जिन्दगी की कीमत हर किसी के लिए इतनी अधिक है कि उसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। नक्सली हो या अन्य आतंक के रास्ते पर चलनेवाले लोग, जो भले ही किसी की जान लेने में जरा भी देरी नहीं करते, लेकिन बात जब उनकी अपनी जान पर बन आए तो ये हर कीमत पर इसकी इफाजत करने के लिए कुछ भी कर गुजरने हैं। पहले नक्सली संगठन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सरकार से वार्ता करने के लिए तैयार होती है, वह भी सशर्त, फिर जब बात शर्त के साथ बातचीत की नहीं बनती और सरकार साफ चेता देती है कि आम जन, नेता और व्यापारियों को यदि नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया तो उन्हें फिर इसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए, और फिर एक गलती जैसे नक्सलियों के लिए काल बनकर आ गई, देखते ही देखते जंगल से उनका सफाया शुरू हो गया, ऐसे में अब उनके पास जंगल से भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
वस्तुत: इन दिनों छत्तीगढ़ में नक्सलवाद पर सरकार सख्त है। लम्बे समय से चल रहे नक्सली घातों के बाद अब वक्त इस राज्य में सरकार बदलने के बाद प्रतिघात कर नक्सलवाद को समाप्त करने का है। यहां अभी भाजपा की सरकार बने बहुत दिन नहीं बीते हैं, लेकिन भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार हकीकत में अपने छत्तीसगढ़ वासियों से जो नक्सलवाद के खात्में का वादा कर सत्ता में आई, वह बहुत शिद्दत से उसे निभाती नजर आ रही है। यही कारण है कि नक्सली बैकफुट पर हैं और इनामी नक्सली तक राज्य से पलायन करने या सरकार के समक्ष सरेण्डर को मजबूर हो उठे हैं।
अब आंध्र प्रदेश की ओर भाग रहे नक्सली
ये कहानी उन छह बड़े इनामी नक्सलियों की है, जो हर हाल में जिंदा रहना चाहते हैं। इनकी ये जिंदा रहने की चाह इन्हें छत्तीसगढ़ से भागने को मजबूर करती है और ये आंध्र पुलिस के सामने सरेंडर करते हैं। सभी नक्सली सरेंडर करने के दौरान आंध्र प्रदेश की पुलिस के सामने गुहार लगा रहे थे, मैं नक्सली हूं, मुझे मेरी जिंदगी से प्यार है... इस जिंदगी में अभी बहुत कुछ देखना और करना है ... जिंदा रहना है साहब...। फिर सभी की समवेत आवाज आई, हम सभी नक्सली हैं, हमें गिरफ्तार कर जेल में डाल दो साहब...। कहने को ये ऊपर लिखा वाक्य किसी को भी पटकथा का कोई संवाद लग सकता है, लेकिन यह संवाद इन दिनों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र राज्य सरकारों की नक्सली सोच पर कड़े प्रहार के बाद चहुंओर साफ घटता नजर आ रहा है!
वास्तव में इस वक्त छग की साय सरकार समेत मध्यप्रदेश की मोहन सरकार और महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार ने नक्सलियों की वह हालत कर दी है कि अब उनके पास चार ही विकल्प शेष बचे हैं। पहला- सरेण्डर करें। दूसरा- राज्य से पलायन कर जाएं। तीसरा- पुलिस एवं अन्य सुरक्षा फोर्स से लड़ाई लड़ें या फिर नक्सलवाद का रास्ता छोड़ राज्य के विकास में अपना भरपूर योगदान देवें।
अभी इस घटना को बहुत दिन नहीं बीते हैं, लोकसभा चुनाव के लिए पहले चरण के मतदान से ठीक दो दिन पहले छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली और उन्होंने बस्तर संभाग के कांकेर जिले के हिदूर और कलपर के बीच जंगलों में 29 दुर्दांत नक्सलियों को मार गिराया। इनमें शीर्ष नक्सली कमांडर जैसे शंकर राव, ललिता, माधवी और राजू जैसे लाखों रुपये के इनामी नक्सली शामिल रहे।
छ.ग. में मार दिए गए कुछ ही दिनों में 90 से ज्यादा नक्सली
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बताते भी हैं कि लगभग सौ दिनों में 63 मुठभेड़ों में 54 नक्सलियों के शव 77 हथियार और 135 विस्फोटक बरामद किए गए हैं। 304 माओवादियों को गिरफ्तार करने में सफलता मिली है। 165 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। नक्सल संबंधी कुल 26 प्रकरणों को एनआईए को सौंपा गया है। विगत 4 माह में 24 अग्रिम सुरक्षा शिविरों की स्थापाना की गई है। निकट भविष्य में 29 नए आधार शिविरों की स्थापना प्रस्तावित है। यह एक तथ्य है कि पिछले तीन महीने में बस्तर के अलग-अलग जिलों में हुई मुठभेड़ों में सुरक्षाबलों ने अब तक 90 से अधिक नक्सलियों को ढेर कर दिया है। बीते चार माह के दौरान सुरक्षाबलों ने अकेले बस्तर संभाग में नक्सलियों के खिलाफ घेराबंदी को मजबूत करते हुए 24 नई छावनियां स्थापित की हैं।
मध्यप्रदेश में भी मारे जा रहे हैं बड़े नक्सली
