बस्तर : माओवादियों ने की एक और जनजाति युवक की हत्या, जनजाति समाज को निशाना बना रहे नक्सली

13 Mar 2024 13:45:30

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हाल ही में माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में एक जनजाति नेता की हत्या की थी। जनजाति नेता कैलाश नाग भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए थे। माओवादियों ने क्षेत्र में जनजातीय समाज के भीतर जागरूकता लाने वाले इस नेता की अपहरण कर हत्या कर दी थी।


अब कुछ ऐसी ही घटना माओवादियों ने एक दूसरे जनजाति युवक के साथ की है। जिले में एक बाद एक जनजाति परिवारों को निशाना बनाने के क्रम में माओवादियों ने एक जनजाति युवक को अपहृत कर उसकी हत्या कर दी है।


सामने आई जानकारी के अनुसार जिले के कुटरू थाना क्षेत्र के भीतर पेठा गांव से नक्सली आतंकियों ने पहले कुशु हेमला नामक स्थानीय युवक का अपहरण किया, और उसे लेकर जंगल के भीतर चले गए।


 
 

इस बीच घरवालों ने गायब युवक को खोजने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इस बीच माओवादी आतंकियों ने दो दिनों तक युवक को अपने पास रखा और अंततः उसकी हत्या कर शव को सड़क पर फेंक दिया।


युवक का अपहरण शुक्रवार (8 मार्च, 2024) को किया गया था, जिसके दो दिन बाद रविवार (10 मार्च, 2024) को देर रात युवक का शव कुटरू के पास एक सड़क पर पड़ा मिला। पुलिस को इस घटना की सूचना देने के उपरांत मौके पर फोर्स भी पहुंची, जिसके बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने पूरे घटनाक्रम की पुष्टि की।


स्थानीय ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार मृतक जनजाति युवक कुटरू में रहता था, लेकिन वह 8 मार्च को अपने गांव तेलीपेठा गया हुआ था। युवक जब अपने गांव में था, उसी दौरान माओवादियों ने घेरकर उसका अपहरण किया, और फिर उसकी हत्या कर दी।

 
 


ऐसा कहा जा रहा है कि माओवादियों ने मृतक युवक की हत्या करने के लिए उस पर मुखबिरी का आरोप लगाया है, लेकिन सच्चाई यही है कि माओवादी ऐसे झूठे आरोप लगाकर दशकों से निर्दोष जनजातियों को मारती आ रही है।


मृतक युवक के शव के पास से माओवादी आतंकी संगठन की भैरमगढ़ एरिया कमेटी का पर्चा बरामद हुआ है, जिसमें मुखबिरी का आरोप लगाते हुए हत्या करने की बात को स्वीकार किया गया है।


वहीं पुलिस ने बताया कि मृतक जनजाति युवक के दो भाई छत्तीसगढ़ पुलिस में सेवा दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ पुलिस में दोनों भाई बस्तर के ही अलग-अलग क्षेत्र में पदस्थ हैं।


जनजातियों को निशाना बना रहे माओवादी


दरअसल माओवादी आतंकी बीते लंबे समय से स्थानीय जनजातियों को अपना निशाना बना रहे हैं। कोई भी स्थानीय जनजाति व्यक्ति माओवादी आतंक के प्रभाव और दबाव से बाहर आने का प्रयास करता है, तो उन्हें मुखबिर बताकर मार दिया जाता है।


जनजाति समाज के लिए चल रही तमाम परियोजनाएं भी इनके चलते क्रियान्वित नहीं हो पाती हैं। यही कारण है कि बस्तर का एक बड़ा हिस्सा आज भी विकास एवं बुनियादी सुविधाओं के अछूता है।


नक्सली जानबूझकर स्थानीय जनजातियों को निशाना बनाते हैं, ताकि इसके माध्यम से वो क्षेत्र में अपने भय का माहौल बरकरार रख सकें। एक तरफ तो वो जनजातियों के हितों की लड़ाई की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर उनके द्वारा इन्हीं मासूम, गरीब एवं भोले-भाले जनजातियों की हत्या कर दी जाती है।

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