इसलिए वे दर्शक दीर्घा में बैठकर ही पत्ते को चीरकर, भीम भैया को जरासंध वध की युक्ति बता देते है।


कालयवन ने जब आक्रमण किया तो उसका वध करने के लिए उन्होंने अपनी सेना का बलिदान देना व्यर्थ समझा, कालयवन को अकेले युद्ध का निमंत्रण दिया और जब कालयवन ने उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया तो रणक्षेत्र से कन्हैया भागने लगे जिस कारण उन्हें "रणछोड़" की उपाधि भी मिली, लेकिन उनके लिए अपनी निंदाओ का देशकार्य के समक्ष कोई महत्व नहीं था।


उन्हे पता था कि आगे गुफा में राजा मचुकंद सो रहे हैं और उन्हें देवेंद्र का वरदान प्राप्त है कि उनकी नींद में कोई विघ्न उत्पन्न करेगा और वे जागेंगे तो पहली दृष्टि जिस व्यक्ति पर पड़ेगी वह वहीं भस्मीभूत हो जायेगा। श्रीकृष्ण ने गुफा में प्रवेश कर अपना दुशाला सोए हुए मचुकंद पर डाल दिया और स्वयं पास में ही छिप गए। कालयवन को लगा यह कृष्ण ही है और यह सोचकर उसने मचुकंद की निद्रा में विघ्न डाला, मचुकंद जागे और उनकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन, काल में समा गया।


महाभारत के युद्ध में भीष्म से लेकर दुर्योधन तक कौरव सेना के सभी सेनापति - महारथी का वध इसलिए हो पाया, क्योंकि श्रीकृष्ण सभी का इतिहास ,शक्ति और दुर्बलता सबकुछ जानते थे।


पहले सेनापति पितामह भीष्म को कोई सैन्य-शक्ति निष्क्रिय नहीं कर सकती थी, क्योंकि उन्हें ईच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। किंतु श्रीकृष्ण भीष्म का अतीत जानते थे। वे अम्बा के स्वयंवर और भीष्म से प्रतिशोध की कथा जानते थे, वे यह भी जानते थे कि अम्बा ही शिखंडी है, भीष्म उसे स्त्री ही मानते है, इसलिए भीष्म उसके सामने शस्त्र नहीं उठाएंगे और फिर शिखंडी की सहायता से अर्जुन द्वारा अपने पितामह के बाणों की शय्या तैयार करवाते है।


दूसरे सेनापति द्रोणाचार्य की दुर्बलता उनका पुत्र अश्वत्थामा था और इसी दुर्बलता का लाभ उठाकर, द्रोणाचार्य के वध के लिए तो श्रीकृष्ण पूरा "Echo Chamber" तैयार करवाते है, सब ओर से एक ही आवाज सुनाई देती है कि अश्वत्थामा को मार दिया, द्रोणाचार्य इसे सत्य मान लेते है, पुत्र वियोग में शस्त्र त्याग देते है फिर निहत्थे द्रोणाचार्य का वध कर दिया जाता है।


"Breaking Bharat Movment" में लगे लोग आज एक साथ एक ही झूठ को एक साथ सब तरफ से योजनापूर्वक इस तरह से बोलते है कि वह देशवासियों को सच लगने लगता है, श्रीकृष्ण सिखाते है कि "Making Bharat Movment" में लगे लोगों को भी इस युक्ति का उपयोग करना ही चाहिए।


कर्ण का वध, उसकी दानवीरता की उपाधि में आसक्ति का उपयोग करके उसके अपराजेय कवच- कुंडल देवेंद्र से भिक्षा में ले लेना, कर्ण के पास ऐसी शक्ति है, जिसका प्रतिकार अर्जुन के पास भी नहीं है, इसलिए अर्जुन की रक्षा के लिए, घटोत्कच को युद्ध में लाना और कर्ण को शक्ति का घटोत्कच पर उपयोग करने के लिए विवश कर देना, यह सब श्रीकृष्ण के अद्भुत "शत्रु बोध" के ही तो परिचायक है।


दुर्योधन की मां पट्टी खोलेगी और उसकी दृष्टि पड़ने पर दुर्योधन की देह वज्रवत हो जाएगी, फिर भीम उसका वध नहीं कर पाएंगे इसलिए उसे पत्ते लपेटकर जाने के लिए तैयार करना और फिर भीम को गदा युद्ध के दौरान उसी जंघा पर वार करने का इशारा करना। सबकुछ श्रीकृष्ण के अद्भुत शत्रुबोध के ही तो परिणाम है।


महाभारत युद्ध के अंत में "बर्बरीक" कहते है, मुझे श्रीकृष्ण के सिवा कोई युद्ध करते हुए नहीं दिखा, वे ही कौरव सेना का विनाश कर रहे थें। सत्य ही तो है! श्रीकृष्ण न होते तो युद्ध विजय तो छोड़िए, पांडव भीष्म पितामह को ही निष्क्रिय नहीं कर पातें।


श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में कुछ नहीं किया, किंतु उन्होंने ही सब कुछ किया। अध्ययन कितना अनिवार्य और आवश्यक है। आत्मबोध और शत्रुबोध कितना आवश्यक है यह श्रीकृष्ण सिखाते है।


भारत मां के हम पुत्रों को भी आत्मबोध और शत्रुबोध दोनो का ही ज्ञान होना चाहिए क्योंकि शत्रु को हमारे बारे में पूरा बोध है। वे श्रीरामचरित मानस जैसे महान ग्रंथ की एक चौपाई के द्वारा ही सम्पूर्ण रामचरितमानस को कठघरे में खड़ा कर देते है और हम उनके तथ्यों को सच भी मानने लगते है। उनके विमर्श अत्यन्त प्रबल होते हैं क्योंकि उन्होंने हमारे ग्रंथों का, जीवन पद्धति का सूक्ष्म अध्ययन किया है।


ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से कई समय पहले से अंग्रेज भारत का अवलोकन कर रहें थे। तभी तो वे भारत को एक कंपनी के साए में अधीन करने में समर्थ हुए।


अब अपनी बारी है, आत्मबोध के साथ शत्रुबोध के प्रति सचेत होने की, इसलिए नहीं कि हमें किसी का वध करना है अथवा किसी पर आक्रमण करना है पर कोई हम पर आक्रमण न कर पाए इसलिए,


मधुसूदन के जन्म की तिथि इस शुभकार्य की ओर अग्रसर होने की सर्वत्र शुभघड़ी है।


श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।


लेख

अमन व्यास