इससे कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में पुलिस के साथ मुठभेड़ में नकद इनामी दो नक्सली मारे गए । जिनकी पहचान सजंती उर्फ क्रांति और रघु उर्फ शेर सिंह के रूप में हुई। इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का बयान भी सामने आया, उन्होंने कहा, ‘29 लाख रुपए के इनामी डिविजनल कमांडर को मारा जाना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। दूसरा, 14 लाख के इनामी नक्सली को मारना मध्यप्रदेश पुलिस की सजगता को बताता है। हम नक्सलाइट मूवमेंट को कभी भी पनपने नहीं देंगे। तीन महीने पहले सरकार बनने के तीसरे दिन भी बड़ा एनकाउंटर हुआ था, अब जब तक नक्सलियों का पूरी तरह से खात्मा नहीं हो जाता, इस प्रकार की कार्रवाइयां होती रहेंगी।’
ऐसी ही एक बड़ी कार्रवाई महाराष्ट्र में नक्सल विरोधी अभियान के तहत घटी। यहां के गढ़चिरौली जिले में पुलिस ने चार नक्सली को मार गिराया। इन चारों नक्सलियों पर सरकार ने 36 लाख रुपये के इनाम रखे थे। महाराष्ट्र पुलिस को खुफिया जानकारी मिली थी कि एक बड़ा नक्सल ग्रुप लोकसभा चुनावों में बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए गढ़चिरौली के जंगलों में छिपा है, जिसके बाद एक्शन में आई महाराष्ट्र पुलिस ने ये बड़ी कार्रवाई की।
महाराष्ट्र में अर्बन नक्सलियों तक पर पुलिस ने कस दी नकेल
यहां महाराष्ट्र नक्सल ऑपरेशन को लेकर पुलिस अधिकारी आईपीएस संदीप पाटिल ने बताया भी कि महाराष्ट्र के नागपुर, पुणे, नासिक, मुंबई,थाने,नासिक और गोंदिया जैसे शहरों में नक्सली घुसपैठ हुई है। माओवादियों से जुड़े अर्बन नक्सली स्लम इलाकों में युवाओं का ब्रेन वास कर उन्हें शासन, प्रशासन के खिलाफ लडाई लड़ने के लिए तैयार कर रहे हैं। पिछले दिनों पुलिस ने ऑपरेशन के दौरान नक्सलियों के गोपनीय दस्तावेज जब्त किए थे।
इससे साफ पता चला है कि नक्सली शहरी भागों में खास तौर पर स्लम इलाकों में सक्रिय हैं। ये गरीब युवक जो किसी न किसी वजह से सरकार या सरकारी मशीनरी से नाराज हैं, उन्हें अपना हथियार बना रहे हैं । यह वाकई में चिंताजनक है, लेकिन पुलिस प्रशासन मुस्तैद है, किसी भी नक्सली को नहीं छोड़ा जा रहा है । पुलिस ने अब शहरी क्षेत्रों में सक्रिय नक्सल समर्थकों पर निगरानी बढ़ा दी है। पुलिस लोगों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
इस तरह देखा जाए तो इन तीनों ही राज्यों में इन दिनों यह नक्सली खात्में का अभियान बड़े स्तर पर जारी है। संयोग देखिए कि तीनों ही जगह ही भारतीय जनता पार्टी की या मिली जुली सरकार है। फिर इन तीनों राज्य सरकारों का मनोबल इसलिए भी बढ़ा हुआ नजर आता है क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार की नीति भी पूरी तरह देश से नक्सलवाद को समाप्त कर देने की है।
गृहमंत्री अमित शाह कह भी रहे हैं, ‘केंद्र में यदि तीसरी बार मोदी जी की सरकार आई तो दो साल के अंदर नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। नक्सलियों को हम कहना चाहते हैं कि आप सरेंडर कर दीजिए अब भी वक्त है, यदि अब भी नक्सलियों ने सरेंडर नहीं किया तो चिंता ना करें आने वाले दो साल में छत्तीसगढ़ समेत देश में जहां भी लाल आतंक है, वहां की धरती को पूरी तरह से इससे मुक्त कर दिया जाएगा।’
ऐसे में अब नक्सलियों के पास जिंदा रहने के लिए आत्मसमर्पण करने के अलावा अन्य कोई ओर मार्ग शेष नहीं बचा है। इसका असर अब बड़े स्तर पर कुछ इस तरह से दिखता भी है कि छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सक्रिय छह बड़े इनामी नक्सलियों ने बस्तर से निकलकर आंध्र पुलिस के सामने सरेंडर करना पड़ता है । जिसमें एरिया कमेटी के सचिव राजू समेत इनामी नक्सली शामिल हैं। नक्सलियों की पहचान खुरम मिथिलेश उर्फ राजू, बरसे मासा, वेट्टी भीमा, वंजम रामे उर्फ कमला, मडकाम सुक्की और दूडी सोनी के रूप में हुई है। इन नक्सलियों पर 19 लाख रुपये का इनाम छत्तीसगढ़ पुलिस ने रखा था।
नक्सलियों ने आज बताया भी कि कैसे छत्तीसगढ़ सरकार की सख्त कार्रवाइयों में बस्तर संभाग के अलग-अलग जिलों में चल रहे एंटी नक्सल ऑपरेशन से नक्सली बैकफुट पर गए हैं। जवानों के आक्रामक मूवमेंट से नक्सलियों में दहशत का माहौल है, इसलिए बड़े नक्सली लीडर भी सरेंडर करने को मजबूर हो उठे हैं। कहना होगा कि केंद्र की मोदी सरकार और राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयासों से देश में नक्सलवाद अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है।
लेख
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
वरिष्ठ पत्रकार